पटना: 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में 2020 से अलग है, जब एनडीए ने 125 सीटें और 37.26 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था, जबकि विपक्षी महागठबंधन को 110 सीटें (37.23 प्रतिशत वोट शेयर) मिली थीं। इस बार, नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी और भाजपा के नए सहयोगियों के साथ प्रयोग (चिराग पासवान की लोजपा-आरवी और उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो) के कारण एनडीए एक नया प्रयोग कर रहा है। वहीं , तेजस्वी यादव की युवा अपील, कांग्रेस, भाकपा (माले) और वीआईपी के साथ गठबंधन मिलकर महागठबंधन की ताकत को परिभाषित कर रहे हैं।
जातिगत गणित पर गहन फोकस
बिहार चुनाव में हमेशा से जाति सबसे ऊपर रही है, लेकिन इस बार हर पार्टी अपने मूल मतदाताओं को मजबूती से साधने की कोशिश कर रही है। बिहार चुनाव में इस बार 4 सी- कास्ट, कैंडिडेट, कैश और कोऑर्डिनेशन फैक्टर महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
एनडीए का समीकरण
भाजपा और जदयू दोनों 101-101 सीटों पर लड़ रहे हैं। भाजपा ने अपनी मुख्य उच्च जाति की मतदाता आधार पर भरोसा करते हुए अधिकतम 49 उच्च जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है। वहीं, जदयू की मुख्य ताकत ईबीसी, ओबीसी और एससी हैं। जदयू ने अपने 101 टिकटों में से 74 टिकट ओबीसी, ईबीसी और एससी को दिए हैं, जिसमें नीतीश के समर्थक माने जाने वाले लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) समुदाय को 25 टिकट मिले हैं।
महागठबंधन का दांव
राजद ने 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिसमें उसका एम-वाई (मुस्लिम-यादव) फैक्टर अभी भी मजबूत है। पार्टी ने 50 यादव और 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। हालांकि, पार्टी ने अन्य प्रमुख ओबीसी समूहों (लव-कुश से 18) और उच्च जातियों (14 उम्मीदवार) में भी सेंध लगाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने अपने पुराने आधार (उच्च जाति, दलित और मुस्लिम) पर लौटते हुए 61 में से 21 उच्च जाति, 12 एससी और 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं।
गठबंधन की एकजुटता बनाम कलह
एनडीए समन्वय के मामले में विपक्ष से आगे दिख रहा है। हालांकि 'हम' और रालोमो जैसे छोटे सहयोगियों ने सीट बंटवारे पर नाखुशी जताई थी, लेकिन समझौते के बाद वे संयुक्त रूप से प्रचार कर रहे हैं। दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन सहयोगियों के बीच मुद्दों को सुलझाने के लिए जूझ रहा है। आखिरी समय में वीआईपी और आईआईपी (एक नई पार्टी) जैसे सहयोगियों को शामिल करने के कारण सीटों के बंटवारे में देरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप 11 सीटों पर विपक्षी दलों के एक से अधिक उम्मीदवार खड़े हैं।
मुफ्त घोषणाओं का नया चलन
इस चुनाव में 'मुफ्त उपहार' की संस्कृति पहली बार बड़े पैमाने पर देखी जा रही है। नीतीश कुमार ने 'मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना' के तहत महिलाओं को 10,000 रुपये, सभी पेंशनभोगियों के लिए पेंशन में वृद्धि (400 से 1,100 रुपए), और 'श्रम कार्ड' वाले श्रमिकों के लिए 5,000 रुपये देने की घोषणा की है।
दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने 'माई बहन योजना' के तहत महिलाओं को 2,500 रुपए प्रति माह, हर परिवार में एक सरकारी नौकरी और संविदा कर्मचारियों को स्थायी दर्जा देने का वादा किया है।
यह छोटा चुनावी अभियान, जहां पार्टियां अपने मूल आधार को मजबूत करने और गैर-पारंपरिक मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत लगा रही हैं, यह तय करेगा कि बिहार की सत्ता की चाबी किसे मिलती है।
जातिगत गणित पर गहन फोकस
बिहार चुनाव में हमेशा से जाति सबसे ऊपर रही है, लेकिन इस बार हर पार्टी अपने मूल मतदाताओं को मजबूती से साधने की कोशिश कर रही है। बिहार चुनाव में इस बार 4 सी- कास्ट, कैंडिडेट, कैश और कोऑर्डिनेशन फैक्टर महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
एनडीए का समीकरण
भाजपा और जदयू दोनों 101-101 सीटों पर लड़ रहे हैं। भाजपा ने अपनी मुख्य उच्च जाति की मतदाता आधार पर भरोसा करते हुए अधिकतम 49 उच्च जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है। वहीं, जदयू की मुख्य ताकत ईबीसी, ओबीसी और एससी हैं। जदयू ने अपने 101 टिकटों में से 74 टिकट ओबीसी, ईबीसी और एससी को दिए हैं, जिसमें नीतीश के समर्थक माने जाने वाले लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) समुदाय को 25 टिकट मिले हैं।
महागठबंधन का दांव
राजद ने 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिसमें उसका एम-वाई (मुस्लिम-यादव) फैक्टर अभी भी मजबूत है। पार्टी ने 50 यादव और 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। हालांकि, पार्टी ने अन्य प्रमुख ओबीसी समूहों (लव-कुश से 18) और उच्च जातियों (14 उम्मीदवार) में भी सेंध लगाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने अपने पुराने आधार (उच्च जाति, दलित और मुस्लिम) पर लौटते हुए 61 में से 21 उच्च जाति, 12 एससी और 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं।
गठबंधन की एकजुटता बनाम कलह
एनडीए समन्वय के मामले में विपक्ष से आगे दिख रहा है। हालांकि 'हम' और रालोमो जैसे छोटे सहयोगियों ने सीट बंटवारे पर नाखुशी जताई थी, लेकिन समझौते के बाद वे संयुक्त रूप से प्रचार कर रहे हैं। दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन सहयोगियों के बीच मुद्दों को सुलझाने के लिए जूझ रहा है। आखिरी समय में वीआईपी और आईआईपी (एक नई पार्टी) जैसे सहयोगियों को शामिल करने के कारण सीटों के बंटवारे में देरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप 11 सीटों पर विपक्षी दलों के एक से अधिक उम्मीदवार खड़े हैं।
मुफ्त घोषणाओं का नया चलन
इस चुनाव में 'मुफ्त उपहार' की संस्कृति पहली बार बड़े पैमाने पर देखी जा रही है। नीतीश कुमार ने 'मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना' के तहत महिलाओं को 10,000 रुपये, सभी पेंशनभोगियों के लिए पेंशन में वृद्धि (400 से 1,100 रुपए), और 'श्रम कार्ड' वाले श्रमिकों के लिए 5,000 रुपये देने की घोषणा की है।
दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने 'माई बहन योजना' के तहत महिलाओं को 2,500 रुपए प्रति माह, हर परिवार में एक सरकारी नौकरी और संविदा कर्मचारियों को स्थायी दर्जा देने का वादा किया है।
यह छोटा चुनावी अभियान, जहां पार्टियां अपने मूल आधार को मजबूत करने और गैर-पारंपरिक मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत लगा रही हैं, यह तय करेगा कि बिहार की सत्ता की चाबी किसे मिलती है।
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