लखनऊ: भारत और रूस मिलकर ब्रह्मोस मिसाइल का एक नया और आधुनिक वर्जन बनाने जा रहे हैं। यह फैसला ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद लिया गया है। इस ऑपरेशन में ब्रह्मोस मिसाइल ने बहुत अच्छा काम किया था और पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। इसके बाद पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष में भी इस मिसाइल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दोनों देशों के बीच इस नए मिसाइल को बनाने को लेकर बातचीत शुरू हो गई है। रूस, भारत को इस मिसाइल को बनाने में पूरी मदद करेगा। उत्तर प्रदेश में ब्रह्मोस मिसाइल बनाने की नई फैक्ट्री में ही इस आधुनिक वर्जन का उत्पादन किया जाएगा। इस फैक्ट्री में बड़ी संख्या में मिसाइलें बनेंगी।लखनऊ में ब्रह्मोस एयरोस्पेस यूनिट बनाई गई है। इसे बनाने में 300 करोड़ रुपये की लागत आई है। सरकार ने इसके लिए 80 हेक्टेयर जमीन मुफ्त में दी है। इस यूनिट में PTC नाम की एक मुख्य यूनिट और 7 अन्य सहायक सुविधाएं हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 मई को इस यूनिट का उद्घाटन किया था। योगी आदित्यनाथ ने ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइल की सफलता की खूब तारीफ की। उन्होंने कहा कि आपने ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइल की एक झलक देखी होगी, अगर नहीं देखी, तो पाकिस्तान के लोगों से ब्रह्मोस मिसाइल की ताकत के बारे में पूछ लीजिए।10 मई को SU-30 MKI से दागी गई ब्रह्मोस मिसाइलों ने नूर खान एयरबेस पर उत्तरी वायु कमान-नियंत्रण नेटवर्क को नुकसान पहुंचाया था। S-400 की तरह ब्रह्मोस मिसाइलें आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने और पाकिस्तानी मंसूबों को नाकाम करने में बहुत कारगर साबित हुई थीं। भारत ने पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस पर हमला किया था। इस हमले के बाद पाकिस्तान की सेना घबरा गई और उसने अमेरिका से मदद मांगी थी। नूर खान एयरबेस पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहां पर हवा में ईंधन भरने की सुविधा है, जिससे पाकिस्तानी लड़ाकू विमान हवा में ही ईंधन भर सकते हैं। यह एयरबेस पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन के मुख्यालय के पास भी है। यह डिवीजन पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा करता है। ब्रह्मोस मिसाइलों का इस्तेमाल जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित मुख्यालय को निशाना बनाने के लिए भी किया गया था। ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक मिसाइल है, जिसे किसी भी ज्ञात हवाई रक्षा प्रणाली से नहीं रोका जा सकता है। तनाव के बीच इसे चीन और पाकिस्तान के सिस्टम भी नहीं रोक पाए थे। ब्रह्मोस मिसाइल लॉन्च होने के बाद मिनटों में 300 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकती है। यह रनवे को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। भारत के पास इसके कई वर्जन हैं, जिनमें जमीन से जमीन पर मार करने वाली, जमीन से जहाज पर मार करने वाली और जहाज से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें शामिल हैं। 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने की घोषणा की थी। इनमें से एक उत्तर प्रदेश में और दूसरा तमिलनाडु में है। ये 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' पहल का हिस्सा है। इनका उद्देश्य रक्षा आयात पर निर्भरता को कम करना और स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना है।. उत्तर प्रदेश में छह जगहें चुनी गई हैंउत्तर प्रदेश में छह जगहों को चुना गया है। इनमें लखनऊ, कानपुर, अलीगढ़, आगरा, झांसी और चित्रकूट है। यहां पर एक्सप्रेसवे और राजमार्गों के माध्यम से अच्छी लॉजिस्टिक्स सपोर्ट उपलब्ध है। यहां पर प्रिसिजन कास्टिंग प्लांट बनाया जाएगा। यह जेट इंजन और विमान