Next Story
Newszop

धमतरी : भंगाराव माई दरबार में दोषी देवी-देवताओं को मिलती है सजा, यात्रा में जीवंत है न्याय की परंपरा

Send Push

image

धमतरी, 24 अगस्त (Udaipur Kiran) । ग्रामीण अंचलों में आयोजित भंगाराव मांई की जात्रा केवल आस्था का उत्सव ही नहीं, बल्कि न्याय की अनोखी परम्परा का भी प्रतीक है। इस जात्रा में मांई के दरबार में देवताओं के बीच विवादों की सुनवाई होती है और दोषी देवता को सार्वजनिक रूप से सजा दी जाती है।

जिले के कुर्सीघाट बोराई क्षेत्र में हर साल की तरह इस साल भी भादो माह में भंगाराव माई जात्रा में न्याय की परंपरा की रस्म निभाई गई। जिसमें क्षेत्र के देवी-देवताओं की भीड़ पहुंचे। सुनवाई में दोषी पाए जाने वाले देवी-देवताओं को सजा दी गई। यहां आयोजित जात्रा में श्रद्धालुओं की खचाखच भीड़ लगी रही। ग्रामीण मान्यताओं के अनुसार, भंगाराव मांई न्यायप्रिय देवी मानी जाती हैं। जात्रा के दौरान गांव के लोग एकत्र होकर उनके दरबार में उपस्थित होते हैं। यहां देवताओं के पुतलों या प्रतीक स्वरूप मूर्तियों को लाकर खड़ा किया जाता है। फिर पुजारी और परम्परागत न्यायाधीश देवताओं के बीच चले आ रहे विवादों को सुनते हैं। जिस देवता को दोषी पाया जाता है, उसके प्रतीक को अपमानजनक दंड दिया जाता है, जैसे ज़मीन पर गिराना, रस्सियों से बांधना या प्रतीक को कुछ समय के लिए दरबार से बाहर कर देना। इस अनोखी परम्परा का संदेश गहरा है। इसका उद्देश्य समाज को यह बताना है कि न्याय के सामने कोई भी, चाहे देवता ही क्यों न हो, दोषमुक्त नहीं माना जाता। यह प्रक्रिया लोगों को नैतिक आचरण और न्यायप्रियता की शिक्षा देती है। भंगाराव मांई का दरबार हर साल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। जात्रा के दौरान गीत, नृत्य और धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं, लेकिन मुख्य आकर्षण यही न्याय की परम्परा है। यह परम्परा ग्रामीण समाज में विश्वास और सामूहिक एकजुटता को मजबूत करती है। आज जब न्याय व्यवस्था पर सवाल उठते हैं, तब यह लोक परम्परा हमें याद दिलाती है कि न्याय का आधार निष्पक्षता और सत्य होना चाहिए। भंगाराव मांई का दरबार इसी मूल्य को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखे हुए है।

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा

Loving Newspoint? Download the app now