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कभी लहरों से भरा था यह इलाका आज सिर्फ रेत ही रेत, 3 मिनट के इस वीडियो में जाने अथाह समुद्र से थार मरूस्थल बनने की कहानी

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भारत के उत्तर-पश्चिम में फैला हुआ थार मरुस्थल, जिसे ग्रेट इंडियन डेजर्ट के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा भौगोलिक आश्चर्य है जो न केवल अपनी विशाल रेत की पहाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके जन्म की कहानी भी उतनी ही रोचक और रहस्यमयी है। क्या आप जानते हैं कि कभी यह विशाल मरुस्थल एक सागर था? हां, थार मरुस्थल का अतीत एक जलीय संसार में छिपा हुआ है, जिसे भूगोल और भूविज्ञान की आंखों से देखा जाए तो यह धरती के हजारों वर्षों के बदलाव की कहानी कहता है।

समुद्र से रेगिस्तान बनने की रहस्यमयी यात्रा
भूवैज्ञानिकों के अनुसार, थार मरुस्थल कभी टेथिस सागर का हिस्सा हुआ करता था। करोड़ों साल पहले जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स सक्रिय रूप से गतिशील थीं, तब भारतीय उपमहाद्वीप धीरे-धीरे यूरेशियन प्लेट की ओर बढ़ रहा था। इसी दौरान टेथिस सागर सिकुड़ता गया और हिमालय का निर्माण हुआ। जैसे-जैसे यह सागर पीछे हटता गया, वैसे-वैसे इसके तल पर मौजूद जल धीरे-धीरे सूखता गया और वहां शुष्कता का विस्तार हुआ।टेथिस सागर के स्थान पर आज का थार मरुस्थल स्थित है। यह प्रक्रिया लाखों वर्षों में हुई और इस क्षेत्र की जलवायु, पारिस्थितिकी और मिट्टी की रचना में विशाल परिवर्तन लाती गई। टेथिस के पीछे हटने से जो खारी मिट्टी, खनिज, और नमकीन भूमियां बनीं, वे आज थार की पहचान बन चुकी हैं।

जलवायु परिवर्तन और मानव प्रभाव
जहां एक समय में यह इलाका पानी से लबालब रहा करता था, वहीं अब यह भारत के सबसे शुष्क क्षेत्रों में गिना जाता है। जलवायु परिवर्तन और मानसून प्रणाली में आए दीर्घकालिक बदलावों ने भी थार को रेगिस्तान में बदलने में बड़ी भूमिका निभाई। वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 5,000 साल पहले तक यह क्षेत्र घास के मैदानों और झीलों से भरा था।मानव बस्तियों की भी इस परिवर्तन में भूमिका रही है। हड़प्पा सभ्यता के अवशेष थार मरुस्थल में कई जगह पाए गए हैं, जो बताते हैं कि एक समय यह क्षेत्र खेती और जल-स्रोतों से समृद्ध था। लेकिन जैसे-जैसे मानसून कमजोर हुआ और नदियों का प्रवाह बदला, वैसे-वैसे यह इलाका रहने योग्य नहीं रह गया और धीरे-धीरे मरुस्थलीकरण शुरू हो गया।

थार की भूगर्भीय संरचना
थार की रचना मुख्यतः बालू, चूना पत्थर, कंकड़ और नमकीन मिट्टी से हुई है। यहां की भूमि नमी को अधिक समय तक रोक नहीं पाती और जल के अभाव में वनस्पति का विकास भी सीमित है। यह क्षेत्र पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा तक फैला है और भारत में राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है।इंद्रधनुषी रेत के टीलों, रेत की आंधियों और खरबूजों जैसे वृत्ताकार टीलों की बनावट भूगोल के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए एक अध्ययन का विषय रही है। यह रेगिस्तान न केवल भूगर्भीय इतिहास को दर्शाता है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विविधता का भी गवाह है।

सिंधु और सरस्वती नदियों की भूमिका
थार के जल-इतिहास की बात की जाए तो प्राचीन सरस्वती नदी का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक मानते हैं कि सरस्वती नदी, जो आज विलुप्त हो चुकी है, इसी क्षेत्र से होकर बहती थी और थार को जल से सींचती थी। जब सरस्वती और घग्गर-हाकड़ा जैसी नदियों का प्रवाह धीरे-धीरे कम हुआ, तो इस क्षेत्र में सूखे की स्थिति बनी और यह मरुस्थल में बदलता चला गया।सिंधु नदी प्रणाली भी प्राचीन काल में इस क्षेत्र को प्रभावित करती थी, लेकिन हिमालय से निकलने वाली नदियों का बहाव जब उत्तर की ओर स्थानांतरित हुआ, तो थार में जल की कमी ने इसे स्थायी रूप से सूखा बना दिया।

आज का थार: रहन-सहन और संस्कृति
आज थार मरुस्थल भले ही एक शुष्क क्षेत्र हो, लेकिन इसकी सांस्कृतिक विरासत, लोककला, परंपराएं और जीवनशैली इसे जीवंत बनाए रखती हैं। यहां के निवासी कठिन जलवायु में भी जीने की कला जानते हैं। राजस्थानी लोक संगीत, माटी से बने घर, ऊंटों की सवारी, और मेलों का उल्लास इसे एक खास पहचान देते हैं।थार में बसे जैसलमेर, बीकानेर, और बाड़मेर जैसे शहर अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और रेगिस्तानी पर्यटन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। आज यहां थार फेस्टिवल जैसे आयोजन होते हैं जो देश-विदेश से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

निष्कर्ष
थार मरुस्थल की उत्पत्ति एक सागर से हुई थी – यह बात जितनी आश्चर्यजनक है, उतनी ही यह पृथ्वी के भूगर्भीय परिवर्तन की एक सजीव मिसाल भी है। आज यह क्षेत्र एक ओर जहां चुनौतियों से भरा हुआ है, वहीं दूसरी ओर यह भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और मानव जिजीविषा का प्रतीक भी है।जो क्षेत्र कभी पानी में डूबा रहता था, वह आज सूर्य की तपिश में चमकता है – और यह परिवर्तन ही इसे इतना खास बनाता है। थार मरुस्थल की रेत में इतिहास के कई अध्याय दबे हुए हैं, जिन्हें जानना और समझना हमारे लिए आवश्यक है, क्योंकि यही हमें पृथ्वी के अतीत से जोड़ते हैं।

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