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आखिर कैसे रेगिस्तान की बंजर भूमि अब पैदा कर रही सोना, 3 मिनट के इस वीडियो में देखें पूरी सच्चाई

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राजस्थान न्यूज डेस्क !!! आज हम जानेंगे राजस्थान की जीवनदायिनी इंदिरा गाँधी नहर के बारे में, जो दुनिया में सबसे लम्बी मानव निर्मित नहर है , राजस्थान की वो जीवनदायिनी नहर जिसने बंजर रेगिस्तान को हरा भरा कर दिया , राजस्थान का वो क्षेत्र जहाँ मीलों बस बंजर जमीन और रेत थी उसे हरे भरे खेत खलिहान में बदलने वाली इंदिरा गाँधी नहर के बारे में। 


इंदिरा गाँधी नहर कब बनी,  इतने दुर्गम मरुस्थल और जानलेवा गर्मी  में ये कैसे बन पायी , इसे किसने  बनाया , 949  किलोमीटर लम्बे इसके सफर की दास्तान , राजस्थान के काया कल्प की दास्तान , इस नहर के आस पास बसे शहरों की कहानी।  तो आईये जानते हैं राजस्थान की जीवनदायिनी इंदिरा गाँधी नहर की कहानी राजस्थान में स्थित थार दुनिया का 17वाँ सबसे बड़ा रेगिस्तान और दुनिया का 9वाँ सबसे बड़ा गर्म मरुस्थल है। जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो मरुस्थल भी दोनों देशो के बीच बंट गया, जिसमे पाकिस्तान के हिस्से में इस मरुस्थल का 15% हिस्सा आया, वहीँ भारत को इसका 85 प्रतिशत हिस्सा मिला। विशाल थार के रेगिस्तान जहां मीलों लम्बी दूरी तक रेतीले धोरों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता, ये राजस्थान का वो हिस्सा था जहां का लगभग हिस्सा बंजर और सूखा रहता था। यहां लोगों को पीने का पानी लेन के लिए कई मील दूर पैदल चलकर जाना पड़ता था. राजस्थान में यहां पानी तलाश करना एक जंग लड़ने जैसा ही था. 

सन 1899 में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा, राजस्थान बुरी तरह से इस भयंकर अकाल की चपेट में आया। जिसके चलते राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, नागौर, चुरू और बीकानेर इलाके भयंकर तरीके से सूखे की जद में आये थे. ये अकाल विक्रम संवत 1956 में होने के कारण इसे स्थानीय भाषा में 'छप्पनिया अकाल' भी कहा जाता है. अंग्रेजों के गजेटियर में ये अकाल 'द ग्रेट इंडियन फैमीन 1899' के नाम से दर्ज हो गया था. अकाल की तबाही से सबक लेते हुए राजा, महाराज व प्रशाशक भविष्य में आने वाले ऐसे अकालों से निपटने के उपायों की योजना बनाने में जुट गए। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह अकाल से निपटने की योजना में सबसे आगे रहे और उन्होंने राजस्थान में नहर के द्वारा पानी लाने की योजना पर विचार करना शुरू किया। और ये जिम्मा कंवर सेन को मिला। महाराजा चाहते थे कि पंजाब से बातचीत करके सतलुज नदी से एक नहर निकालकर राजस्थान के बीकानेर तक पहुंचाय जा सके, जिससे बीकानेर की प्रजा को पानी की समस्या से राहत मिले। इस नहर को गंग नहर के नाम से जाना गया और इसी नहर के चलते राजस्थान को अपना अन्न का कटोरा कहलाने वाला शहर गंगानगर मिला। 

गंग नहर से बीकानेर में तो पानी की समस्या से राहत मिल गई थी लेकिन महाराजा गंगा सिंह और कंवर सेन पूरे राजस्थान को पानी की समस्या से छुटकारा दिलाना चाहते थे। इसी सपने को साकार करने के लिए महाराज गंगा सिंह जी ने पंजाब से पानी राजस्थान तक लाने के लिए एक नहर का ड्राफ्ट तैयार किया और उस समय की अंग्रेजी सरकार को पेश किया। लेकिन लेकिन साल 1947 में कैंसर के कारण महाराज गंगा सिंह का निधन हो गया जिसके बाद इनके बेटे साधुल सिंह बीकानेर के नए राजा बने। पर साल 1947 में देश आजाद होने के साथ ही राजशाही भी खत्म हो गई, जिसके चलते ये ड्राफ्ट ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद कंवर सेन ने साल 1948 में एक बार फिर से इस नहर की योजना को बीस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार के समक्ष रखा, जिसे लम्बे विचार विमर्श के पश्चात मंजूरी मिली और 31 मार्च 1958 को केन्द्रीय गृह मंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने इसकी आधारशिला रख इसे राजस्थान नहर का नाम दिया। इसके साथ ही पंजाब भी एक अच्छे पडोसी की तरह राजस्थान को पानी देने के लिए तैयार हो गया था। इस नहर के पानी के लिए पंजाब के फिरजपुर के निकट सतलज व ब्यास नदी के संगम पर हरिके बैराज बनाने का निर्णय लिया गया। लेकिन मंजूरी और पानी के इंतजाम के बाद भी इस नहर का निर्माण आसान काम नहीं था।  

