नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले को लेकर पूरा देश उबल रहा है। भारत सरकार दबाव है। मोदी सरकार की ओर से बार-बार आतंकियों और उनके सरगनाओं को सख्त से सख्त और अकल्पनीय सजा दिए जाने का भरोसा दिया जा रहा है। देश की तमाम सुरक्षा एजेंसियां इस घटना के जिम्मेदार लोगों का पता लगाने में जुटी हुई हैं। लेकिन, देश में मुट्ठीभर ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी हरकतों से जानबूझकर या अनजानें में देश के दुश्मनों का हाथ मजबूर कर रहे हैं। पूरे देश में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आए हैं, जिसमें कथित रूप से देश-विरोधी और पाकिस्तान-समर्थक आचरण के लिए या तो लोगों को गिरफ्तार किया गया है या कड़ी से कड़ी कानूनी धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि पहलगाम हमले पर सवाल उठाने वाले को सीधे-सीधे 'गद्दार' कहना उचित है? पाकिस्तान 'समर्थकों' पर एक्शनअकेले नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों असम, त्रिपुरा और मेघालय से कम से कम 25 लोगों को इसलिए गिरफ्तार किया गया है, क्योंकि उनपर आरोप है कि उन्होंने पहलगाम हमले को लेकर पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट किए हैं। अकेले असम में ऐसे लोगों की संख्या 16 सामने आई है। असम में तो इत्र टाइकून बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के विधायक (MLA)अमिनुल इस्लाम तक की इसी मामले में गिरफ्तारी हुई है। इसी तरह त्रिपुरा पुलिस ने एक रिटायर्ड टीचर और एक छात्र नेता को पकड़ा है, जिनपर पहलगाम हमले के बाद सोशल मीडिया पर विवादित टिप्पणियां करने के आरोप हैं। सरकार से खुन्नस में पाकिस्तान का साथ!इसी तरह से यूपी में सोशल मीडिया पर चर्चित एक लोक गायिका के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोपों के मुताबिक उनकी सोशल मीडिया पर की गई विवादित टिप्पणियों को पाकिस्तान में हाथों-हाथ लिया गया है और उसके बहाने पहलगाम में वह खून से रंगे अपने हाथों को धोने की कोशिशें कर रहा है। जहां तक पहलगाम हमले को लेकर सरकार पर सवाल उठाने की बात है तो यहां तक तो ठीक है, लेकिन ऐसी टिप्पणियां जिसे देश के दुश्मन भारत के ही खिलाफ इस्तेमाल करने लगे तो उसे क्या कहा जाए? जब, पहलगाम हमले के 26 बेगुनाहों के परिजन चीख-चीख कर बता रहे हैं कि बैसरन घाटी में उस दिन आतंकवादियों ने कैसा मंजर बना दिया था, फिर भी मोहतरमा सवाल उठा रही हैं कि 'कलमा पढ़ने से मना करने पर जब गोली मार ही दी गई तो मीडिया को ये किस्सा किसने बताया।' क्या इन्हें यह नहीं बता कि दहशतर्दों ने सिर्फ पुरुषों की पहचान करने के बाद ही नजदीक से गोलियां मारीं और उनके बीवी-बच्चों को यह कहने के लिए छोड़ गए कि 'जाओ मोदी से कह देना।' 'गद्दार' नहीं तो क्या बोला जाए?असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा साफ कह चुके हैं कि पहलगाम हमले के सिलसिले में जो भी पाकिस्तान की भाषा बोलेगा, उसके खिलाफ 'राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम' (NSA) के तहत कार्रवाई की जाएगी। देश के अन्य राज्यों में भी इसी तरह की कार्रवाई होने की रिपोर्ट है। सवाल है कि इतने संवेदनशील मुद्दों पर सरकार के विरोध के नाम पर देश के खिलाफ माहौल बनाने वालों को ताकत कहां से मिल रही है? कोई अनपढ़ सोशल मीडिया का फायदा उठाकर नासमझी में ऐसा करता है तो उसे पल भर के लिए बेनिफिट ऑफ डाउट दे भी दिया जाए, लेकिन जब जनता के नुमाइंदे और संवैधानिक व्यवस्था के प्रतिनिधि ऐसा करने लगें तो उन्हें 'गद्दार' नहीं तो क्या बोला जाए? उन्हें 'गद्दार' क्यों न बोला जाए, जिन्हें अपनी हरकतों के बारे में पूरा इल्म है। जिन्हें यह पता है कि पहलगाम की घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान के लिए डूबते को तिनके का ही सहारा चाहिए। वह भारतीयों के सोशल मीडिया पोस्ट का इस्तेमाल आतंकी हमले की 'न्यूट्रल जांच' की मांग क्यों नहीं करेगा, ताकी दुनिया भर में हो रही अपनी थू-थू से बच जाए। जब देश इस आतंकी वारदात पर एक सुर में बोल रहा है, हर हाल में गुनगगारों को सजा दिलाना चाह रहा है,पिछले कुछ आतंकी वारदातों के बाद कार्रवाई का एक ट्रैक रिकॉर्ड भी है, फिर देश की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश वालों को 'गद्दार' न कहें तो क्या कहें?
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