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टैरिफ वॉर के बीच क्या भारत कर सकता है अमेरिकी ब्रांड्स का बॉयकॉट ? ऐसा हुआ तो क्या इनके बिना लोग रह पाएंगे या नहीं ?

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जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है, तब से कई भारतीय नाराज़ हैं। सोशल मीडिया पर भी ट्रेंड चल रहा है कि भारतीयों को अमेरिकी ब्रांड्स का बहिष्कार करना चाहिए। इनमें मैकडॉनल्ड्स, कोका-कोला, अमेज़न, एप्पल, स्टारबक्स आदि शामिल हैं। अमेरिकी ब्रांड्स आज भारत के लगभग हर घर में अपनी पैठ बना चुके हैं। हालात ऐसे हैं कि आज इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साथ ही, इन ब्रांड्स का कारोबार भारत में खूब फैल रहा है।

घर-घर में अमेरिकी ब्रांड
जब अमेरिकी ब्रांड्स की बात आती है, तो हम तकनीक से मुंह नहीं मोड़ सकते। स्मार्टफोन से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग या बड़े फ़ूड ब्रांड्स तक, लगभग हर चीज़ आज ज़रूरत बन गई है।

1. सोशल मीडिया
सोशल मीडिया से जुड़े प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि आज बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं। वहीं, ऑफिस के काम से जुड़ी लगभग सभी चीज़ें चैटजीपीटी, लिंक्डइन, एमएस ऑफिस आदि के बिना अधूरी लगती हैं। ये सभी अमेरिकी ब्रांड्स हैं। ज़रा सोचिए, क्या आज हम व्हाट्सएप के बिना रह सकते हैं? क्या इंस्टाग्राम और फेसबुक के बिना हमारी सोशल मीडिया लाइफ पूरी होगी? शायद नहीं, क्योंकि अब ये हमारी ज़रूरत बन गए हैं। ये सभी मार्क ज़करबर्ग की कंपनी मेटा के ब्रांड हैं।

2. ऑनलाइन शॉपिंग

ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में भी अमेरिकी ब्रांड अमेज़न और फ्लिपकार्ट सबसे आगे हैं। आपको लगेगा कि फ्लिपकार्ट एक भारतीय कंपनी है। जी हाँ, है, लेकिन आज इसका स्वामित्व अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट के पास है। फ्लिपकार्ट में वॉलमार्ट की हिस्सेदारी लगभग 78 प्रतिशत है। अगर भारत में ई-कॉमर्स कंपनियों की हिस्सेदारी की बात करें, तो फ्लिपकार्ट सबसे आगे है। इसकी हिस्सेदारी लगभग 48 प्रतिशत है। अमेज़न दूसरे स्थान पर है।

3. आईफोन

आज भारत में आईफोन होना आम बात हो गई है। चूँकि भारत में आईफोन का उत्पादन भी शुरू हो गया है। ऐसे में, आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल के लिए भारत एक महत्वपूर्ण देश बन गया है। भारत में आईफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2025 के अंत तक देश में आईफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या लगभग 1.50 करोड़ हो जाएगी।

4. खाद्य और पेय पदार्थ

खाद्य और पेय पदार्थों में भी अमेरिकी ब्रांडों को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। चाहे वो मैकडॉनल्ड्स हो, केएफसी हो, पिज़्ज़ा हट हो, डोमिनोज़ हो या स्टारबक्स या पेप्सी या कोका-कोला। ये अमेरिकी ब्रांड आज घर-घर पहुँच चुके हैं। फ़ास्ट फ़ूड के मामले में भारत में अमेरिकी ब्रांड्स का दबदबा है। पेय पदार्थों में भी अमेरिकी ब्रांड्स काफ़ी आगे हैं। आज भी कोल्ड ड्रिंक्स में अमेरिकी ब्रांड्स लोगों की पहली पसंद हैं।

5. फ़ैशन में भी आगे

अमेरिकी फ़ैशन ब्रांड्स भी भारत में तेज़ी से बढ़ रहे हैं। लेवीज़, केल्विन क्लेन, टॉमी हिलफ़िगर, गैप आदि ऐसे ब्रांड्स हैं जिनके कपड़े भारत के युवाओं को पसंद आते हैं। इतना ही नहीं, फ़ुटवियर में भी अमेरिकी ब्रांड्स का दबदबा है। इनमें नाइकी, स्केचर्स, कॉनवर्स आदि शामिल हैं। हश पपीज़ और एलन एडमंड्स जैसे ब्रांड्स भी भारत में तेज़ी से बढ़ रहे हैं। वियरेबल्स की बात करें तो ऐप्पल, फिटबिट, गार्मिन, फ़ॉसिल, वूप आदि जैसे ब्रांड्स भी कई भारतीयों की पसंद हैं।

मिलेनियल्स और जेनरेशन Z सबसे आगे

मिलेनियल्स और जेनरेशन G पीढ़ी के युवा देश में विदेशी ब्रांडों, खासकर अमेरिकी ब्रांडों, को बढ़ावा देने में सबसे आगे हैं। 1997 और 2012 के बीच जन्मे लोगों को जेनरेशन Z कहा जाता है। 1981 और 1996 के बीच जन्मे लोगों को मिलेनियल्स कहा जाता है। स्टारबक्स कैफ़े से लेकर मैकडॉनल्ड्स तक, आपको मिलेनियल्स और जेनरेशन G के युवा बड़ी संख्या में मिल जाएँगे। यह पीढ़ी फ़ैशन के मामले में भी काफ़ी आगे है। इस पीढ़ी के युवा ब्रांड्स पर पैसा खर्च करने से नहीं हिचकिचाते। आईफ़ोन भी इन दोनों पीढ़ियों के युवाओं के बीच ज़्यादा लोकप्रिय हैं।

भारत में अमेरिकी कंपनियों का कारोबार कैसा है?

