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सत्तावालों का होता है शासन और आचार्यों का अनुशासन: रमेश भैया

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हरदोई,18 जुलाई (हि. स .)। विनोबा सेवा आश्रम के अधिष्ठाता रमेश भैया ने शुक्रवार को एक वार्ता में कहा कि अनुशासन पर्व शब्द उपनिषद में आया हुआ है। प्राचीन काल में आचार्यात हि एव विद्या विदिता साघिष्ठम प्राप्तीति छांदोग्योपनिषद का 51वां ! इसका अर्थ है ,आचार्यों के पास जाकर बारह साल विद्याभ्यास करने का रिवाज था। तो उस सिलसिले में वहां जिक्र आया है। इसी के अनुसार राम वशिष्ठ के आश्रम में और कृष्ण भी संदीपनि के पास विद्याध्ययन हेतु गए थे। बाबा विनोबा ने कहा , कृष्ण कब गए? जब वे दुनिया में मशहूर हो चुके थे और कंस आदि का वध कर चुके थे। इतने प्रसिद्ध होने के बाद भी एक दफा गुरु के पास जाना ही चाहिए,इसलिए वे गुरुग्रह गए।

उस समय का रिवाज ऐसा भी था कि बारह साल ब्रम्हचर्य पालन करने के बाद जो गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना चाहते थे वे गृहस्थाश्रम में जाते थे, और जो हमेशा के लिए ब्रम्हचारी रहना चाहते थे वे गुरु के साथ ब्रह्मचर्यपूर्वक जीवन बिताते थे। जो घर जाना चाहते थे,उन्हें गुरु अंतिम उपदेश देते थे, सत्यं वद, धर्मम चर इत्यादि। इसके बाद उपनिषद में जिक्र आया है, एतद अनुशासनम । यह है अनुशासन।एवं उपासित्वयम। इस अनुशासन पर आपको जिंदगी भर चलना है। इसलिए विनोबा जी कहते थे कि आचार्यों का होता है अनुशासन और सत्तावालों का होता है शासन। शासन और अनुशासन में क्या फर्क होता है। यह समझना महत्वपूर्ण है। बाबा ने बताया कि अगर शासन के मार्गदर्शन में दुनिया रहेगी,तो दुनिया में कभी भी समाधान होने वाला नहीं है। शासन के मार्गदर्शन में अगर सुलझेगी तो फिर उलझेगी। जैसे बांगला देश की समस्या सुलझ तो गई लेकिन सुलझने के बाद उलझ गई। सुलझी हुई उलझी। यही दुनिया भर में है चाहें इजराइल हो या कोई और देश। बाबा ने दुखभरे शब्दों में कहा कि हर जगह शासन में लोग जाते हैं, उनके मार्गदर्शन में काम करते हैं,कहीं कत्ल होता है,कहीं खून होता है।किसी देश के मुख्यमंत्री या कहीं के राष्ट्रध्यक्ष को मार डाला। यह खबरें आए दिन प्रेस में आती रहती हैं। बाबा कहते थे कि ए से लेकर जेड तक अफगानिस्तान से लेकर झांबिया तक यही दिखाई देता है। बाबा के ख्याल से दुनिया भर में कोई 300_ 350 शासन होंगे,इनमें भी गुटबंदी रहती है। कभी इस गुट में कभी उस गुट में चले गए। इस गुटबंदी का अमेरिका जैसी बड़ी ताकतें उपयोग करते हैं। कभी इस गुट का समर्थन देते है,कभी उस गुट का। इन बड़ी शक्तियों की कोशिश रहती है कि दुनिया में सब दूर थोड़ा थोड़ा असंतोष रहे। एक बाजू जितनी पावर है उतनी दूसरी ओर भी करना। यह बैलेंस ऑफ पावर लेटेस्ट हथियार देकर करना। बाबा चिंता यह करने लगे थे कि बैलेंस ऑफ पावर की भी बैलेंस ऑफ इंबैलेंस भी वे ही करना चाहते हैं। एक बाजू जितना दुख उतना ही दुख दूसरी ओर भी हो तब दुनिया में शांति होगी,ऐसा उनका मानना है। दोनों बाजू बराबर का सुख यह तो सामान्य बात है। लेकिन विषमता हो तो पावर ऑफ इंबैलेंस होगा । यह सोच है। इसलिए बाबा चाहता है कि सत्ता के शासन के बजाय आचार्यों के अनुशासन से।दुनिया चलेगी, तो दुनिया में शांति होगी। आचार्य निर्भय निर्वेर निष्पक्ष होते हैं। जो कभी अशांत नहीं होते हैं। जिनके मन में क्षोभ कभी नहीं होता है। जितना सर्वसम्मत विचार होता है, उतना ही लोगों के सामने रखते हैं।उस मार्गदर्शन में अगर दुनिया चलेगी तो निश्चित शांति होगी। बाबा कहते थे कि दुनिया की बात छोड़ भी दो तो भारत भी।बहुत बड़ा देश है जहां 15 भाषाएं बोली जाती हैं। तो अगर भारत को ही कम से कम आचार्यों के अनुशासन के मार्गदर्शन में प्रजा अगर चले तो भी निसंदेह बहुत बड़ी शांति होगी। आचार्य जो मार्गदर्शन देंगें ,उनका जो अनुशासन होगा, उसका विरोध अगर शासन कुछ करेगा तो बाबा को सत्याग्रह करने का मौका मिलेगा। बाबा का विश्वास है कि शासन ऐसा कोई काम नहीं करेगा ,जो आचार्यों के अनुशासन के।खिलाफ होगा । ऐसा मौका कभी भारत में नहीं आयेगा।

(Udaipur Kiran) / अंबरीश कुमार सक्सेना

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