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एडिट: सुलभ हो इंसाफ... राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बताया कोर्ट से क्यों डरते हैं आम लोग

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नई दिल्ली: जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जो कुछ कहा, उसे देश की पूरी न्याय व्यवस्था के लिए अलार्म बेल माना जा सकता है। राष्ट्रपति ने याद दिलाया कि जब तक न्यायपालिका देश के आम लोगों को सहजता से इंसाफ तक पहुंचने का रास्ता मुहैया नहीं कराती, तब तक उसका काम पूरा नहीं माना जा सकता। आम अनुभव इसे आम भारतवासी के जीवन और उसकी तकलीफों, संघर्षों से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के जीवंत जुड़ाव का ही प्रमाण मानना होगा कि उन्होंने न्यायपालिका के प्रति लोगों की भावनाओं को सहजता से सामने रख दिया। राष्ट्रपति ने इस बात को ठीक ही रेखांकित किया कि आम लोग जज को न्याय देने वाले भगवान की तरह देखते हैं लेकिन फिर भी कोर्ट-कचहरी के नाम से डरते हैं। वहां जाने से बचने के लिए वे अपने जीवन में कई तरह के अन्याय चुपचाप बर्दाश्त कर लेते हैं। महंगा न्याय, जटिल प्रक्रिया इसके पीछे दो बड़े कारक हैं। एक तो यह कि अदालतों से न्याय पाने की प्रक्रिया बड़ी खर्चीली है और दूसरी यह कि इसमें बेहिसाब वक्त लगता है। इन दोनों ही का नतीजा इसी रूप में सामने आता है कि इंसाफ की आस लेकर अदालत पहुंचा व्यक्ति फैसला आने तक टूट चुका होता है। राष्ट्रपति ने ठीक ही कहा कि किसी गंभीर अपराध से जुड़े मामले का फैसला आने में 32 साल लग जाए तो लोगों को ऐसा लगना अस्वाभाविक नहीं कि शायद अदालतें ऐसे मामलों को लेकर संवेदनशील नहीं हैं। बरसों चलते मामलेराष्ट्रपति ने किसी खास मामले का जिक्र नहीं किया, लेकिन उनका इशारा अजमेर में पॉक्सो अदालत द्वारा इसी 20 अगस्त को सुनाए गए फैसले की तरफ था। एक चर्चित सेक्स स्कैंडल से जुड़े इस मामले में छह लोगों को उम्र कैद सुनाने में 32 साल लग गए। यह अपनी तरह का कोई इकलौता मामला नहीं है। बेहद गंभीर और वीभत्स अपराध के सैकड़ों ऐसे मामले हैं, जो अदालतों में बरसों से लंबित पड़े हैं। पेंडिंग मामले निपटाने पर जोर वैसे यह बात सही है कि हाल के वर्षों में अदालतों में पेंडिंग पड़े लाखों मामलों को जल्द से जल्द निपटाकर न्यायपालिका का बोझ कम करने की दिशा में प्रयास तेज हुए हैं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 479 को पुराने मामलों में भी लागू करते हुए पहली बार ऑफेंस करने वालों को बेल देने की व्यवस्था ऐसी ही एक अच्छी पहल है। अन्य स्तरों पर भी ऐसे प्रयास हो रहे हैं, लेकिन न्याय प्रक्रिया को सस्ता या कम खर्चीला बनाने के अपेक्षाकृत कठिन लक्ष्य पर ज्यादा ध्यान नहीं है। उम्मीद की जाए कि राष्ट्रपति की नसीहत इस कमी को दूर करने की प्रेरणा बनेगी।
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