इन जगहों पर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए - शास्त्रों में लिखा है कि रिक्तं पाणिनं पश्येच्च, राजान्तं देवतां गुरुम्। दैवज्ञं भिषज्ञं, मित्रं फलेन फलमा दिशेत्।। अर्थात् राजा के यहां, दैव मन्दिर में, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और मित्र के यहां खाली हाथ नहीं जाना चाहिए, क्योंकि फल से फल होता है।
एक गरीब व्यक्ति ने सोचा कि राजा के यहां चलकर कुछ भिक्षा मांगी जाए, उसकी पत्नी ने उसे बताया कि राजा के यहां कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए, इसलिए उसने कुछ गन्नों के टुकड़े उसके साथ रख दिए। रास्ते में उस गरीब व्यक्ति को नींद और वह सो गया, वहां कुछ शरारती बच्चों ने गन्ने के टुकड़े देखकर चुपके से उस व्यक्ति के सारे गन्ने निकाल लिए और उनके स्थान पर उतने ही सूखी लकड़ी के टुकड़े रख दिए।
गठरी लेकर जब वह व्यक्ति राजा के पास पहुंचा और राजा को भेंट दिया, तो राजसभा में सभी आश्चर्यचकित हो गए कि वह गरीब व्यक्ति फल, सुपारी, फूल, कुछ भी राजा को भेंट कर सकता था, किन्तु वह अशुभ सूचक लकड़ी के टुकड़े लेकर आया है। इस पर मंत्री ने राजा को बताया कि, ‘महाराज! आप इसके द्वारा लाए हुए उपहार को देख रहे हैं, इसके पीछे निहित भाव को देखिए। यह अपनी दरिद्रता को भस्म करने के उद्देश्य से प्रतीक स्वरूप यह सूखी लकड़ियां लाया है, ताकि आप इसकी दरिद्रता को भस्म कर दें।‘
यह सुनकर राजा हर्षित हो गया, उसने गरीब व्यक्ति को अनेक स्वर्ण मुद्रा देकर विदा किया। परन्तु वह गरीब व्यक्ति जाते-जाते बार-बार पीछे मुड़कर देखता। इस पर राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया, कि यह गरीब व्यक्ति जाते समय बार-बार पीछे मुड़कर क्यों देख रहा है। मंत्री ने उस व्यक्ति से पूछा, उस गरीब व्यक्ति ने इसका उत्तर देते हुए कहा, ‘हे महाराज! मैं पीछे मुड़कर बार-बार यह देख रहा हूं कि अनेक वर्षों से जो दरिद्रता मेरे पीछे लग गई थी, वह मेरे पीछे से भाग गई है या नहीं।‘
इस पर राजा और दरबार के सभी लोग उस गरीब व्यक्ति की बात सुनकर मुसकुरा उठे। राजा ने प्रसन्न होकर कहा, ‘तुम्हारी बात में गहरी सत्यता छिपी है। जब मनुष्य श्रद्धा, विश्वास और शुभ भावना के साथ कुछ अर्पित करता है, तो ईश्वर स्वयं उसकी दरिद्रता को दूर कर देते हैं।‘
एक गरीब व्यक्ति ने सोचा कि राजा के यहां चलकर कुछ भिक्षा मांगी जाए, उसकी पत्नी ने उसे बताया कि राजा के यहां कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए, इसलिए उसने कुछ गन्नों के टुकड़े उसके साथ रख दिए। रास्ते में उस गरीब व्यक्ति को नींद और वह सो गया, वहां कुछ शरारती बच्चों ने गन्ने के टुकड़े देखकर चुपके से उस व्यक्ति के सारे गन्ने निकाल लिए और उनके स्थान पर उतने ही सूखी लकड़ी के टुकड़े रख दिए।
गठरी लेकर जब वह व्यक्ति राजा के पास पहुंचा और राजा को भेंट दिया, तो राजसभा में सभी आश्चर्यचकित हो गए कि वह गरीब व्यक्ति फल, सुपारी, फूल, कुछ भी राजा को भेंट कर सकता था, किन्तु वह अशुभ सूचक लकड़ी के टुकड़े लेकर आया है। इस पर मंत्री ने राजा को बताया कि, ‘महाराज! आप इसके द्वारा लाए हुए उपहार को देख रहे हैं, इसके पीछे निहित भाव को देखिए। यह अपनी दरिद्रता को भस्म करने के उद्देश्य से प्रतीक स्वरूप यह सूखी लकड़ियां लाया है, ताकि आप इसकी दरिद्रता को भस्म कर दें।‘
यह सुनकर राजा हर्षित हो गया, उसने गरीब व्यक्ति को अनेक स्वर्ण मुद्रा देकर विदा किया। परन्तु वह गरीब व्यक्ति जाते-जाते बार-बार पीछे मुड़कर देखता। इस पर राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया, कि यह गरीब व्यक्ति जाते समय बार-बार पीछे मुड़कर क्यों देख रहा है। मंत्री ने उस व्यक्ति से पूछा, उस गरीब व्यक्ति ने इसका उत्तर देते हुए कहा, ‘हे महाराज! मैं पीछे मुड़कर बार-बार यह देख रहा हूं कि अनेक वर्षों से जो दरिद्रता मेरे पीछे लग गई थी, वह मेरे पीछे से भाग गई है या नहीं।‘
इस पर राजा और दरबार के सभी लोग उस गरीब व्यक्ति की बात सुनकर मुसकुरा उठे। राजा ने प्रसन्न होकर कहा, ‘तुम्हारी बात में गहरी सत्यता छिपी है। जब मनुष्य श्रद्धा, विश्वास और शुभ भावना के साथ कुछ अर्पित करता है, तो ईश्वर स्वयं उसकी दरिद्रता को दूर कर देते हैं।‘
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