पुराने लखनऊ की तंग और घुमावदार गलियों के बीच, याहियागंज इलाके में एक ऐसा मकबरा है, जो पहली नज़र में 'नादान' लग सकता है, लेकिन इसकी दीवारों में मुग़ल सल्तनत की सबसे गहरी वफादारी का एक 'समझदार' राज दफन है. इस मकबरे का नाम है नादान महल.यह लखनऊ की सबसे पुरानी मुगलकालीन इमारतों में से एक है. लेकिन यह सिर्फ एक मकबरा नहीं, बल्कि एक दरगाह भी है, जिसे लोग 'मुक्ति का मकबरा' कहते हैं.क्यों पड़ा इसका नाम 'नादान महल'?असल में, इसका असली नाम 'निदान महल' था. 'निदान' का मतलब होता है 'समस्या का हल' या 'मुक्ति'. यह मकबरा मुगल बादशाह अकबर के भरोसेमंद सूबेदार शेख अब्दुर रहीम का है. कहते हैं कि लोग यहां आकर अपनी मुसीबतों से 'निदान' पाने की दुआ मांगते थे, और उनकी मुरादें पूरी होती थीं. समय के साथ 'निदान' शब्द बोलचाल में बदलकर 'नादान' हो गया.दोस्ती की वो कहानी, जो इतिहास बन गईइस मकबरे की सबसे दिलचस्प कहानी शेख अब्दुर रहीम की वफादारी की है, जिसने बादशाह अकबर को भी उनका कर्जदार बना दिया.कहते हैं कि एक बार ज्योतिषियों ने बादशाह अकबर को चेतावनी दी कि आने वाले दो दिन उनके लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं. सल्तनत को बचाने के लिए अकबर ने एक तरकीब सोची. उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त और सूबेदार, शेख अब्दुर रहीम को दो दिनों के लिए अपनी जगह बादशाह बना दिया और खुद एक आम आदमी की तरह रहने लगे.हुआ भी वही जिसका डर था. जैसे ही वह अशुभ समय खत्म होने वाला था, शाही पोशाक में एक बेहद ज़हरीला सांप मिला. वह सांप उस व्यक्ति को डसने के लिए था जो बादशाह की गद्दी पर बैठा था. इस तरह, शेख अब्দুর रहीम ने मौत के खतरे को अपने ऊपर ले लिया और अपने बादशाह दोस्त की जान बचा ली.मकबरे की वास्तुकलायह मकबरा मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है.आज यह मकबरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की देखरेख में है. समय ने इसकी बाहरी चमक को भले ही थोड़ा धुंधला कर दिया हो, लेकिन इसके अंदर छिपी दोस्ती और वफादारी की कहानी आज भी उतनी ही रोशन है.
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