पटना: बिहार की चुनावी राजनीति में बहुत दिनों के बाद कट्टा और दोनाली जैसे शब्दों का प्रयोग वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान से निकलना राजनीति के कोई नए संकेत नहीं। जंगलराज पर तो बीजेपी चुनाव लड़ती ही रही है। पर इस बार लालू यादव की 90 के दशक वाली सरकार से जोड़ते हुए कट्टा और दोनाली का उपयोग क्या ऐसे ही कर दिया गया? और अगर यूं ही नहीं किया तो बिहार की राजनीति को वर्तमान विधानसभा चुनाव के परिपेक्ष्य में क्या दिशा देना चाहते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी? जानते हैं इन शब्दों के मर्म को जिसे बिहार की जनता के दिलों में बसाने की तैयारी एनडीए के प्लेटफार्म से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करना चाहते थे।
मोदी ने किया पुराना सीन रीक्रिएट करने वाला प्रचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जंगलराज को दृश्य के माध्यम से जनता के बीच परोसने का काम किया। साल 1990 से 2005 तक कट्टा का लहराना या दोनाली बंदूक कार की खिड़की से बाहर निकाल कर सरेआम घूमने जैसी हरकतें आज की तारीख में संभव नहीं है। तो उस कालखंड वाले दृश्य को रीक्रिएट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कट्टा, दो नाली जैसे शब्दों का उपयोग किया।
पीएम मोदी का 'कट्टा-दोनाली' किसे साधने के लिए
बीजेपी का प्रचार तंत्र बहुत ही सिस्टमैटिक होता है। उनके ध्यान में वोटर का हर वर्ग होता है। बिहार में खासतौर पर वो युवा पीढ़ी जो खासतौर पर 1980 से 85 के बीच में जन्मी, जिन्होंने नरसंहार और अपहरण का वह काल खंड देखा, उन्हें जंगलराज के बारे में बताने के बारे में कुछ नहीं है। पर जिनका जन्म ही साल 2000 के बाद हुआ हो। इसलिए उस खास युवा वर्ग को अपने पाले में करने के लिए इन शब्दों को प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह जरूरी इसलिए भी था कि 2015 के बाद बिहार में सुशासन की सरकार की हनक थोड़ी कम हुई। 2015 के विधानसभा के बाद राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी। हालांकि यह सरकार लगभग दो वर्ष ही चली पर जंगलराज की पुरानी छवि दिखने लगी। बाद में नीतीश कुमार ने उस छवि से घबराकर ही महागठबंधन सरकार से खुद को अलग कर लिया और फिर से NDA के साथ जा मिले। कहने वाले तो यही कहते हैं।
क्या है नए वोटरों की संख्या ?
चुनाव आयोग के अनुसार 30 सितंबर 2025 तक के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में मतदाताओं की कुल संख्या 7.43 करोड़ है। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 3.92 करोड़ और महिला मतदाताओं की संख्या 3.50 करोड़ हैं। बिहार में इस बार युवा वोटर्स की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा हो गई है। युवा वोटरों की संख्या 1.63 करोड़ है जिनकी उम्र 20-29 साल है। इनमें इस बार के बिहार चुनाव में 14.01 लाख वोटर ऐसे हैं जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इन्हें ही फर्स्ट टाइम वोटर कहते हैं और ये ही सबसे ज्यादा गेम चेंजर साबित होते रहे हैं। अगर NDA कट्टा-दोनाली वाले जंगलराज को इन्हें समझाने में सफल रही तो पासा कुछ ज्यादा ही पलट सकता है।
मोदी ने किया पुराना सीन रीक्रिएट करने वाला प्रचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जंगलराज को दृश्य के माध्यम से जनता के बीच परोसने का काम किया। साल 1990 से 2005 तक कट्टा का लहराना या दोनाली बंदूक कार की खिड़की से बाहर निकाल कर सरेआम घूमने जैसी हरकतें आज की तारीख में संभव नहीं है। तो उस कालखंड वाले दृश्य को रीक्रिएट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कट्टा, दो नाली जैसे शब्दों का उपयोग किया।
पीएम मोदी का 'कट्टा-दोनाली' किसे साधने के लिए
बीजेपी का प्रचार तंत्र बहुत ही सिस्टमैटिक होता है। उनके ध्यान में वोटर का हर वर्ग होता है। बिहार में खासतौर पर वो युवा पीढ़ी जो खासतौर पर 1980 से 85 के बीच में जन्मी, जिन्होंने नरसंहार और अपहरण का वह काल खंड देखा, उन्हें जंगलराज के बारे में बताने के बारे में कुछ नहीं है। पर जिनका जन्म ही साल 2000 के बाद हुआ हो। इसलिए उस खास युवा वर्ग को अपने पाले में करने के लिए इन शब्दों को प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह जरूरी इसलिए भी था कि 2015 के बाद बिहार में सुशासन की सरकार की हनक थोड़ी कम हुई। 2015 के विधानसभा के बाद राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी। हालांकि यह सरकार लगभग दो वर्ष ही चली पर जंगलराज की पुरानी छवि दिखने लगी। बाद में नीतीश कुमार ने उस छवि से घबराकर ही महागठबंधन सरकार से खुद को अलग कर लिया और फिर से NDA के साथ जा मिले। कहने वाले तो यही कहते हैं।
क्या है नए वोटरों की संख्या ?
चुनाव आयोग के अनुसार 30 सितंबर 2025 तक के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में मतदाताओं की कुल संख्या 7.43 करोड़ है। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 3.92 करोड़ और महिला मतदाताओं की संख्या 3.50 करोड़ हैं। बिहार में इस बार युवा वोटर्स की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा हो गई है। युवा वोटरों की संख्या 1.63 करोड़ है जिनकी उम्र 20-29 साल है। इनमें इस बार के बिहार चुनाव में 14.01 लाख वोटर ऐसे हैं जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इन्हें ही फर्स्ट टाइम वोटर कहते हैं और ये ही सबसे ज्यादा गेम चेंजर साबित होते रहे हैं। अगर NDA कट्टा-दोनाली वाले जंगलराज को इन्हें समझाने में सफल रही तो पासा कुछ ज्यादा ही पलट सकता है।
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