नई दिल्ली: भारत और चीन के रिश्ते उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहे हैं। हाल में दोनों देशों के संबंधों में कुछ सुधार हुआ है। यह और बात है कि सरकार अभी चीन से आने वाले निवेश पर लगी रोक हटाने के मूड में नहीं है। सूत्रों ने यह जानकारी दी है। उनके मुताबिक, मोदी सरकार की तरफ से प्रेस नोट 3 की समीक्षा करने की कोई योजना नहीं है। प्रेस नोट 3 कहता है कि भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले निवेश को हर मामले में सरकार से मंजूरी लेनी होगी। यह ड्रैगन के लिए साफ मैसेज है। यह दर्शाता है कि भारत के लिए अपनी सुरक्षा सर्वोपरि है। जब तक वह आश्वस्त नहीं हो जाता, चीन के लिए वह दरवाजे खोलने का जोखिम नहीं ले सकता है।
एक सूत्र के अनुसार, अभी यह बहुत शुरुआती दौर है। प्रेस नोट 3 में ढील देने को लेकर अब तक कोई बात नहीं हुई है। फिलहाल ऐसा किए जाने की संभावना भी कम है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सहयोग के लिए दोनों देशों के बीच अधिक पहुंच और बातचीत की जरूरत का संकेत दिया था। लेकिन, साथ में 'सावधानी' बरतरने पर भी जोर दिया था। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि दोनों देश आर्थिक सहयोग के लिए एक-दूसरे के साथ ज्यादा बातचीत करना चाहते हैं। लेकिन, ऐसा सावधानी से करना होगा।
2020 में हुआ था एफडीआई पॉलिसी में बदलाव
अप्रैल 2020 में सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पॉलिसी में बदलाव किया था। यह बदलाव प्रेस नोट 3 ऑफ 2020 के जरिए किया गया था। इसके मुताबिक, अगर कोई कंपनी भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देश से है या उस कंपनी का मालिक ऐसे देश में रहता है या वहां का नागरिक है तो उसे सरकार के जरिए ही निवेश करना होगा। ऐसी कंपनी का मालिकाना हक अगर भारत की किसी कंपनी को ट्रांसफर किया जाता है तो भी सरकारी मंजूरी जरूरी है।
भारत का चीन को क्या है मैसेज?2020 में गलवान घाटी में संघर्ष के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में टेंशन रही है। प्रेस नोट 3 को शुरुआत में महामारी के दौरान कंपनियों को बचाने के लिए लागू किया गया था। लेकिन, अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण हथियार के तौर पर काम कर रहा है। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आर्थिक संबंधों को दोबारा बहाल करते समय भी राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा को कोई खतरा न हो।
भारत चीन के साथ आर्थिक सहयोग के मौके तलाशना चाहता है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए वह काफी इच्छुक है।। लेकिन, वह चीन के भू-रणनीतिक इरादों के प्रति सतर्क भी है। प्रेस नोट 3 का बने रहने इसी संतुलन को बनाए रखने का प्रयास है।
प्रतिबंधों में ढील देना बड़ा भू-राजनीतिक निर्णय होगा। इसका सीधा असर भारत के घरेलू उद्योगों और संवेदनशील क्षेत्रों पर पड़ने के आसार हैं। सरकार शायद यह सुनिश्चित करना चाहती है कि ऐसा कोई भी कदम पूरी तरह से विचार-विमर्श के बाद ही उठाया जाए। संकेतों से पता चलता है कि सरकार चीन के साथ संबंधों की प्रगति पर बारीकी से नजर रखेगी। चीनी नागरिकों के लिए ट्रैवल वीजा जारी करना जैसे कदम राजनयिक संबंधों में नरमी का सकारात्मक कदम है। लेकिन, निवेश नीति में बदलाव के लिए ज्यादा समय और भरोसे की जरूरत होगी।
एक सूत्र के अनुसार, अभी यह बहुत शुरुआती दौर है। प्रेस नोट 3 में ढील देने को लेकर अब तक कोई बात नहीं हुई है। फिलहाल ऐसा किए जाने की संभावना भी कम है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सहयोग के लिए दोनों देशों के बीच अधिक पहुंच और बातचीत की जरूरत का संकेत दिया था। लेकिन, साथ में 'सावधानी' बरतरने पर भी जोर दिया था। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि दोनों देश आर्थिक सहयोग के लिए एक-दूसरे के साथ ज्यादा बातचीत करना चाहते हैं। लेकिन, ऐसा सावधानी से करना होगा।
2020 में हुआ था एफडीआई पॉलिसी में बदलाव
अप्रैल 2020 में सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पॉलिसी में बदलाव किया था। यह बदलाव प्रेस नोट 3 ऑफ 2020 के जरिए किया गया था। इसके मुताबिक, अगर कोई कंपनी भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देश से है या उस कंपनी का मालिक ऐसे देश में रहता है या वहां का नागरिक है तो उसे सरकार के जरिए ही निवेश करना होगा। ऐसी कंपनी का मालिकाना हक अगर भारत की किसी कंपनी को ट्रांसफर किया जाता है तो भी सरकारी मंजूरी जरूरी है।
भारत का चीन को क्या है मैसेज?2020 में गलवान घाटी में संघर्ष के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में टेंशन रही है। प्रेस नोट 3 को शुरुआत में महामारी के दौरान कंपनियों को बचाने के लिए लागू किया गया था। लेकिन, अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण हथियार के तौर पर काम कर रहा है। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आर्थिक संबंधों को दोबारा बहाल करते समय भी राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा को कोई खतरा न हो।
भारत चीन के साथ आर्थिक सहयोग के मौके तलाशना चाहता है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए वह काफी इच्छुक है।। लेकिन, वह चीन के भू-रणनीतिक इरादों के प्रति सतर्क भी है। प्रेस नोट 3 का बने रहने इसी संतुलन को बनाए रखने का प्रयास है।
प्रतिबंधों में ढील देना बड़ा भू-राजनीतिक निर्णय होगा। इसका सीधा असर भारत के घरेलू उद्योगों और संवेदनशील क्षेत्रों पर पड़ने के आसार हैं। सरकार शायद यह सुनिश्चित करना चाहती है कि ऐसा कोई भी कदम पूरी तरह से विचार-विमर्श के बाद ही उठाया जाए। संकेतों से पता चलता है कि सरकार चीन के साथ संबंधों की प्रगति पर बारीकी से नजर रखेगी। चीनी नागरिकों के लिए ट्रैवल वीजा जारी करना जैसे कदम राजनयिक संबंधों में नरमी का सकारात्मक कदम है। लेकिन, निवेश नीति में बदलाव के लिए ज्यादा समय और भरोसे की जरूरत होगी।
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