थार के रेगिस्तान में सैकड़ों किलोमीटर की लम्बाई में रेतीले धोरों की मिट्टी को हटा कर उन्हें समतल कर नहर बनाना अपने आप में बेहद मुश्किल कार्य रहा। रेगिस्तान की भयानक गर्मी और आंधियों ने इंजिनियरों और मजदूरों के लिए यहां काम करना लगभग नामुनकिन कर दिया था, इसके अलावा काफी मजदूर व इंजिनियर तो भयानक गर्मी और सर्दी में भयानक ठंड से दम तोड़ चुके थे। उस वक्त ना तो आधुनिक मशीनें थी और ना ही पर्याप्त संसाधन थे. लेकिन कंवर सिंह ने नहर के ड्राफ्ट तैयार करते समय यहां के वातावारण को भी ध्यान में रखा था, तभी तो उस से निपटने के लिए कंवर सिंह और उनकी टीम जमीन खोदने के लिए रेगिस्तान के जहाज कहे जाने वाले ऊंट का इस्तेमाल किया। ऊंटों से जमीन खोदने का काम शुरु किया गया तो सबसे मेहनती जानवर कहलाये जाने वाले गधे ने भी माल ढोने का काम बखूबी निभाया. ऊंट और गधों ने मिलकर युद्धस्तर पर काम शुरु कर मिट्टी की खुदाई और ढुलाई के नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिखाया. ये जानवर नहीं होते ये नहर बन पाना नामुमकिन था. इस नहर को बनाने में असंख्यों जानवरों ने जान गवाई लेकिन काम को रोका नहीं गया. 

आख़िरकार लम्बे इंतजार, सैकड़ों जानवरों और लोगों की क़ुरबानी के बाद थार के रेगिस्तान के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होने वाला दिन आया, जब 1 जनवरी 1987 को विशाल रेगिस्तान को चीरते हुए हिमालय का पानी 649 किलोमीटर का सफर तय कर जैसलमेर के मोहनगढ़ पहुंचा। राजस्थान को जीवन जीवन देने वाली यह नहर वास्तव में अपने आकार व लम्बाई के कारण एक नदी के समान है। यह नहर पंजाब के फिरजपुर के निकट सतलज व ब्यास नदी के संगम पर बने हरिके बैराज से शुरू होती है। देश की सबसे लम्बी यह नहर 649 किलोमीटर लम्बी है। यहां एक महत्वपूर्ण बात समझनी होगी की अलग-अलग तरह की प्राकृतिक विषमताएं होने के चलते एक ही बार में इस नहर का निर्माण संभव नहीं था। इसलिए इसे 2 अलग-अलग चरणों में पूरा किया गया, इसके पहले चरण में पंजाब से राजस्थान तक 204 किलोमीटर लम्बी फीडर नहर बनाई गयी , तो वहीं दूसरे चरण में 445 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर बनाई गई। इसके पहले चरण में बनायीं गयी फीडर नहर की 204 किलोमीटर की लम्बाई का 170 किलोमीटर हिस्सा पंजाब व हरियाणा में और 34 किलोमीटर का हिस्सा राजस्थान में आता है। राजस्थान मे मैन फीडर के अलावा 189  किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर भी तैयार की गयी थी। राजस्थान की सीमा पर इस नहर की गहराई 21 फीट व तल की चौड़ाई 134 फीट व सतह 218 फीट चौड़ी है। 

