पटना: लोजपा(आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान एक बार फिर सुर्खियों में हैं। चर्चा यह है कि चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का चुनाव लड़ेंगे। दिलचस्प यह है कि इस चर्चा के स्रोत भी वे खुद हैं, साथ ही इसके वे लाचारी भी व्यक्त करते हैं कि अगर पार्टी कहेगी तो। जानते हैं कि पार्टी के एक राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा क्या और उनके इस वक्तव्य के निशाने पर कौन हैं?
क्या कहा चिराग ने ?
अपने बयान में लोजपा(आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि वो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 लड़ सकते हैं। अगर पार्टी चाहेगी तो वो चुनाव लड़ने को तैयार हैं। पार्टी के पदाधिकारी सर्वे कर रहे हैं। फिर वे खुद कहते हैं कि यह कोई बहानेबाजी या दिखावा नहीं है, बल्कि पार्टी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है। ताकि यह समझा जा सके कि उनके चुनाव लड़ने से पार्टी के साथ-साथ गठबंधन को कितना फायदा हो सकता है। यह निर्णय केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नहीं है, बल्कि पार्टी और एनडीए गठबंधन की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
लोकतंत्र में उल्टी गंगा बहाना चाहते हैं चिराग?
लोकजनशक्ति पार्टी (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान क्या महज कुछ महीनों के बाद ही केंद्रीय मंत्री पद का त्याग कर राज्य की राजनीति में बगैर किसी बड़े लक्ष्य के उतर जाएंगे? यह जानते हुए कि आगामी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़े जाएंगे और अगले मुख्यमंत्री भी वही बनेंगे। उप मुख्यमंत्री की सीमा भी भाजपा के बाद खत्म हो जाती है। दो उप मुख्यमंत्री भाजपा वाला फॉर्मूला अभी भी कायम है। तो क्या राज्य में मंत्री बनने के लिए वो केंद्रीय मंत्री पद छोड़ेंगे? और किस पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष को निचले स्तर के पदाधिकारी निर्देश देंगे कि आपको विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा। लोकतंत्र की इस औपचारिकता को राजनीतिक जगत जानता है और देखता भी आया है।
तो निशाने पर क्या है?
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान दबाव की राजनीत के माहिर खिलाड़ी हैं। उन्हें मालूम है कि अपनी भागीदारी की सीटें उन्हें शेर के मुंह में उंगली डाल कर निकालनी होंगी। लोजपा (आर) के रणनीतिकारों की माने तो लोजपा 50 सीटों पर पर लड़ने की तैयारी कर रही है। और यह चिराग पासवान भी जानते हैं कि इतनी सीटें लेना आसान नहीं है। इसलिए दबाव की राजनीति का पहला दांव कि पार्टी चाहेगी तो 'बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट' के नारों के साथ विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। दबाव की राजनीति का दूसरा दांव तब खेला जब चिराग पासवान और तेजस्वी यादव की मुलाकात हुई। गर्मजोशी से बात हुई। जब मीडिया से मुखातिब हुए तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार की जम कर प्रशंसा की। इस बहाने चिराग एक बार फिर सुर्खियों में बने रहे।
ऑपरेशन सिंदूर और चिराग
ऑपरेशन सिंदूर प्रदेश भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड साबित होने जा रहा है। भाजपा इस मुहिम का राजनीतिक इस्तेमाल भी करेगी। केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता में बिहार और बंगाल भी हैं। ऑपरेशन सिंदूर की धार के साथ भाजपा इस बार ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ेगी। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान जानते हैं कि भाजपा अधिक सीटों पर लड़ेगी तो सहयोगी दलों की सीटें कम हो जाएंगी। बस इस फोबिया से निकलने के क्रम में लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान अपनी स्थिति को दुरुस्त करने के लिए ही ये पैंतरे ले रहे हैं। बिहार विधानसभा में लोजपा अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से हो, बस इसकी कवायद भर है। ये केंद्रीय मंत्री बने रहेंगे और अपनी देख रख में 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के लिए प्रयासरत रहेंगे।
क्या कहा चिराग ने ?
अपने बयान में लोजपा(आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि वो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 लड़ सकते हैं। अगर पार्टी चाहेगी तो वो चुनाव लड़ने को तैयार हैं। पार्टी के पदाधिकारी सर्वे कर रहे हैं। फिर वे खुद कहते हैं कि यह कोई बहानेबाजी या दिखावा नहीं है, बल्कि पार्टी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है। ताकि यह समझा जा सके कि उनके चुनाव लड़ने से पार्टी के साथ-साथ गठबंधन को कितना फायदा हो सकता है। यह निर्णय केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नहीं है, बल्कि पार्टी और एनडीए गठबंधन की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
लोकतंत्र में उल्टी गंगा बहाना चाहते हैं चिराग?
लोकजनशक्ति पार्टी (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान क्या महज कुछ महीनों के बाद ही केंद्रीय मंत्री पद का त्याग कर राज्य की राजनीति में बगैर किसी बड़े लक्ष्य के उतर जाएंगे? यह जानते हुए कि आगामी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़े जाएंगे और अगले मुख्यमंत्री भी वही बनेंगे। उप मुख्यमंत्री की सीमा भी भाजपा के बाद खत्म हो जाती है। दो उप मुख्यमंत्री भाजपा वाला फॉर्मूला अभी भी कायम है। तो क्या राज्य में मंत्री बनने के लिए वो केंद्रीय मंत्री पद छोड़ेंगे? और किस पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष को निचले स्तर के पदाधिकारी निर्देश देंगे कि आपको विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा। लोकतंत्र की इस औपचारिकता को राजनीतिक जगत जानता है और देखता भी आया है।
तो निशाने पर क्या है?
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान दबाव की राजनीत के माहिर खिलाड़ी हैं। उन्हें मालूम है कि अपनी भागीदारी की सीटें उन्हें शेर के मुंह में उंगली डाल कर निकालनी होंगी। लोजपा (आर) के रणनीतिकारों की माने तो लोजपा 50 सीटों पर पर लड़ने की तैयारी कर रही है। और यह चिराग पासवान भी जानते हैं कि इतनी सीटें लेना आसान नहीं है। इसलिए दबाव की राजनीति का पहला दांव कि पार्टी चाहेगी तो 'बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट' के नारों के साथ विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। दबाव की राजनीति का दूसरा दांव तब खेला जब चिराग पासवान और तेजस्वी यादव की मुलाकात हुई। गर्मजोशी से बात हुई। जब मीडिया से मुखातिब हुए तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार की जम कर प्रशंसा की। इस बहाने चिराग एक बार फिर सुर्खियों में बने रहे।
ऑपरेशन सिंदूर और चिराग
ऑपरेशन सिंदूर प्रदेश भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड साबित होने जा रहा है। भाजपा इस मुहिम का राजनीतिक इस्तेमाल भी करेगी। केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता में बिहार और बंगाल भी हैं। ऑपरेशन सिंदूर की धार के साथ भाजपा इस बार ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ेगी। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान जानते हैं कि भाजपा अधिक सीटों पर लड़ेगी तो सहयोगी दलों की सीटें कम हो जाएंगी। बस इस फोबिया से निकलने के क्रम में लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान अपनी स्थिति को दुरुस्त करने के लिए ही ये पैंतरे ले रहे हैं। बिहार विधानसभा में लोजपा अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से हो, बस इसकी कवायद भर है। ये केंद्रीय मंत्री बने रहेंगे और अपनी देख रख में 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के लिए प्रयासरत रहेंगे।
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