भारत और चीन के रिश्ते पिछले कुछ बरसों से लगातार मुश्किल होते जा रहे हैं। सीमा पर झगड़े, सेना की होड़, व्यापार में तनाव, टेक्नॉलजी को लेकर खींचतान और अब नदियों पर कब्जे की कोशिश - इन सबने हालात को बिगाड़ दिया है। इसी बीच, चीन तिब्बत के न्यिंगची इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। ब्रह्मपुत्र को वहां यारलुंग त्सांगपो कहते हैं। यह बांध भारत के लिए चिंता की एक नई वजह बन गया है। इस परियोजना का असर सिर्फ हमारे पूर्वोत्तर राज्यों पर ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी होगा।
सबसे बड़ी परियोजना: तिब्बत के ग्रेट बेंड इलाके में बन रहा यह बांध अरुणाचल प्रदेश की सीमा के बहुत करीब है। इसकी अनुमानित बिजली उत्पादन क्षमता 60,000 मेगावॉट से भी ज्यादा बताई जा रही है। इस प्रॉजेक्ट पर करीब 1.2 ट्रिलियन युआन यानी 167 अरब डॉलर खर्च होंगे। यह दुनिया की सबसे बड़ी बिजली परियोजना होगी।
रोजी-रोटी पर खतरा: भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन अब ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को अपने हिसाब से रोक या छोड़ सकेगा। मॉनसून के समय अगर चीन अचानक बहुत ज्यादा पानी छोड़ देता है तो असम, अरुणाचल और मेघालय जैसे राज्यों में बाढ़ आ सकती है। वहीं अगर वह जरूरत से ज्यादा पानी रोक लेता है तो सूखा पड़ सकता है। दोनों ही हालात किसानों, मछुआरों, छोटे उद्योगों और लोगों की रोजी-रोटी के लिए खतरा बन जाएंगे।
जानकारी पर पहरा: भारत मॉनसून के वक्त बाढ़ से जुड़ी सूचना के लिए चीन पर निर्भर रहा है। लेकिन, जब-जब सीमा पर तनाव बढ़ा, चीन ने यह जानकारी देने से इनकार कर दिया। नए बांध से इस जानकारी पर चीन का नियंत्रण और सख्त हो जाएगा।
पर्यावरण को नुकसान: इस डैम का पर्यावरण पर पड़ने वाला असर भारत के लिए संवेदनशील मसला है। डैम के चालू होने के बाद नदी का बहाव, उसकी रफ्तार और पानी की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आ सकता है। इससे काजीरंगा जैसे नैशनल पार्क, मछलियों की कई प्रजातियों, दलदली इलाकों की पारिस्थितिकी और किनारे रहने वाले लोगों की जिंदगी पर बुरा असर पड़ सकता है। हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र भूकंप के लिहाज से बहुत संवेदनशील है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कोई बड़ा भूकंप आया या डैम में तकनीकी गड़बड़ी हो गई, तो यह टूट सकता है या अचानक बहुत ज्यादा पानी छोड़ा जा सकता है। ऐसी स्थिति में जान-माल का बड़ा नुकसान हो सकता है।
सामरिक चुनौती: भविष्य में चीन पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत पर दबाव बना सकता है। हर साल सीमा से लगे इलाकों में बाढ़ और सूखे की अनिश्चितता भारत की आंतरिक सुरक्षा पर भी असर डाल सकती है। इस संकट को अंतरराष्ट्रीय कानून और जल विवादों के नजरिए से देखें, तो चुनौती और बढ़ जाती है। भारत और चीन में से कोई भी सीमा पार होने वाली नदियों से जुड़ी बाध्यकारी संधि के सदस्य नहीं हैं। इसका मतलब कि जल बंटवारे और डेटा के लिए किसी तरह की कानूनी सुरक्षा नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल: यह बांध भारत की राष्ट्रीय संप्रभुता, सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। चीन की रणनीति दिखा रही है कि वह पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। ऐसे में भारत के सामने चुनौती है कि वह कूटनीति, विज्ञान, टेक्नॉलजी इनोवेशन और स्थानीय नीति स्तर पर क्या कदम उठाए। भारत को संयुक्त राष्ट्र, SCO, ASEAN जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाना चाहिए।
नीति में बदलाव: भारत को बिना देरी के ब्रह्मपुत्र समेत सभी अंतरराष्ट्रीय नदियों पर वैज्ञानिक मॉनिटरिंग और आपदा प्रबंधन तंत्र मजबूत बनाना चाहिए। पूर्वोत्तर के राज्यों में लोगों को जागरूक करना, पानी बचाने की योजनाएं लागू करना और स्थानीय प्रशासन को आधुनिक तकनीक से लैस करना नीति का हिस्सा बनना चाहिए। बांग्लादेश, म्यांमार समेत डाउन रिवर देशों के साथ साझा रणनीति बनाकर चीन पर दबाव बनाया जा सकता है।
नए प्रॉजेक्ट: भारत को चाहिए कि वह अपने हिस्से में ब्रह्मपुत्र और उसकी अन्य सहायक नदियों पर ऐसी परियोजनाएं जल्द शुरू करे जो सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल और रणनीतिक रूप से फायदेमंद हों। इससे चीन पर हमारी निर्भरता कम होगी और जरूरत के समय हालात को बेहतर तरीके से संभाला जा सकेगा। ब्रह्मपुत्र पर बन रहा बांध एक बड़ी परीक्षा है, जो पूरे दक्षिण एशिया में पर्यावरण, कूटनीति, सुरक्षा और विकास की दिशा को प्रभावित कर सकता है। भारत को इस चुनौती का सामना संयम, वैज्ञानिक सोच, तेज और समझदारी भरे कूटनीतिक कदम और स्थानीय लोगों की भागीदारी से करना होगा।
