मंदसौर, 21 अगस्त (Udaipur Kiran) । श्वेताम्बर जैन समाज के महापर्व पर्यूषण पर्व 20 अगस्त से प्रारंभ हो गये है। इस दौरान प्रतिदिन समाजजन धार्मिक क्रियाएं कर रहे है। प्रतिदिन शास्त्रों को वाचन हो रहा है भगवान की पूजा अर्चना हो रही है वहीं रात को प्रभु भक्ति के आयोजन किये जा रहे है। इस दौरान गुरूवार को पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन जनकुपूरा स्थित भगवान श्री अजीतनाथ जी जैन मंदिर में भगवान की सुन्दर अंग रचना की गई।
जैन संत श्री राजरत्नजी म.सा. ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में प्रवचनों के दौरान कहा कि मानव शरीर को चलायमान रखने के आहार जरूरी है, लेकिन आहार के प्रति आसक्ति उचित नहीं है। आहार के प्रति अधिक आसक्ति जीवन में कदापि उचित नहीं कही जा सकती है इसलिये जीवन में आहार के प्रति अधिक आसक्ति मत रखो, उतना ही आहार लो, जितना जरूरी है, जैसे दो टाइम भोजन, लेकिन यदि दो टाइम भोजन के साथ 10 बार स्वल्पाहार कर रहे है तो इसे आहार के प्रति आसक्ति ही कहा जायेगा। इसलिये उतना ही आहार ले जितना शरीर के लिये जरूरी है।
परम पूज्य आपने पर्युषण महापर्व के द्वितीय दिवस गुरूवार को आचार्य श्री निपुणरत्नसूरिश्वरजी की पावन निश्रा में आयोजित धर्मसभा में कहा कि मनुष्य का अपनी रस इन्द्रिय पर नियंत्रण होना जरूरी है हर समय खाने पीने का विचार करना हमें शोभा नहीं देता है। इसलिये जीवन में आहार की चिंता छोड़ों, केवल धर्म से नाता जोड़ने की चिंता करो।
मयार्दा के पालन से ही सम्मान मिलेगा- संतश्री ने कहा कि पूर्व समय में वैष्ण वर्ण अर्थात महाजनों का समाज में अत्यधिक सम्मान था इसका कारण यह था कि महाजन वर्ग अपनी मयार्दाओं का पालन करने में सबसे आगे रहता था लेकिन आजकल महाजनों को वह सम्मान नहीं मिल रहा है इसका विचार करेगे तो पायेंगे कि कही न कहीं महाजन वर्ग ने अपनी मयार्दाओं को छोड़ा है। यदि मयार्दाओं का पालन नहीं करोगे तो समाज में उचित मान सम्मान जिसके वे हकदार है वह कैसे मिलेगा। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धमार्लुजन उपस्थित थे। प्रभावना शरद, निलेश कुमार सालेचा परिवार के द्वारा वितरित की गई।
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(Udaipur Kiran) / अशोक झलोया
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