प्रणालियों के महत्वपूर्ण घटकों का निर्माण करेगा। फोर्ज शॉप एंड मिल प्रोडक्ट्स प्लांट भी बनाया जाएगा। यह टाइटेनियम और सुपर अलॉय बार, रॉड और शीट का उत्पादन करेगा। प्रिसिजन मशीनिंग शॉप और स्ट्रैटेजिक पाउडर मेटलर्जी फैसिलिटी भी स्थापित की जाएंगी। यह टाइटेनियम और सुपर अलॉय मेटल पाउडर के उत्पादन के लिए भारत का पहला स्वदेशी प्लांट होगा। STRIDE एकेडमी भी बनाई जाएगी। यह रक्षा और एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देगी। एक R&D सेंटर भी होगा। यह स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास, सामग्री नवाचार और विनिर्माण प्रक्रिया सुधार पर काम करेगा।अभी तक 57 समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इनमें लगभग 30,000 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है। लक्ष्य है कि छह नोड्स में 50,000 करोड़ रुपये का निवेश हो और 100,000 नौकरियां पैदा हों। अभी तक पांच यूनिटों ने उत्पादन शुरू कर दिया है, और दो नई यूनिटें हाल ही में जुड़ी हैं। सिर्फ तीन से चार वर्षों में रक्षा विनिर्माण इकाइयों का तेजी से विकास 'आत्मनिर्भर भारत' के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।भारत सालाना लगभग 6.5 लाख करोड़ रुपये रक्षा पर खर्च करता है, जिसमें से 2.5 लाख करोड़ रुपये आयात पर खर्च होते हैं। UP डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के हिस्से के रूप में 57 निवेशकों को जमीन आवंटित की गई है। उत्पादन सुविधाएं वर्तमान में विकास के विभिन्न चरणों में हैं। इन इकाइयों में 9462.8 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है और इनसे 13,736 लोगों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार पैदा होने की उम्मीद है। पहला भूमि पट्टा समझौता जून 2021 में हुआ था और चार साल से भी कम समय में 57 उद्योग सक्रिय रूप से कॉरिडोर के भीतर सुविधाएं विकसित कर रहे हैं। झांसी नोड में इन चीजों का होगा निर्माणझांसी नोड में 16 कंपनियों को 531.09 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई है। इन परियोजनाओं में 4372.81 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है और इससे 2,928 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। इस नोड में विस्फोटक, गोला-बारूद, प्रणोदन प्रणाली और मध्यम-कैलिबर इन्फैंट्री हथियारों के लिए मोबाइल प्लेटफॉर्म बनाने वाली कंपनियां होंगी। कानपुर में इन चीजों का निर्माण होगाकानपुर नोड में 5 कंपनियों को 210.60 हेक्टेयर जमीन मिली है। यहां 1758 करोड़ रुपये का निवेश होने और 2,200 लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। इस नोड में छोटे, मध्यम और बड़े कैलिबर के गोला-बारूद, बुलेटप्रूफ जैकेट, विशेष कपड़े और छोटे हथियार बनाने वाली इकाइयां होंगी। रडार का केंद्र बन रहा अलीगढ़अलीगढ़ नोड में सबसे ज्यादा कंपनियां हैं। यहां 24 कंपनियों को 64.001 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई है। 1921 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव के साथ इस नोड से 5,618 प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होने का अनुमान है। यह ड्रोन, लोइटरिंग मूनिशन, काउंटर-ड्रोन सिस्टम, प्रिसिजन इक्विपमेंट, मेक्ट्रोनिक्स, छोटे हथियार और रडार सिस्टम का केंद्र बन रहा है। लखनऊ में इन चीजों का होगा निर्माणलखनऊ नोड जहां ब्रह्मोस एयरोस्पेस सुविधा है, में 12 कंपनियों को 117.35 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई है। इस नोड में 1411 करोड़ रुपये का निवेश होने और 2,930 प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है। दुनिया की सबसे शक्तिशाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस के अलावा, यह नोड मिसाइल सिस्टम, गोला-बारूद, रक्षा पैकेजिंग, ड्रोन और छोटे हथियारों का उत्पादन करेगा।
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