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Bihar Election 2025: बिहार में मुस्लिम वोट को लेकर क्यों मारामारी? नीतीश ने डेटा के जरिए किया सावधान, जानें

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस' (इंडिया) के नेताओं पर खुद को मुसलमानों का हितैषी बताकर उन्हें सिर्फ 'वोट बैंक' समझने का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री ने एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, 'वर्ष 2005 से पहले राज्य में मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए कोई काम नहीं होता था। उससे पहले बिहार में जिन लोगों की सरकार थी उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में आए दिन साम्प्रदायिक झगड़े होते रहते थे।'


CM ने दिया कब्रिस्तानों का डेटासोशल मीडिया पोस्ट में सीएम नीतीश ने कहा, '24 नवंबर 2005 को जब हमलोगों की सरकार बनी तब से मुस्लिम समुदाय के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं। आप सभी जानते हैं कि वर्ष 2025-26 में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के बजट में 306 गुणा की वृद्धि करते हुए 1080.47 करोड़ रूपये बजट का प्रावधान किया गया है। राज्य में साम्प्रदायिक घटनाएं नहीं हो उसके लिए वर्ष 2006 से संवेदनशील कब्रिस्तानों की घेराबंदी शुरू की गई। अब तक 8 हजार से अधिक कब्रिस्तानों की घेराबंदी करा दी गई है। मुस्लिम समाज के परामर्श से 1273 और कब्रिस्तानों को घेराबंदी के लिए चिन्हित किया गया, जिसमें 746 कब्रिस्तानों की घेराबंदी पूर्ण हो गई है और शेष का काम शीघ्र पूरा कर लिया जाएगा।'



भागलपुर दंगा पीडितों को इंसाफनीतीश कुमार ने अपने पोस्ट में भागलपुर दंगे का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'इन्हीं विपक्षी दलों की जब सरकार थी तो वर्ष 1989 में भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगे हुए। दंगा रोकने में सरकार विफल रही और साम्प्रदायिक दंगा पीड़ितों के लिए पूर्व की सरकारों ने कुछ नहीं किया। जब हमलोगों को सेवा का मौका मिला तो भागलपुर साम्प्रदायिक दंगा की जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई और दंगा पीड़ितों को मुआवजा दिया गया। साथ ही दंगा से प्रभावित परिवारों को पेंशन के रूप में भी मदद दी जा रही है। पहले कितना हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा होता था, अब आज कोई झगड़ा नहीं होता है।'


मुस्लिम समुदाय के शिक्षा का डेटा जानेंमुस्लिम समुदाय में शिक्षा को लेकर सीएम नीतीश ने बताया, 'वर्ष 2006 से मदरसों का निबंधन किया गया और उन्हें सरकारी मान्यता दी गई। मदरसा के शिक्षकों को सरकारी शिक्षकों के बराबर वेतन दिया जा रहा है। इसके अलावा मुस्लिम परित्यक्ता/तलाकशुदा महिलाओं को रोजगार देने के लिए वर्ष 2007 से 10 हजार रुपए की सहायता राशि दी जाने लगी, जिसे अब बढ़ाकर 25 हजार रुपए कर दिया गया है। मुस्लिम समुदाय के लिए तालीमी मरकज और हुनर जैसी उपयोगी योजनाएं चलाई गई। मुस्लिम वर्ग के छात्र-छात्राओं और युवाओं के लिए छात्रवृत्ति, मुफ्त कोचिंग, छात्रावास, अनुदान आदि योजनाएं चलाई जा रही हैं। युवाओं को अपना रोजगार शुरू करने के लिए उद्यमी योजना का लाभ दिया जा रहा है।'


मुस्लिम वोट के बहाने विपक्ष पर निशानानीतीश कुमार ने अपने पोस्ट में कहा, 'अब बिहार विधानसभा चुनाव के समय में कुछ लोग फिर से अपने-आप को मुस्लिम समुदाय का हितैषी बताने में जुट गए हैं। ये सब छलावा है। सिर्फ मुस्लिम वर्ग के लोगों का वोट हासिल करने के लिए तरह- तरह के लालच और हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, जबकि उन्हें किसी तरह की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी देने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। हमलोगों की सरकार में आज मुस्लिम समाज के लोगों को उनका पूरा हक मिल रहा है। बिना किसी भेदभाव के उन्हें हर क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है, जबकि पूर्व की सरकारों ने मुस्लिम समुदाय का इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए किया और उन्हें कोई हिस्सेदारी नहीं दी।'


बिहार में मुस्लिम वोटर अहम क्यों?दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव इस बार मुस्लिम वोटरों के कारण काफी महत्वपूर्ण है। 2023 के जाति आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में मुस्लिम आबादी 17.7% है, जो उन्हें वोट की राजनीति में निर्णायक बनाती है। बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20% से अधिक है। इसके अलावा, लगभग 11 ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाता 40% के आसपास हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में लगभग 40 विधानसभा सीटों पर जीत-हार का फैसला मुख्य रूप से मुस्लिम मतदाता ही करते हैं। यही वजह है कि राज्य की सभी प्रमुख पार्टियां आगामी चुनाव में इस बड़े और प्रभावी वोट बैंक पर खास ध्यान केंद्रित कर रही हैं। बिहार में मुस्लिम समुदाय चुनावों में अहम शक्ति संतुलन (Power Balance) बनाए रखता है।
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