लेकिन इसके पहले और दूसरे चरण में इस नहर का पानी सिर्फ हनुमानगढ़ तक ही पहुंच सका था, अब इसके निर्माताओं के सामने इसे जैसलमेर तक पहुंचाने के लिए एक बड़ी चुनौती इंतजार कर रही थी। चुनौती ये थी की हनुमानगढ़ से जैसलमेर तक 145 लम्बी इस नहर को सपाट जगहों में नहीं बल्कि ढलान से ऊंचाई की और बनाना था। इसके बाद नहर के इंजीनियरों ने हर किसी की कल्पना से परे रेगिस्तानी जिलों में इंजीनियरिंग लिफ्ट नहर का निर्माण कर इस चुनौती को पूरा किया। इस नहर का निर्माण पूरा होने के बाद इसने राजस्थान के उन क्षेत्रों को आबाद किया जहां साल में सिर्फ 4 से 5 बार बारिश होती थी।  आज हनुमानगढ़ के मसीतावाली से लेकर जैसलमेर के मोहनगढ़ तक फैली मुख्य नहर से नौ शाखाएं निकलती हैं। सिंचाई के लिए इसकी वितरिकाएं 9,245 किलोमीटर लम्बी हैं, जिससे राजस्थान के दस रेगिस्तानी जिलों के लोगों के जीवन मे पानी की कमी पूरी होती हैं। इसके अलावा कई बिजली परियोजनाओं के लिए भी पानी यही नहर उपलब्ध कराती है। 

इस नहर के निर्माण से मानों राजस्थान को एक नया जीवनदान मिला हो, इस नहर से रेगिस्तान की चिलचिलाती और बंजर रेत आज हरे-भरे खेतों, मैदानों और शहरों में बदल गई है। इसकी बदौलत राजस्थान में बारिश 40 से 50 प्रतिशत तक बढ़ी तो दूसरी ओर पलायन भी 48 से 60 प्रतिशत तक कम हुआ, इतना ही नहीं ये क्षेत्र इतना उपजाऊ हुआ की पंजाब और हरियाणा से भी लोग यहां खेती और दूसरे रोजगारों के चलते खिंचे आये। इस नहर से राजस्थान के गंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर जैसलमेर बाड़मेर जोधपुर नागौर चूरू झुंझुनू सीकर जैसलमेर और बाड़मेर जैसे जिलों की किस्मत और जीवन दोनों बदल गए हैं। थार का विशाल रेगिस्तान जहां कभी मीलों लम्बी दूरी तक रेतीले धोरों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता था वहां अब हरियाली छाई रहती है। वीरान क्षेत्र आबाद हो चुके हैं और बम्पर कृषि उपज पैदा हो रही है। राजस्थान की जीवन रेखा बनी इस नहर की वजह से रेगिस्तान अब पूरी तरह से बदल चुका है। जोधपुर-बीकानेर सहित दस बड़े शहरों की आबादी पानी की जरूरतों के लिए पूरी तरह से इस नहर के पानी पर निर्भर है। साथ ही भारत-पाक सीमा के बिलकुल समानान्तर चलने वाली यह नहर सुरक्षा लाइन का भी काम करती है। 

आज इस नहर के बगैर राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस नहर ने ऐसे क्षेत्र में पानी पहुंचा दिया जहां पहले साल में महज दस इंच बारिश ही मुश्किल से होती थी। अब रेगिस्तान में हर तरफ हरियाली लहलहा रही है। नहर के आगमन के पश्चात रेगिस्तानी क्षेत्र पूरी तरह से बदल गया। नहरी क्षेत्र की आबादी तेजी से बढ़ी, जिससे कई गांव व कस्बे विकसित हो गए। नई मंडियां खुलने से कई कृषि आधारित उद्योग स्थापित हुए। महज पशुपालन पर आश्रित रेगिस्तानी क्षेत्र के लोगों के समक्ष रोजगार के द्वार खुल गए। इन सब के चलते इस क्षेत्र का परिदृश्य पूरी तरह से बदल चूका है। 

यहां का नहरी क्षेत्र सालाना 37 लाख टन कृषि उत्पादन करने लगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के पश्चात 2 नवम्बर 1984 को राज्य सरकार ने इसका नाम राजस्थान नहर से बदल कर इंदिरा गांधी नहर कर दिया था। तो दोस्तों ये थी राजस्थान नहर के इंदिरा गाँधी नहर बनने की कहानी, वीडियो देखने के लिए धन्यवाद, अगर आपको यह वीडियो पसंद आया तो प्लीज कमेंट कर अपनी राय दें, चैनल को सब्सक्राइब करें, वीडियो को लाइक करें, और अपने फ्रेंड्स और फेमिली के साथ इसे जरूर शेयर करें।

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