नई दिल्ली: रूस सदियों से भारत का परंपरागत, भरोसेमंद और करीबी दोस्त रहा है। मगर, रूस पर इन दिनों पाकिस्तान भी डोरे डाल रहा है। हाल ही में ऐसी खबरें आई थीं कि रूस अब पाकिस्तान को उसके फाइटर जेट JF-17 थंडर के लिए RD-93MA इंजन देगा। हालांकि, रूस ने ऐसी रिपोर्टों को खारिज कर दिया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर आने वाले हैं। ऐसे में रूस पाकिस्तान के साथ मामूली लाभ के लिए भारत के साथ इन रणनीतिक और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण अवसरों को खतरे में डालने की संभावना नहीं रखता।
रूस और भारत के बीच S-400 डिफेंस जैसी डील
दरअसल, रूस और भारत दशकों से हर स्तर पर सहयोगी रहे हैं। आजादी के बाद से ही भारत ने अपनी पंचवर्षीय योजनाओं में रूस का समाजवादी मॉडल अपनाया। शीत युद्ध के जमाने से ही दोनों देशों के बीच मजबूत रक्षा संबंध भी रहे हैं। भारत को फाइटर जेट्स देने से लेकर मौजूदा S-400 डिफेंस देने और आईएनएस विक्रमादित्य को बनाने तक में रूस हमारा सहयोगी रहा है। दोनों देशों के बीच सैन्य हार्डवेयर, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष क्षेत्र में मजबूत साझेदारी है।
रूस उन खबरों को बता चुका है बेसलेस
हालांकि, द इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने उन खबरों को खारिज कर दिया है जिनमें कहा गया था कि वह चीन द्वारा पाकिस्तान को आपूर्ति किए जा रहे जेएफ-17 लड़ाकू विमानों के इंजन उपलब्ध कराने की योजना बना रहा है। रूस ने ऐसी खबरों को शरारतपूर्ण और निराधार बताया है। उच्च पदस्थ सूत्रों ने ईटी को बताया कि रूस और भारत के बीच यह समझौता है कि मास्को पाकिस्तान को कभी भी ऐसा कोई रक्षा उपकरण और हार्डवेयर नहीं देगा जो भारत के हितों के लिए हानिकारक हो।
क्या है JF-17 विमान, जिसका इंजन देता है रूस
पाकिस्तान और चीन का 4.5 पीढ़ी का बहुउद्देशीय JF-17 पाक एयरफोर्स (PAF) का सबसे ताकतवर विमान है। इसकी 150 से ज्यादा यूनिट सेवा में है। इसके ब्लॉक III संस्करणों में AESA रडार, PL-15 मिसाइलें और हेलमेट माउंटेड क्यू लगे हैं। इसमें रूसी इंजन RD-93MA लगे हैं, जो इसे ताकतवर बनाते हैं। ये उन्नत आफ्टरबर्निंग टर्बोफैन इंजन है, जो 93 किलोन्यूटन का थ्रस्ट देते हैं। यह इंजन नियंत्रण रेखा (LOC) जैसे काफी ऊंचाई वाले अभियानों के लिए जेट की क्षमता को बढ़ाते हैं।
इस मसले पर नए सिरे से ध्यान देना जरूरी
OBSERVER RESEARCH FOUNDATION (ORF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि मास्को उन्नत संस्करणों सहित इंजन जैसी इन आपूर्तियों को जारी रख रहा है, यह कोई नई बात नहीं है। भले ही जैसा कि कुछ आलोचकों ने आरोप लगाया है, रूस ने इन निर्यातों को रोकने के भारतीय अनुरोधों को नजरअंदाज कर दिया हो, कम से कम 2007 से यही स्थिति रही है। इसलिए, इस समय इस मुद्दे पर नए सिरे से ध्यान देना जरूरी है। फिर भी, भविष्य की दिशा का आकलन करने के लिए पाकिस्तान के साथ रूस के रक्षा संबंधों पर पुनर्विचार करना उचित है।
अमेरिका-फ्रांस भी भारत-पाक दोनों को देते हैं हथियार
