नई दिल्ली: भारत के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। उसके लिए तटस्थ (न्यूट्रल) रह पाना मुश्किल हो गया है। अब तक उसने 'मल्टी-एलाइनमेंट' पॉलिसी अपनाकर सभी देशों के साथ अपने रिश्तों को संतुलित रखा है। लेकिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस पॉलिसी की परीक्षा लेने पर उतारू हो गए हैं। रूसी तेल खरीदने के कारण उन्होंने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इसके चलते 27 अगस्त से अमेरिका में भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ हो जाएगा। ट्रंप के इस कदम को भारत पर दबाव बनाने का तरीका माना जा रहा है। वह चाहते हैं कि भारत रूस और चीन वाले खेमे को छोड़कर अमेरिका के सामने सरेंडर कर दे। उसके साथ ऐसा व्यापार समझौता कर ले जिसमें सिर्फ उसी का फायदा हो। इस तरह ट्रंप ने भारत के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर सिर्फ दो विकल्प छोड़े हैं। चीन के खिलाफ या अमेरिका के साथ। इसमें से भारत को कौन सा विकल्प चुनना चाहिए, इसका जवाब अमेरिकी प्रोफेसर और जाने-माने अर्थशास्त्री जेफरी सैक्स ने दिया है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जेफरी सैक्स ने भारत को सावधान किया है। उन्होंने कहा है कि भारत को चीन के खिलाफ पश्चिमी देशों के व्यापार युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए। सैक्स का मानना है कि अमेरिका भारत को पार्टनर की बजाय रणनीतिक मोहरे के रूप में देखता है। एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में सैक्स ने कहा कि भारत का ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की जगह लेना वास्तविक नहीं है। अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों को देखते हुए भारत को रूस, चीन, आसियान और अफ्रीका जैसे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने चाहिए। सैक्स ने भारत-चीन के बीच तकनीकी सहयोग की संभावनाओं पर भी जोर दिया।
50% टैरिफ लगाना क्या बता रहा है?
जेफरी सैक्स ने कहा कि कुछ लोगों का मानना था कि भारत, चीन की जगह ले लेगा। अमेरिका चीन से लड़ेगा और चीनी सप्लाई चेन को बदलने के लिए भारत का स्वागत करेगा। लेकिन, उन्होंने इसे अवास्तविक बताया।
सैक्स ने तर्क दिया कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियां अमेरिका के साथ दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग की सीमाओं को दर्शाता है। डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाना इसका उदारहण है। उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका भारत से निर्यात में बड़ी बढ़ोतरी की अनुमति नहीं देगा। ठीक वैसे ही जैसे उसने चीन को नहीं दी।
सैक्स ने यह बात ऐसे समय में कही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले हैं। इससे गलवान घाटी की झड़प के बाद एशियाई दिग्गजों के बीच संबंधों में जमी बर्फ पिघलने की संभावना है।
भारत को साफ सलाह
आर्थिक सुधारों और गरीबी उन्मूलन पर अपने काम के लिए विश्व स्तर पर जाने जाने वाले सैक्स ने कहा कि भारतीय नीति निर्माताओं को अमेरिका के हालिया कदमों से चिंतित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को रूस, चीन, आसियान, अफ्रीका और अन्य जगहों पर अपने सहयोगियों का एक विविध आधार बनाना चाहिए। भारत को खुद को मुख्य रूप से अमेरिकी बाजार पर फोकस करते हुए नहीं देखना चाहिए, जो अस्थिर, धीमी रफ्तार से बढ़ने वाला और मूल रूप से संरक्षणवादी होने वाला है।
