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आखिर क्यों आज ही के दिन मनाया जाता है विश्व शांति दिवस, यहां जानें इसका इतिहास और महत्व

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विश्व शांति दिवस अथवा 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' प्रत्येक वर्ष '21 सितम्बर' को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, शांति और खुशी का एक आदर्श माना जाता है। 'विश्व शांति दिवस' मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। शांति सभी को प्यारी होती है। इसकी खोज में मनुष्य अपना अधिकांश जीवन न्यौछावर कर देता है। किंतु यह काफ़ी निराशाजनक है कि आज इंसान दिन-प्रतिदिन इस शांति से दूर होता जा रहा है। आज चारों तरफ़ फैले बाज़ारवाद ने शांति को व्यक्ति से और भी दूर कर दिया है। पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। यूँ तो 'विश्व शांति' का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है, लेकिन इसको अमल में लाने वालों की संख्या बेहद कम रही है।

वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' या 'विश्व शांति दिवस' के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। वर्ष 2012 के 'विश्व शांति दिवस' की थीम थी- "धारणीय भविष्य के लिए धारणीय शांति"।[1]

सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद ज़रूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। यह पंचसूत्र, जिसे 'पंचशील' भी कहते हैं, मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं।[1] इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-

'विश्व शांति दिवस' के उपलक्ष्य में हर देश में जगह-जगह सफ़ेद रंग के कबूतरों को उड़ाया जाता है, जो कहीं ना कहीं 'पंचशील' के ही सिद्धांतों को दुनिया तक फैलाते हैं।[1] 'विश्व शांति दिवस' के अवसर सफ़ेद कबूतर उड़ाने की परंपरा बहुत पुरानी है, पर इन कबूतरों को उड़ाने के पीछे एक शायर का निम्न शेर बहुत ही विचारणीय है-

आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक चाल से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। आज सैन्य साजो-सामान उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है। आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैलाकर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत संपत्ति जमा करते हैं। हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और इराक जैसे देशों में हुए युद्धों को विशेषज्ञ हथियार माफियाओं के लिए एक फायदे का मेला मानते हैं। उनके अनुसार दुनिया में भय और आतंक का माहौल खड़ा करके ही सैन्य सामान बेचने वाले देश अपनी चांदी कर रहे हैं।[2]

आज प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। भाषा, संस्कृति, पहनावे भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन विश्व के कल्याण का मार्ग एक ही है। मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। शांति के महत्व को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1982 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया कि हर 21 सितम्बर को 'विश्व शांति दिवस' मनाया जाएगा। इस सदी में विश्व में फैली अशांति और हिंसा को देखते हुए हाल के सालों में शांति कायम करना मुश्किल ही लगता है, किंतु उम्मीद पर ही दुनिया कायम है और यही उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही वह दिन आएगा, जब हर तरफ शांति ही शांति होगी।

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