– डिप्टी सीएम केशव मौर्या पर मुकदमा दर्ज करने की मांग खारिज, शैक्षणिक डिग्रियों को बताया था फर्जी – हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका की खारिज़
प्रयागराज, 07 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज़ कर दी है। याचिका में केशव पर फर्जी शैक्षिक दस्तावेजों के आधार पर पद प्राप्त करने और धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी, वाली कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता, दिवाकर नाथ त्रिपाठी, न तो पीड़ित हैं और न ही कथित अपराध से प्रभावित हैं। ऐसा लगता है कि याची ने किसी लाभ या बदला लेने के उद्देश्य से याचिका दाखिल की है।
याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि याची दिवाकर नाथ त्रिपाठी इस मामले में पीड़ित व्यक्ति नहीं है इसलिए उसे याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं है। वर्ष 2021 में दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एक परिवाद दाखिल कर, केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की। त्रिपाठी का आरोप था कि मौर्य ने 2007, 2012 और 2014 के चुनावों में चुनाव आयोग के समक्ष अपनी शैक्षिक योग्यताओं के बारे में गलत हलफनामे प्रस्तुत किए थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मौर्य ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से पेट्रोल पंप हासिल करने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मौर्य द्वारा हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद से प्राप्त ’प्रथम’, ’मध्यमा’ और ’उत्तमा’ की डिग्रियां उत्तर प्रदेश सरकार, यूजीसी और एनसीटीई द्वारा क्रमशः हाई स्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक (बी.ए) के बराबर मान्यता प्राप्त नहीं हैं। उन्होंने आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित परीक्षाएं माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, यू.पी के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं के बराबर न तो अतीत में मान्यता प्राप्त थीं और न ही वर्तमान में मान्यता प्राप्त हैं।
ट्रायल कोर्ट ने 4 सितम्बर, 2021 को त्रिपाठी के परिवाद खारिज कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की। शुरू में, यह याचिका 318 दिनों की देरी के कारण खारिज कर दी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी, 2025 को हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को योग्यता के आधार पर तय करने का निर्देश दिया। इस पर फिर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।
राज्य सरकार व केशव मौर्य के वकीलों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का आवेदन विचारणीय नहीं है, क्योंकि धोखाधड़ी या जालसाजी के अपराधों के लिए धोखाधड़ी के इरादे का अभाव है। कथित अपराधों की प्रकृति को देखते हुए, याचिकाकर्ता को जो एक तीसरा पक्ष है, को कोई सीधा, व्यक्तिगत या विशिष्ट चोट नहीं पहुंची है। उन्होंने यह भी बताया कि चुनाव आयोग, प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार या इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन इस आपराधिक पुनरीक्षण में पक्षकार नहीं हैं।
कोर्ट ने अपने विश्लेषण में कहा कि याचिकाकर्ता के आरोप किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करते हैं। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि हिंदी साहित्य सम्मेलन की डिग्रियों की हाईस्कूल योग्यता के बराबर होने का प्रश्न एक प्रशासनिक या नियामक विवाद है जिसे शैक्षणिक अधिकारियों द्वारा हल किया जा सकता है, न कि आपराधिक धोखाधड़ी के आरोपों के माध्यम से। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के 4 सितम्बर, 2021 के आदेश को सही ठहराया और कहा कि इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।“ इस फैसले के साथ, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में केवल वही पक्ष आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकता है जो सीधे तौर पर पीड़ित हो।
—————
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
You may also like
सोशल मीडिया पर क्यों आमने-सामने आए असदुद्दीन ओवैसी और किरेन रिजिजू
क्या लॉर्ड्स में आग उगलते हुए नजर आएंगे जोफ्रा आर्चर? कोच ब्रेंडन मैकुलम ने दिया बड़ा अपडेट
प्री-डायबिटीज़: अगर डायबिटीज़ का ख़तरा है, तो ये बातें जानना ज़रूरी है
आमेर किले की दीवारों में दबी हैं सदियों पुरानी चीखें? वीडियो में जानिए वो खौफनाक राज़ जो आज भी लोगों को डराते है
पुलिस थाने में घुसते ही बोला आरोपी, 'मैंने कई लाशें दफनाईं', मगर अब मेरी जान को है खतरा, कबूलनामा देखकर पुलिस को भी आग गया पसीना