Editorial
Next Story
Newszop

संपादकीय: शादी की उम्र सीमा बढ़ाई, उठे हिमाचल सरकार की पहल पर सवाल

Send Push
हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार शादी की न्यूनतम आयु सीमा बढ़ाकर वास्तव में क्या हासिल करना चाहती है, समझना मुश्किल है। राज्य विधानसभा में इसी सप्ताह एक विधेयक पारित किया गया जिसके मुताबिक शादी की न्यूनतम आयु 21 साल कर दी गई। दिलचस्प है कि इस कदम पर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने भी हैरत जताई। केंद्रीय कानून के खिलाफराज्य विधानसभा में पारित होने के बावजूद इस विधेयक का कानून बनकर लागू होना मुश्किल है। इस विधेयक में चाइल्ड मैरिज (प्रॉहिबिशन) एक्ट 2006 को संशोधित किया गया है, जिसे संसद ने पारित किया था। जाहिर है, राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद भी लागू होने से पहले इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाना है। क्या देश भर में लागू एक कानून से अलग प्रावधान वाले इस विधेयक को राष्ट्रपति की हरी झंडी मिलेगी? कांग्रेस की परेशानी इस विधेयक ने कांग्रेस पार्टी के लिए भी असहज हालात पैदा कर दिए हैं। साल की शुरुआत में जब केंद्र सरकार ने पिछली लोकसभा में इसी तरह का एक कानून लाने की कोशिश की थी तो कांग्रेस ने उसका विरोध किया था। ऐसे में अब उसी के शासन वाले राज्य में इस विधेयक के पारित होने के बाद उसके सामने सवाल आ गया है कि वह विधेयक की निंदा करे तो कैसे और उसका बचाव करे तो कैसे। बचकानी सोचसबसे बड़ी बात तो यह है कि राज्य में ऐसी किसी पहल की कोई मांग भी नहीं थी। ऐसा भी नहीं है कि हिमाचल बाल विवाह के मामले में अग्रणी राज्यों में आता हो। झारखंड जैसे राज्यों में हालात कहीं बदतर हैं। लेकिन अगर बाल विवाह के कुछ मामले राज्य में होते भी हैं तो कानून बनाकर उसे रोक लेने की सोच अव्यावहारिक और बचकानी कही जाएगी। अलग हैं कारणलड़कियों की कम उम्र में शादी के पीछे गरीबी, शिक्षा की कमी, अवसर का अभाव और पितृसत्तात्मक सोच जैसे कारक हैं। देश में जैसे-जैसे इन मोर्चों पर हालात बदले हैं, बाल विवाह में भी कमी देखी गई है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 3 के मुताबिक देश में 20 से 24 साल के बीच की 47 फीसदी महिलाएं ऐसी पाई गईं जिनकी शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई थी। NFHS-4 में यह घटकर 27 फीसदी पर पहुंच गया और NFHS-5 में और घटकर 23 फीसदी हो गया। इसके लिए कानून बदलने की कोई जरूरत नहीं पड़ी। बढ़ेगी उलझनजाहिर है, राज्य सरकार का मकसद चाहे जो भी हो, समस्या को सुलझाने में इस कदम से कोई मदद नहीं मिलेगी, उलटे इससे कानूनी उलझन और बढ़ेगी। बेहतर होगा, सरकार यह कदम वापस लेकर लड़कियों को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयास तेज करे।
Loving Newspoint? Download the app now