पाकिस्तान को रक्षा प्रणाली बेचने के रूस के इरादे को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। रूसी सैन्य विशेषज्ञ लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि मॉस्को को दक्षिण एशिया के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए। वहीं, भारत और पाकिस्तान दोनों को हथियार आपूर्ति करने का लाभ उठाना चाहिए। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि रूस के विपरीत भारत के अन्य हथियार आपूर्तिकर्ता जैसे अमेरिका और फ्रांस नई दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों को हथियार बेचने में सक्षम रहे हैं और फिर भी कॉन्ट्रैक्ट की बोली के दौरान रूसी बोलीदाताओं पर उन्हें प्राथमिकता दी गई है।
पाकिस्तान को हथियार देना खतरे से खाली नहीं
इस बीच, एक्सपर्ट यह तर्क देते रहे हैं कि रूस को भारत के साथ अपनी साझेदारी में विशेषाधिकारों के नाम पर खुद को सीमित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस्लामाबाद की सीमित क्रय क्षमता के अलावा, रूस और पाकिस्तान के क्षेत्रीय मकसद और दीर्घावधि में पाकिस्तान की विदेश नीति की व्यापक अनिश्चितता को लेकर गहरी चिंताएं हैं।
कंगाल पाकिस्तान बिना किसी कर्ज के नहीं खरीद पाएगा
रिपोर्ट के अनुसार, कोई भी महत्वपूर्ण सौदा तभी संभव होगा जब रूस पाकिस्तानी सरकार को ऋण दे। इससे न केवल एक विश्वसनीय और आर्थिक रूप से स्थिर साझेदार अलग-थलग पड़ जाएगा, बल्कि ऐसी व्यवस्था रूस के अपने आर्थिक हितों के लिए भी शायद ही फायदेमंद होगी, खासकर ऐसे समय में जब मास्को को खुद सख्त मुद्रा की आवश्यकता है।
एक बार भारत ने रद्द करवा दिया था सौदा
ORF पर छपी स्टोरी के अनुसार, यह बहस 1990 के दशक से चली आ रही है जब मास्को पाकिस्तान को Su-27 विमान देने वाला था। तब विदेश मंत्रालय की जोरदार पैरवी और रूस-पाकिस्तान के राजनीतिक संबंधों में सामान्य गर्मजोशी के बावजूद अंततः यह सौदा रद्द कर दिया गया। इनमें पाकिस्तान की रूस से हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, टैंक, स्टील्थ फ्रिगेट और तोपें सहित विभिन्न रक्षा प्रणालियां खरीदने की इच्छा भी शामिल थी। इनमें से ज्यादातर पाकिस्तानी प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ पाए और भारत की आपत्तियों के कारण रूस ने उन्हें रोक दिया। हालांकि, जो हुआ वह रूस द्वारा Mi-17/171 दोहरे उपयोग वाले परिवहन हेलीकॉप्टरों का प्रावधान था, जो 1996 और 2016 के बीच कई खेपों में पाकिस्तान को दिए गए। इनमें चार Mi-35M लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी थे।
भारत ने कम की निर्भरता तो पाकिस्तान को मिला मौका
भारत ने रूसी सैन्य उपकरणों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है, ऐसे में पाकिस्तान को यह मौका मिल गया। रूसी विशेषज्ञों ने 2019 में अनुमान लगाया था कि पाकिस्तान की रूसी हथियारों की मांग संभावित रूप से 8-9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकती है। हालांकि, ये अनुमान अक्सर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की नाज़ुक स्थिति को ध्यान में नहीं रखते, जो नकदी की कमी से जूझ रही है और बाहरी मदद पर निर्भर है।
पाकिस्तान में रूसी इंजनों की कहानी
