नई दिल्ली: अमेरिका ने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। इनके साथ लेनदेन करने वाले विदेशी बैंकों पर सेकेंडरी सैंक्शंस की तलवार भी लटका दी है। इसके चलते भारत पर रूस से कच्चे तेल का आयात कम करने का दबाव बढ़ गया है। भारत अभी भी अपने कुल कच्चे तेल आयात का 33% रूस से खरीद रहा है। लेकिन, नोमुरा इंडिया के अनुसार, नवंबर के अंत के बाद यह हिस्सेदारी घटने की संभावना है। भारतीय रिफाइनरी कंपनियां अब मिडिल ईस्ट और अमेरिका से तेल खरीदने की ओर बढ़ रही हैं। इसने कई तरह के सवाल भी खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा तो यही है कि अगर भारत ने रूस से तेल खरीद घटा दी या बिल्कुल बंद कर दी तो इसका क्या असर होगा।
इस बदलाव से भारत के तेल आयात का खर्च बढ़ जाएगा। हालांकि, नोमुरा का मानना है कि रूस के तेल पर मिलने वाली 1.8-2.2 डॉलर प्रति बैरल की छूट के कारण इसका सीधा असर जीडीपी पर सिर्फ 0.04% ही होगा। लेकिन, ग्लोबल तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अप्रत्यक्ष असर ज्यादा महत्वपूर्ण होने के आसार हैं। नोमुरा का यह भी कहना है कि अगर इस बदलाव से अमेरिका के साथ व्यापार समझौता होता है और टैरिफ कम होते हैं तो भारत को फायदा भी हो सकता है।
नवंंबर के बाद 25% अतिरिक्त टैरिफ हटने का अनुमान
नोमुरा ने कहा, 'हमारा वर्तमान अनुमान है कि नवंबर के बाद 25% अतिरिक्त टैरिफ हटा दिया जाएगा। यह रूसी तेल खरीदने के कारण जुर्माने के तौर पर लगा है। वहीं, 25% रेसिप्रोकल टैरिफ वित्तीय वर्ष 2025-26 तक बना रहेगा।'
पिछले हफ्ते कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल आया। ऐसा तीन हफ्तों की गिरावट के बाद भू-राजनीतिक और व्यापारिक घटनाओं के कारण हुआ। अमेरिकी सरकार ने रूसी तेल दिग्गजों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए। इससे सप्लाई की चिंताएं फिर से बढ़ गईं। कीमतें 61 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गईं।
नोमुरा ने कहा, 'कुल मिलाकर हमारा मानना है कि रूस से तेल आयात को कम करने की लागत अमेरिकी टैरिफ में कमी के फायदे से कहीं ज्यादा होगी।' पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारत रूसी तेल आयात बंद कर देगा। उन्होंने कहा कि यह तुरंत नहीं होगा। लेकिन, यह एक प्रक्रिया है और यह जल्द ही पूरी हो जाएगी। नोमुरा के अनुसार, भारत की ओर से इस दावे की न तो पुष्टि की गई और न ही खंडन।
बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है भारत
मेहता इक्विटीज के वीपी (कमोडिटीज) राहुल कालंतरी ने कहा कि चीन और भारत के साथ व्यापार वार्ता को लेकर आशावाद ने भी बाजार की भावना को और बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा, 'रिकवरी के बावजूद ग्लोबल मार्केट्स में लगातार अधिक सप्लाई और अमेरिकी सरकार के शटडाउन से पैदा हुई अनिश्चितता किसी भी बड़ी बढ़ोतरी को सीमित कर सकती है। हम उम्मीद करते हैं कि कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर रहेंगी।'
यह स्थिति भारत के लिए महत्वपूर्ण मोड़ है। अमेरिका के प्रतिबंधों और रूस के साथ व्यापारिक संबंधों पर बढ़ते दबाव के बीच भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों के बीच संतुलन बनाना होगा। तेल आयात के स्रोतों में विविधता लाना भारत के लिए रणनीतिक कदम हो सकता है। इससे वह अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार की अस्थिरता से कुछ हद तक बच सकेगा। हालांकि, इस बदलाव से जुड़े अतिरिक्त खर्चों और संभावित व्यापारिक लाभों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत होगी। अमेरिकी टैरिफ में कमी की उम्मीदें इस बदलाव को भारत के लिए अधिक फायदेमंद बना सकती हैं।
