भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भीमाशंकर का स्थान छठा है और यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। महाराष्ट्र में स्थित इस ज्योतिर्लिंग को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें एक त्रेतायुग और दूसरी द्वापर युग की है। इन दोनों कथाओं के माध्यम से हम जानते हैं कि कैसे यह मंदिर भगवान शिव की साक्षात शक्तियों से जागृत है और यह शिवजी के अद्भुत रौद्र रूप को दर्शाता है।
भीमाशंकर का नाम और ऐतिहासिक महत्वभीमाशंकर नाम क्यों पड़ा, इसके पीछे एक दिलचस्प कथा है। यह कथा त्रेतायुग से जुड़ी है, जब एक असुर, भीमा, ने भगवान शिव की तपस्या कर अमरता का वरदान प्राप्त किया था। लेकिन जब उसने इस वरदान का दुरुपयोग करना शुरू किया, तो भगवान शिव ने उसे समाप्त करने के लिए देवी कामाख्या की मदद ली। भीमाशंकर मंदिर में यह कथाएं आज भी जीवित हैं और इस स्थान को भगवान शिव की शक्तियों से जुड़ा माना जाता है।
दो स्थानों पर भीमाशंकरदेश में दो स्थानों पर “भीमाशंकर” नाम के मंदिर हैं – एक असम में और दूसरा महाराष्ट्र में। दोनों ही स्थानों को ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है, लेकिन महाराष्ट्र के भीमाशंकर मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व बहुत अधिक है। एक समय असम सरकार ने दाकिनी स्थित भीमाशंकर को देश का छठा ज्योतिर्लिंग घोषित किया था, जिस पर महाराष्ट्र सरकार ने आपत्ति जताई थी। दोनों सरकारों ने शिव पुराण के उन श्लोकों का हवाला दिया, जिनमें “भीमाशंकर” और “डाकिनी” के स्थानों का जिक्र है।
शिव पुराण में डाकिनी का वर्णनशिव पुराण में डाकिनी नाम की एक असुर की पत्नी भीमा का उल्लेख है, जिसने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त किया था। लेकिन इस वरदान का दुरुपयोग करते हुए वह पृथ्वी पर अत्याचार करने लगा। तब भगवान शिव ने उसे समाप्त करने का प्रण लिया और देवी कामाख्या की मदद से उसकी हत्या की। इस युद्ध में भगवान शिव ने डाकिनी को भी वरदान दिया कि “भीमाशंकर” नाम में पहले भीमा का नाम लिया जाएगा, और यही कारण है कि आज भी महाराष्ट्र में स्थित इस मंदिर का नाम “भीमाशंकर” है।
महाराष्ट्र में भीमाशंकर का ऐतिहासिक महत्वमहाराष्ट्र में स्थित भीमाशंकर मंदिर की विशेषता यह है कि यह क्षेत्र भगवान शिव के महाक्षेत्रों में शामिल है, जहां उनके भक्त द्वापर युग में भी आए थे। पांडवों ने यहां एक भव्य मंदिर बनवाया था, जिसे बाद में छत्रपति शिवाजी ने और विस्तार दिया। शिवाजी महाराज के समय में इस क्षेत्र में 108 तीर्थ स्थल हुआ करते थे। इस मंदिर में आज भी भक्तों की भीड़ लगी रहती है, और यह जगह दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत मानी जाती है।
भीमा नदी और चमत्कारी कुंडमंदिर के परिसर में स्थित भीमा नदी, जो भयंकर युद्ध के दौरान सूख गई थी, आज भी बहती है। यह नदी भगवान शिव के शरीर से पसीना निकलने के बाद पुनः बहने लगी थी, और इसे पवित्र माना जाता है। मंदिर परिसर में एक कुंड भी है, जिसके जल को चमत्कारी माना जाता है। यह जल भक्तों के लिए एक पवित्र और शुभ स्थान है।
वर्तमान में भीमाशंकरभीमाशंकर आज भी महाराष्ट्र के पुणे जिले के पास स्थित है और यह जगह प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक शांति से भरपूर है। यहां की घाटियां, घने जंगल और पहाड़, साथ ही भारी बारिश के कारण यह स्थान भक्तों के लिए एक आदर्श तीर्थ स्थल बन चुका है। इस स्थान की पौराणिक मान्यताएं इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित करती हैं।
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