2007 और 2010 में, रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने चीन को 250 RD-93 इंजन निर्यात करने के सौदे किए, जिसमें 400 अतिरिक्त इकाइयों का विकल्प और उन्हें पाकिस्तान सहित तीसरे देशों को हस्तांतरित करने का अधिकार शामिल था। नवंबर 2014 में रूस-पाकिस्तान सैन्य सहयोग समझौते के बाद, पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि वे इन इंजनों को सीधे रूस से खरीद सकेंगे। उन्होंने वहाँ इंजन विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने में रुचि जताई है। वहीं, पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स की इंजन-मरम्मत सुविधाओं के आधुनिकीकरण में मास्को की सहायता मांगी है।
ये इंजन चीन के रास्ते पाकिस्तान आते हैं
हालांकि, इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है कि रूस ने इंजनों और स्पेयर पार्ट्स की डिलीवरी के अलावा ऐसा कोई समझौता किया है। ये इंजन भी चीन के रास्ते पाकिस्तान को निर्यात किए जाते हैं। RD-93 को घरेलू स्तर पर विकसित WS-13 इंजन से बदलने के चीन के प्रयासों के बावजूद चीन और पाकिस्तान दोनों ही रूस निर्मित इंजनों पर निर्भर हैं, जिन्हें अधिक विश्वसनीय और टिकाऊ माना जाता है। RD-93, रूसी मिग-29 लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल होने वाले RD-33 इंजन का एक निर्यात संस्करण है, जिसे मुख्य रूप से चीनी चेंगदू एफसी-1/पाकिस्तानी जेएफ-17 थंडर को शक्ति प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
रूस के साथ लगातार सैन्याभ्यास कर रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान लगातार रूस के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है। इसे उसने आतंकवाद-रोधी अभ्यास 'द्रुज्बा' नाम दिया है। बीते 15 से 27 सितंबर 2025 तक रूस के दक्षिणी सैन्य जिले में यह अभ्यास आयोजित किया गया था। इस अभ्यास में ड्रोन युद्ध, निर्मित क्षेत्रों में लड़ाई और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों का मुकाबले पर फोकस किया गया था। ये अभ्यास 2022 और 2023 को छोड़कर सितंबर 2016 से नियमित रूप से आयोजित किए जा रहे हैं। मार्च 2025 में, रूसी और पाकिस्तानी नौसेनाओं ने उत्तरी अरब सागर में अरब मानसून संयुक्त अभ्यास किया।
रूस और भारत के बीच S-400 डिफेंस जैसी डील
दरअसल, रूस और भारत दशकों से हर स्तर पर सहयोगी रहे हैं। आजादी के बाद से ही भारत ने अपनी पंचवर्षीय योजनाओं में रूस का समाजवादी मॉडल अपनाया। शीत युद्ध के जमाने से ही दोनों देशों के बीच मजबूत रक्षा संबंध भी रहे हैं। भारत को फाइटर जेट्स देने से लेकर मौजूदा S-400 डिफेंस देने और आईएनएस विक्रमादित्य को बनाने तक में रूस हमारा सहयोगी रहा है। दोनों देशों के बीच सैन्य हार्डवेयर, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष क्षेत्र में मजबूत साझेदारी है।
रूस उन खबरों को बता चुका है बेसलेस
हालांकि, द इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने उन खबरों को खारिज कर दिया है जिनमें कहा गया था कि वह चीन द्वारा पाकिस्तान को आपूर्ति किए जा रहे जेएफ-17 लड़ाकू विमानों के इंजन उपलब्ध कराने की योजना बना रहा है। रूस ने ऐसी खबरों को शरारतपूर्ण और निराधार बताया है। उच्च पदस्थ सूत्रों ने ईटी को बताया कि रूस और भारत के बीच यह समझौता है कि मास्को पाकिस्तान को कभी भी ऐसा कोई रक्षा उपकरण और हार्डवेयर नहीं देगा जो भारत के हितों के लिए हानिकारक हो।
क्या है JF-17 विमान, जिसका इंजन देता है रूस
