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जन्माष्टमी पर कविता : कृष्ण मुझे अपना लो

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Krishna Janmashtami

मोर मुकुट पीतम्बर धारी

तुम ब्रज के हो रसिया।

नन्द जसोदा के तुम लाला

तुम सबके मन बसिया।

बिना तुम्हारे इस दुनिया में

कोई नहीं सहारो।

मूढ़मति सब तुमने तारे

अब मुझको भी तारो।

कोई नहीं मेरा इस जग में

कृष्ण मुझे अपना लो।

सब दीनों के तुम रखवाले

सबके पालन हारी।

मैं दीनों का दीन चरण में

अब तो सुनो बिहारी।

लाख बुराई मेरे अंदर

पर तुमको है पूजा।

मात्र एक ही तुम सच्चे हो

और नहीं है दूजा।

इस भव सागर के भंवरों से

प्रभु जी मुझे निकालो।

मद से भरा हृदय है मेरा

कटु वाणी मन कपटी।

स्वार्थ सरोवर में मन डूबा

अवगुण बुद्धि लिपटी।

बीती उमर ज्ञान नहीं पाया

भव चक्कर में उलझा।

नहीं रास्ता है अब कोई

तू ही अब सब सुलझा।

दुःख भरे निर्मम कांटों से

माधव मुझे बचा लो।

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