सैक्स ने भारत-चीन के बीच तकनीकी सहयोग की अपार संभावनाओं पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि अगर आप ग्रीन एनर्जी, डिजिटल, AI या एडवांस्ड चिप्स को देखें तो चीन भारत के लिए अच्छा पार्टनर है। हां, भारत-चीन के संबंध अन्य कारणों से तनावपूर्ण हैं। लेकिन, उन्हें सुलझाएं, क्योंकि दोनों दिग्गजों के बीच अच्छे आर्थिक और व्यापारिक संबंध होने के फायदे अद्भुत होंगे। यह न केवल उनके लिए, बल्कि दुनिया के लिए भी अच्छा होगा।
सैक्स ने भारत को साफ सलाह दी है कि अपने दांव को सुरक्षित रखें और वाशिंगटन को अपना आर्थिक भविष्य तय न करने दें। इसका मतलब है कि भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अन्य देशों के साथ भी अपने आर्थिक संबंध मजबूत करने चाहिए।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जेफरी सैक्स ने भारत को सावधान किया है। उन्होंने कहा है कि भारत को चीन के खिलाफ पश्चिमी देशों के व्यापार युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए। सैक्स का मानना है कि अमेरिका भारत को पार्टनर की बजाय रणनीतिक मोहरे के रूप में देखता है। एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में सैक्स ने कहा कि भारत का ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की जगह लेना वास्तविक नहीं है। अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों को देखते हुए भारत को रूस, चीन, आसियान और अफ्रीका जैसे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने चाहिए। सैक्स ने भारत-चीन के बीच तकनीकी सहयोग की संभावनाओं पर भी जोर दिया।
50% टैरिफ लगाना क्या बता रहा है?
जेफरी सैक्स ने कहा कि कुछ लोगों का मानना था कि भारत, चीन की जगह ले लेगा। अमेरिका चीन से लड़ेगा और चीनी सप्लाई चेन को बदलने के लिए भारत का स्वागत करेगा। लेकिन, उन्होंने इसे अवास्तविक बताया।
सैक्स ने तर्क दिया कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियां अमेरिका के साथ दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग की सीमाओं को दर्शाता है। डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाना इसका उदारहण है। उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका भारत से निर्यात में बड़ी बढ़ोतरी की अनुमति नहीं देगा। ठीक वैसे ही जैसे उसने चीन को नहीं दी।
सैक्स ने यह बात ऐसे समय में कही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले हैं। इससे गलवान घाटी की झड़प के बाद एशियाई दिग्गजों के बीच संबंधों में जमी बर्फ पिघलने की संभावना है।
भारत को साफ सलाह
आर्थिक सुधारों और गरीबी उन्मूलन पर अपने काम के लिए विश्व स्तर पर जाने जाने वाले सैक्स ने कहा कि भारतीय नीति निर्माताओं को अमेरिका के हालिया कदमों से चिंतित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को रूस, चीन, आसियान, अफ्रीका और अन्य जगहों पर अपने सहयोगियों का एक विविध आधार बनाना चाहिए। भारत को खुद को मुख्य रूप से अमेरिकी बाजार पर फोकस करते हुए नहीं देखना चाहिए, जो अस्थिर, धीमी रफ्तार से बढ़ने वाला और मूल रूप से संरक्षणवादी होने वाला है।
सैक्स ने भारत-चीन के बीच तकनीकी सहयोग की अपार संभावनाओं पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि अगर आप ग्रीन एनर्जी, डिजिटल, AI या एडवांस्ड चिप्स को देखें तो चीन भारत के लिए अच्छा पार्टनर है। हां, भारत-चीन के संबंध अन्य कारणों से तनावपूर्ण हैं। लेकिन, उन्हें सुलझाएं, क्योंकि दोनों दिग्गजों के बीच अच्छे आर्थिक और व्यापारिक संबंध होने के फायदे अद्भुत होंगे। यह न केवल उनके लिए, बल्कि दुनिया के लिए भी अच्छा होगा।
सैक्स ने भारत को साफ सलाह दी है कि अपने दांव को सुरक्षित रखें और वाशिंगटन को अपना आर्थिक भविष्य तय न करने दें। इसका मतलब है कि भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अन्य देशों के साथ भी अपने आर्थिक संबंध मजबूत करने चाहिए।
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