इस बदलाव से भारत के तेल आयात का खर्च बढ़ जाएगा। हालांकि, नोमुरा का मानना है कि रूस के तेल पर मिलने वाली 1.8-2.2 डॉलर प्रति बैरल की छूट के कारण इसका सीधा असर जीडीपी पर सिर्फ 0.04% ही होगा। लेकिन, ग्लोबल तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अप्रत्यक्ष असर ज्यादा महत्वपूर्ण होने के आसार हैं। नोमुरा का यह भी कहना है कि अगर इस बदलाव से अमेरिका के साथ व्यापार समझौता होता है और टैरिफ कम होते हैं तो भारत को फायदा भी हो सकता है।
नवंंबर के बाद 25% अतिरिक्त टैरिफ हटने का अनुमान
नोमुरा ने कहा, 'हमारा वर्तमान अनुमान है कि नवंबर के बाद 25% अतिरिक्त टैरिफ हटा दिया जाएगा। यह रूसी तेल खरीदने के कारण जुर्माने के तौर पर लगा है। वहीं, 25% रेसिप्रोकल टैरिफ वित्तीय वर्ष 2025-26 तक बना रहेगा।'
पिछले हफ्ते कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल आया। ऐसा तीन हफ्तों की गिरावट के बाद भू-राजनीतिक और व्यापारिक घटनाओं के कारण हुआ। अमेरिकी सरकार ने रूसी तेल दिग्गजों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए। इससे सप्लाई की चिंताएं फिर से बढ़ गईं। कीमतें 61 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गईं।
नोमुरा ने कहा, 'कुल मिलाकर हमारा मानना है कि रूस से तेल आयात को कम करने की लागत अमेरिकी टैरिफ में कमी के फायदे से कहीं ज्यादा होगी।' पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारत रूसी तेल आयात बंद कर देगा। उन्होंने कहा कि यह तुरंत नहीं होगा। लेकिन, यह एक प्रक्रिया है और यह जल्द ही पूरी हो जाएगी। नोमुरा के अनुसार, भारत की ओर से इस दावे की न तो पुष्टि की गई और न ही खंडन।
बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है भारत
मेहता इक्विटीज के वीपी (कमोडिटीज) राहुल कालंतरी ने कहा कि चीन और भारत के साथ व्यापार वार्ता को लेकर आशावाद ने भी बाजार की भावना को और बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा, 'रिकवरी के बावजूद ग्लोबल मार्केट्स में लगातार अधिक सप्लाई और अमेरिकी सरकार के शटडाउन से पैदा हुई अनिश्चितता किसी भी बड़ी बढ़ोतरी को सीमित कर सकती है। हम उम्मीद करते हैं कि कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर रहेंगी।'
यह स्थिति भारत के लिए महत्वपूर्ण मोड़ है। अमेरिका के प्रतिबंधों और रूस के साथ व्यापारिक संबंधों पर बढ़ते दबाव के बीच भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों के बीच संतुलन बनाना होगा। तेल आयात के स्रोतों में विविधता लाना भारत के लिए रणनीतिक कदम हो सकता है। इससे वह अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार की अस्थिरता से कुछ हद तक बच सकेगा। हालांकि, इस बदलाव से जुड़े अतिरिक्त खर्चों और संभावित व्यापारिक लाभों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत होगी। अमेरिकी टैरिफ में कमी की उम्मीदें इस बदलाव को भारत के लिए अधिक फायदेमंद बना सकती हैं।
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