अमेरिकी टैरिफ़ के बाद भी भारत में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों पर कोई असर नहीं पड़ा है। बल्कि, ये कंपनियाँ लगातार भारत में निवेश कर रही हैं और अपने कारोबार का विस्तार कर रही हैं। भारत में कुछ कंपनियों का कारोबार इस प्रकार है:

1. Apple

आईफ़ोन बनाने वाली कंपनी Apple भारत में तेज़ी से अपने कारोबार का विस्तार कर रही है। पिछले वित्त वर्ष में, Apple ने भारत से 1.08 लाख करोड़ रुपये (12.8 अरब डॉलर) मूल्य के iPhone निर्यात किए, जो साल-दर-साल 42% की वृद्धि है। दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण कंपनी फॉक्सकॉन, कर्नाटक के देवनहल्ली प्लांट में 2.56 अरब डॉलर का निवेश कर रही है। फॉक्सकॉन भी iPhone बनाती है। इतना ही नहीं, Apple के iPhone बनाने वाली प्रमुख कंपनी होन हाई प्रिसिजन इंडस्ट्री कंपनी भी भारत में अपनी इकाई में लगभग 12,800 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।

2. ई-कॉमर्स

Amazon और Flipkart दोनों ही भारत में खूब कारोबार कर रही हैं। ये कंपनियाँ न सिर्फ़ डिलीवरी का काम कर रही हैं, बल्कि लोगों को रोज़गार भी मुहैया करा रही हैं। 'Amazon Business' ने साल 2024 में छोटे शहरों से 70% नए ग्राहक जोड़े। Amazon Business, Amazon की B2B मार्केटप्लेस शाखा है। इसके अलावा, कंपनी एक दिन में डिलीवरी पर भी काफ़ी काम कर रही है। कंपनी के अनुसार, एक दिन में डिलीवरी वाले उत्पादों की माँग में 60% की वृद्धि हुई है। कंपनी ने अपने कारोबार में 11 अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। अगर दोनों कंपनियों के राजस्व की बात करें, तो यहाँ Flipkart ने बाजी मार ली है। वित्तीय वर्ष 2024 में Flipkart का राजस्व 21 प्रतिशत बढ़कर 17,907 करोड़ रुपये हो गया। वहीं, Amazon के राजस्व में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

3. पेय पदार्थों की बिक्री में वृद्धि

भारत में अमेरिकी ब्रांड के पेय पदार्थों की बिक्री भी बढ़ी है। अगर स्टारबक्स की बात करें, तो कंपनी घाटे में रही है। भारत में स्टारबक्स ब्रांड का संचालन टाटा समूह की कंपनी टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है। दोनों कंपनियों की इसमें 50-50 प्रतिशत हिस्सेदारी है। टाटा स्टारबक्स को वित्त वर्ष 2025 में 135.7 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ, जो वित्त वर्ष 2024 के 82 करोड़ रुपये से 65 प्रतिशत अधिक है। वहीं, कंपनी का राजस्व 5 प्रतिशत बढ़कर 1,277 करोड़ रुपये हो गया। वहीं, कोला-कोला और पेप्सिको (पेप्सी बनाने वाली कंपनी) ने भी अच्छा मुनाफा कमाया।

ये कंपनियां भी कर रही हैं कारोबार का विस्तार

फास्ट-फूड और अन्य चीजें बनाने वाली कंपनियां भी देश में अपने कारोबार का विस्तार कर रही हैं। मैकडॉनल्ड्स हैदराबाद में एक नया टेक सेंटर खोलने जा रही है। कंपनी इसमें 10 करोड़ डॉलर यानी करीब 875 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। यह निवेश अगले कुछ वर्षों में किया जाएगा। मैकडॉनल्ड्स ने साल 2024 में 2.22 लाख करोड़ रुपये कमाए। यह कमाई साल 2023 से भी ज़्यादा है।

क्या प्रतिबंध या बहिष्कार संभव है?
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत में अमेरिकी कंपनियों पर प्रतिबंध या बहिष्कार संभव है? इन कंपनियों ने भारतीयों के बीच अपनी जो जगह बनाई है, उसे देखते हुए ऐसा नहीं लगता। भारत कई कंपनियों के लिए एक बड़ा बाज़ार बन गया है। ये कंपनियाँ भारत सरकार को अच्छा-खासा टैक्स भी देती हैं। ये कंपनियाँ भारत और यहाँ रहने वाले युवाओं के लिए भी काफ़ी महत्वपूर्ण लगती हैं। ऐसे में भारत में इन पर प्रतिबंध या बहिष्कार करना मुश्किल है।

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