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संपादकीय: कोलकाता रेप-मर्डर पर राजनीति क्यों? हिंसक तत्वों पर लगाम लगे

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कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर के मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु अगर निराश हैं, तो समझ सकते हैं कि हालात कितने बुरे हैं। राष्ट्रपति का कहना है कि देश के लोगों का गुस्सा जायज है और वह भी गुस्से में हैं। लेकिन इस गुस्से को जाहिर करने के लिए पश्चिम बंगाल में प्रदर्शन के दौरान जिस तरह की हिंसक घटनाएं हुईं, वे कम निराशाजनक या चिंताजनक नहीं। सतह पर आक्रोशBJP ने 12 घंटे का बंगाल बंद बुलाया था। इस दौरान कई जगह से BJP और TMC कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की खबरें आईं, एक BJP नेता पर हमले का आरोप है। तमाम लोगों को हिरासत में लेना पड़ा। स्थिति यह थी कि सरकारी बस ड्राइवर हेलमेट पहनकर गाड़ी चलाते दिखे। पिछले कुछ दिनों से जो बंगाल भीतर ही भीतर सुलग रहा था, वह अचानक से फट पड़ा। राजनीति का खेलराज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस हो या विपक्ष की BJP, दोनों ही पार्टियां महिलाओं की सुरक्षा चाहती हैं। फिर टकराव की स्थिति कैसे बन गई? इसका सीधा-सा जवाब है पॉलिटिक्स। महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को राजनीति का मुद्दा न बनाने की अपील करने वाले नेता भी अपनी जरूरत के मुताबिक बड़े आराम से इसे राजनीति का रंग दे देते हैं। बंगाल में यही हो रहा है। हिंसा की तस्वीरTMC प्रमुख और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने लगभग चेतावनी वाले अंदाज में कहा है कि अगर आग बंगाल में लगेगी तो यूपी, बिहार, असम और दिल्ली भी जलेंगे। इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आ रही है, जो लाजिमी है। लेकिन, सोचने वाली बात है कि क्यों बंगाल बार-बार ऐसे हालात में फंसता है, जहां आग लगने की नौबत आ जाए। राज्य से थोड़े-थोड़े समय पर हिंसा की एक-जैसी तस्वीरें आती रहती हैं। नक्सलवाद का दौरपश्चिम बंगाल की राजनीति जितनी आक्रामक है, उतनी ही हिंसक भी। शायद इसकी वजह वहां के राजनीतिक इतिहास में है। 1970 और बाद के दशकों में राज्य ने नक्सलवादियों और सीपीएम कार्यकर्ताओं के बीच के हिंसक टकरावों को देखा। आरोप लगते रहे हैं कि कम्युनिस्ट दलों ने विपक्ष को पनपने नहीं दिया। शैली नहीं बदलीबदलाव की उम्मीदें जगाकर आई TMC भी हिंसा के उसी चक्रव्यूह में फंस गई। ऐसा लगता है कि जो असामाजिक तत्व पहले सक्रिय थे, वे अब भी अपना ‘खेल’ दिखा रहे हैं, बस पार्टी बदल चुकी है। पश्चिम बंगाल बेहद संवेदनशील राज्य है। वहां हुई कोई भी घटना पूरे देश पर असर डालती है। ऐसे में पक्ष हो या विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है कि जनमत को प्रभावित करने की प्रक्रिया में इस बात का खास ख्याल रखें कि हिंसक तत्वों को बढ़ावा न मिले।
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