(लेखक DU के दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में असिस्टेंट प्रफेसर हैं)
सबसे बड़ी परियोजना: तिब्बत के ग्रेट बेंड इलाके में बन रहा यह बांध अरुणाचल प्रदेश की सीमा के बहुत करीब है। इसकी अनुमानित बिजली उत्पादन क्षमता 60,000 मेगावॉट से भी ज्यादा बताई जा रही है। इस प्रॉजेक्ट पर करीब 1.2 ट्रिलियन युआन यानी 167 अरब डॉलर खर्च होंगे। यह दुनिया की सबसे बड़ी बिजली परियोजना होगी।
रोजी-रोटी पर खतरा: भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन अब ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को अपने हिसाब से रोक या छोड़ सकेगा। मॉनसून के समय अगर चीन अचानक बहुत ज्यादा पानी छोड़ देता है तो असम, अरुणाचल और मेघालय जैसे राज्यों में बाढ़ आ सकती है। वहीं अगर वह जरूरत से ज्यादा पानी रोक लेता है तो सूखा पड़ सकता है। दोनों ही हालात किसानों, मछुआरों, छोटे उद्योगों और लोगों की रोजी-रोटी के लिए खतरा बन जाएंगे।
जानकारी पर पहरा: भारत मॉनसून के वक्त बाढ़ से जुड़ी सूचना के लिए चीन पर निर्भर रहा है। लेकिन, जब-जब सीमा पर तनाव बढ़ा, चीन ने यह जानकारी देने से इनकार कर दिया। नए बांध से इस जानकारी पर चीन का नियंत्रण और सख्त हो जाएगा।
पर्यावरण को नुकसान: इस डैम का पर्यावरण पर पड़ने वाला असर भारत के लिए संवेदनशील मसला है। डैम के चालू होने के बाद नदी का बहाव, उसकी रफ्तार और पानी की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आ सकता है। इससे काजीरंगा जैसे नैशनल पार्क, मछलियों की कई प्रजातियों, दलदली इलाकों की पारिस्थितिकी और किनारे रहने वाले लोगों की जिंदगी पर बुरा असर पड़ सकता है। हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र भूकंप के लिहाज से बहुत संवेदनशील है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कोई बड़ा भूकंप आया या डैम में तकनीकी गड़बड़ी हो गई, तो यह टूट सकता है या अचानक बहुत ज्यादा पानी छोड़ा जा सकता है। ऐसी स्थिति में जान-माल का बड़ा नुकसान हो सकता है।
सामरिक चुनौती: भविष्य में चीन पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत पर दबाव बना सकता है। हर साल सीमा से लगे इलाकों में बाढ़ और सूखे की अनिश्चितता भारत की आंतरिक सुरक्षा पर भी असर डाल सकती है। इस संकट को अंतरराष्ट्रीय कानून और जल विवादों के नजरिए से देखें, तो चुनौती और बढ़ जाती है। भारत और चीन में से कोई भी सीमा पार होने वाली नदियों से जुड़ी बाध्यकारी संधि के सदस्य नहीं हैं। इसका मतलब कि जल बंटवारे और डेटा के लिए किसी तरह की कानूनी सुरक्षा नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल: यह बांध भारत की राष्ट्रीय संप्रभुता, सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। चीन की रणनीति दिखा रही है कि वह पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। ऐसे में भारत के सामने चुनौती है कि वह कूटनीति, विज्ञान, टेक्नॉलजी इनोवेशन और स्थानीय नीति स्तर पर क्या कदम उठाए। भारत को संयुक्त राष्ट्र, SCO, ASEAN जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाना चाहिए।
नीति में बदलाव: भारत को बिना देरी के ब्रह्मपुत्र समेत सभी अंतरराष्ट्रीय नदियों पर वैज्ञानिक मॉनिटरिंग और आपदा प्रबंधन तंत्र मजबूत बनाना चाहिए। पूर्वोत्तर के राज्यों में लोगों को जागरूक करना, पानी बचाने की योजनाएं लागू करना और स्थानीय प्रशासन को आधुनिक तकनीक से लैस करना नीति का हिस्सा बनना चाहिए। बांग्लादेश, म्यांमार समेत डाउन रिवर देशों के साथ साझा रणनीति बनाकर चीन पर दबाव बनाया जा सकता है।
नए प्रॉजेक्ट: भारत को चाहिए कि वह अपने हिस्से में ब्रह्मपुत्र और उसकी अन्य सहायक नदियों पर ऐसी परियोजनाएं जल्द शुरू करे जो सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल और रणनीतिक रूप से फायदेमंद हों। इससे चीन पर हमारी निर्भरता कम होगी और जरूरत के समय हालात को बेहतर तरीके से संभाला जा सकेगा। ब्रह्मपुत्र पर बन रहा बांध एक बड़ी परीक्षा है, जो पूरे दक्षिण एशिया में पर्यावरण, कूटनीति, सुरक्षा और विकास की दिशा को प्रभावित कर सकता है। भारत को इस चुनौती का सामना संयम, वैज्ञानिक सोच, तेज और समझदारी भरे कूटनीतिक कदम और स्थानीय लोगों की भागीदारी से करना होगा।
(लेखक DU के दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में असिस्टेंट प्रफेसर हैं)
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