प्रयागराज, 20 सितम्बर (Udaipur Kiran) . अब हम पत्र लिखने के अभ्यास और उस अहसास से दूर होते जा रहे हैं. एक दौर वह भी था जब हमारे पास पत्रों की जीवंत दुनिया थी. पत्र साहित्य की एक खास और आत्मीय विधा है. जिससे हम लगातार दूर हुए हैं. दुनिया का तमाम पत्र साहित्य मनुष्यता पर केन्द्रित है. इनमें मनुष्यता का वास है. मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है.
यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजभाषा अनुभाग के तत्वावधान में आयोजित राजभाषा पखवाड़ा में Friday को राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयोजक प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने पत्र लेखन की विशद और जीवंत परम्परा पर अपनी बात रखते हुए कही. इस दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शैक्षिक एवं गैर शैक्षणिक कार्मिकों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया.
इस अवसर पर प्रोफेसर भदौरिया ने आगे कहा कि पहले पत्रों की हैंडराइटिंग देखकर लोग पहचान लेते थे कि यह पत्र किस व्यक्ति का है. ज्ञान के रुप में उनकी उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी. पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संचार का आधुनिकतम साधन नहीं कर सकता है. पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहां दे सकता है.
उन्होंने आगे कहा कि पत्र हमेशा एक नया सिलसिला शुरू करते हैं. राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम बहसों और नई घटनाओं को जन्म देते हैं. पत्रों का भाव सब जगह एक सा है, भले ही उसका नाम अलग-अलग हो. पत्र को उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम् जाबू और लेख तथा तमिल में कड़िद कहा जाता है. प्रो. भदौरिया ने इस रवायत को जारी रखने की अपील की.
इविवि की पीआरओ प्रो जया कपूर ने बताया कि विश्वविद्यालय में 18 सितम्बर से राजभाषा पखवाड़ा आरम्भ हुआ है. प्रतियोगिताओं के विजेताओं को प्रत्येक प्रतियोगिता में चार पुरस्कार क्रमशः प्रथम 3000 रू, द्वितीय 2500, तृतीय 2000, सांत्वना 1500 तथा प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे. इस दौरान राजभाषा अनुभाग की सांस्कृतिक इकाई ’बरगद कला मंच’ द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं नाट्य मंचन भी किया जाएगा. कार्यक्रम का संचालन राजभाषा अनुभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी अनुवादक हरिओम कुमार ने किया.
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
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