पाकिस्तान और चीन का 4.5 पीढ़ी का बहुउद्देशीय JF-17 पाक एयरफोर्स (PAF) का सबसे ताकतवर विमान है। इसकी 150 से ज्यादा यूनिट सेवा में है। इसके ब्लॉक III संस्करणों में AESA रडार, PL-15 मिसाइलें और हेलमेट माउंटेड क्यू लगे हैं। इसमें रूसी इंजन RD-93MA लगे हैं, जो इसे ताकतवर बनाते हैं। ये उन्नत आफ्टरबर्निंग टर्बोफैन इंजन है, जो 93 किलोन्यूटन का थ्रस्ट देते हैं। यह इंजन नियंत्रण रेखा (LOC) जैसे काफी ऊंचाई वाले अभियानों के लिए जेट की क्षमता को बढ़ाते हैं।
इस मसले पर नए सिरे से ध्यान देना जरूरी
OBSERVER RESEARCH FOUNDATION (ORF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि मास्को उन्नत संस्करणों सहित इंजन जैसी इन आपूर्तियों को जारी रख रहा है, यह कोई नई बात नहीं है। भले ही जैसा कि कुछ आलोचकों ने आरोप लगाया है, रूस ने इन निर्यातों को रोकने के भारतीय अनुरोधों को नजरअंदाज कर दिया हो, कम से कम 2007 से यही स्थिति रही है। इसलिए, इस समय इस मुद्दे पर नए सिरे से ध्यान देना जरूरी है। फिर भी, भविष्य की दिशा का आकलन करने के लिए पाकिस्तान के साथ रूस के रक्षा संबंधों पर पुनर्विचार करना उचित है।
अमेरिका-फ्रांस भी भारत-पाक दोनों को देते हैं हथियार
पाकिस्तान को रक्षा प्रणाली बेचने के रूस के इरादे को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। रूसी सैन्य विशेषज्ञ लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि मॉस्को को दक्षिण एशिया के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए। वहीं, भारत और पाकिस्तान दोनों को हथियार आपूर्ति करने का लाभ उठाना चाहिए। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि रूस के विपरीत भारत के अन्य हथियार आपूर्तिकर्ता जैसे अमेरिका और फ्रांस नई दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों को हथियार बेचने में सक्षम रहे हैं और फिर भी कॉन्ट्रैक्ट की बोली के दौरान रूसी बोलीदाताओं पर उन्हें प्राथमिकता दी गई है।
पाकिस्तान को हथियार देना खतरे से खाली नहीं
इस बीच, एक्सपर्ट यह तर्क देते रहे हैं कि रूस को भारत के साथ अपनी साझेदारी में विशेषाधिकारों के नाम पर खुद को सीमित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस्लामाबाद की सीमित क्रय क्षमता के अलावा, रूस और पाकिस्तान के क्षेत्रीय मकसद और दीर्घावधि में पाकिस्तान की विदेश नीति की व्यापक अनिश्चितता को लेकर गहरी चिंताएं हैं।
कंगाल पाकिस्तान बिना किसी कर्ज के नहीं खरीद पाएगा
रिपोर्ट के अनुसार, कोई भी महत्वपूर्ण सौदा तभी संभव होगा जब रूस पाकिस्तानी सरकार को ऋण दे। इससे न केवल एक विश्वसनीय और आर्थिक रूप से स्थिर साझेदार अलग-थलग पड़ जाएगा, बल्कि ऐसी व्यवस्था रूस के अपने आर्थिक हितों के लिए भी शायद ही फायदेमंद होगी, खासकर ऐसे समय में जब मास्को को खुद सख्त मुद्रा की आवश्यकता है।
एक बार भारत ने रद्द करवा दिया था सौदा
ORF पर छपी स्टोरी के अनुसार, यह बहस 1990 के दशक से चली आ रही है जब मास्को पाकिस्तान को Su-27 विमान देने वाला था। तब विदेश मंत्रालय की जोरदार पैरवी और रूस-पाकिस्तान के राजनीतिक संबंधों में सामान्य गर्मजोशी के बावजूद अंततः यह सौदा रद्द कर दिया गया। इनमें पाकिस्तान की रूस से हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, टैंक, स्टील्थ फ्रिगेट और तोपें सहित विभिन्न रक्षा प्रणालियां खरीदने की इच्छा भी शामिल थी। इनमें से ज्यादातर पाकिस्तानी प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ पाए और भारत की आपत्तियों के कारण रूस ने उन्हें रोक दिया। हालांकि, जो हुआ वह रूस द्वारा Mi-17/171 दोहरे उपयोग वाले परिवहन हेलीकॉप्टरों का प्रावधान था, जो 1996 और 2016 के बीच कई खेपों में पाकिस्तान को दिए गए। इनमें चार Mi-35M लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी थे।
भारत ने कम की निर्भरता तो पाकिस्तान को मिला मौका
भारत ने रूसी सैन्य उपकरणों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है, ऐसे में पाकिस्तान को यह मौका मिल गया। रूसी विशेषज्ञों ने 2019 में अनुमान लगाया था कि पाकिस्तान की रूसी हथियारों की मांग संभावित रूप से 8-9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकती है। हालांकि, ये अनुमान अक्सर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की नाज़ुक स्थिति को ध्यान में नहीं रखते, जो नकदी की कमी से जूझ रही है और बाहरी मदद पर निर्भर है।
पाकिस्तान में रूसी इंजनों की कहानी
2007 और 2010 में, रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने चीन को 250 RD-93 इंजन निर्यात करने के सौदे किए, जिसमें 400 अतिरिक्त इकाइयों का विकल्प और उन्हें पाकिस्तान सहित तीसरे देशों को हस्तांतरित करने का अधिकार शामिल था। नवंबर 2014 में रूस-पाकिस्तान सैन्य सहयोग समझौते के बाद, पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि वे इन इंजनों को सीधे रूस से खरीद सकेंगे। उन्होंने वहाँ इंजन विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने में रुचि जताई है। वहीं, पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स की इंजन-मरम्मत सुविधाओं के आधुनिकीकरण में मास्को की सहायता मांगी है।
ये इंजन चीन के रास्ते पाकिस्तान आते हैं
हालांकि, इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है कि रूस ने इंजनों और स्पेयर पार्ट्स की डिलीवरी के अलावा ऐसा कोई समझौता किया है। ये इंजन भी चीन के रास्ते पाकिस्तान को निर्यात किए जाते हैं। RD-93 को घरेलू स्तर पर विकसित WS-13 इंजन से बदलने के चीन के प्रयासों के बावजूद चीन और पाकिस्तान दोनों ही रूस निर्मित इंजनों पर निर्भर हैं, जिन्हें अधिक विश्वसनीय और टिकाऊ माना जाता है। RD-93, रूसी मिग-29 लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल होने वाले RD-33 इंजन का एक निर्यात संस्करण है, जिसे मुख्य रूप से चीनी चेंगदू एफसी-1/पाकिस्तानी जेएफ-17 थंडर को शक्ति प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
रूस के साथ लगातार सैन्याभ्यास कर रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान लगातार रूस के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है। इसे उसने आतंकवाद-रोधी अभ्यास 'द्रुज्बा' नाम दिया है। बीते 15 से 27 सितंबर 2025 तक रूस के दक्षिणी सैन्य जिले में यह अभ्यास आयोजित किया गया था। इस अभ्यास में ड्रोन युद्ध, निर्मित क्षेत्रों में लड़ाई और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों का मुकाबले पर फोकस किया गया था। ये अभ्यास 2022 और 2023 को छोड़कर सितंबर 2016 से नियमित रूप से आयोजित किए जा रहे हैं। मार्च 2025 में, रूसी और पाकिस्तानी नौसेनाओं ने उत्तरी अरब सागर में अरब मानसून संयुक्त अभ्यास किया।
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