Ram Katha : भगवान राम बड़े कृपालु हैं। वह अपने सच्चे भक्तों के दुख-दर्द दूर करने में पल भर की देरी नहीं करते हैं। जिस प्रकार प्रभु के परम भक्त हनुमानजी ने श्रीचरणों में स्थान पाया है, उसी तरह भगवान को अपना तन-मन समर्पित करने वालों को भी रामजी के चरणों में जगह मिलती है। अगर किसी ने अब तक अधर्म, अनैतिकता का मार्ग अपनाया है तो वह भी धर्म और अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए श्रीराम की कृपा का पात्र बन सकता है। प्रभु की क्षमाशीलता का उदाहरण रामचरितमानस के एक प्रसंग से भी मिलता है। जब प्रभु ने खुद से मां सीता को दूर करने वाले महापापी को क्षमा कर दिया था और उसके लिए अलग से साकेत धाम बनाया था। रामजी और धोबी की कथारामचंद्र जी जब लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे तो प्रभु को पता चला कि एक धोबी मां सीता की निंदा कर रहा है। उसका कहना था कि माता सीता इतने दिन लंका में रहीं, इसके बाद भी श्रीराम ने उन्हें अपना लिया। धोबी की बातें सुनकर श्रीराम काफी दुखी हुए। वहीं यह बात जब माता सीता को पता लगी तो उन्होंने खुद से वन जाने का फैसला लिया। इस प्रकार धोबी की निंदा की वजह से रामजी को मां सीता से दूर होना पड़ा। कथा में प्रभु श्रीराम के क्षमादान का वर्णन मिलता है। जब प्रभु अयोध्या से अपने साकेत (बैकुंठ) धाम की ओर जा रहे थे। तब कहा जाता है कि सभी अयोध्यावासी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे भी प्रभु के साथ जाने लगे। पृथ्वीलोक से मुक्ति की चाह में हर कोई प्रभु के साथ जा रहा था। मां सीता की निंदा करने वाला धोबी भी सभी लोगों के साथ था। कथा कहती है कि जब एक-एक करके सभी साकेत धाम में प्रवेश कर रहे थे तभी धोबी का भी नंबर आया। लेकिन, वैसे ही साकेत धाम का द्वार बंद हो गया। साकेत के द्वारपाल ने कहा कि प्रभु आप भले ही इसका हाथ पकड़ लें, लेकिन इसने माता सीता की निंदा की है। इसलिए इस महापापी के लिए साकेत धाम में कोई जगह नहीं है। भगवान जब साकेत धाम की ओर जा रहे थे तो सभी देवी-देवता उन्हें आकाश मार्ग से देख रहे थे। जब धोबी को साकेत धाम में जगह नहीं मिली तो ब्रह्माजी को लगा कि कहीं प्रभु उसे ब्रह्मलोक में न भेज दें। उन्होंने भी भगवान से कहा कि महाराज इस पापी के लिए ब्रह्म लोक में कोई जगह नहीं है। इंद्र देव को लगा कि अब भगवान इसे इंद्रलोक में भेजेंगे तो उन्होंने भी पहले ही हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने भी यही बात दोहराई कि ये पापी इंद्र लोक में रहने योग्य नहीं है। ध्रुव जी ने सोचा कि ये न साकेत धाम गया और ब्रह्म लोक और इंद्र लोक में भी इसे स्थान नहीं मिला यानी अब भगवन् इसे ध्रुव लोक में भेजेंगे। उन्होंने भी पहले ही उसे लेने से मना कर दिया।यही नहीं अलग-अलग देवताओं ने भी अपने-अपने लोक में धोबी को स्थान देने से मना कर दिया। भगवान बिना कुछ बोले अभी मुस्कुरा ही रहे थे कि यमराज ने भी कह दिया कि भले ही पापियों को यमलोक में भेजा जाता है लेकिन यह तो मां की निंदा करने वाला महापापी है। इसके लिए यमलोक में भी स्थान नहीं है। यह सुनते ही धोबी का मन व्यथित हो गया। उसे लगा कि उसने इतना बड़ा पाप कैसे कर दिया कि उसे यमपुरी में भी जगह नहीं मिल रही है।धोबी की घबराहट देखकर प्रभु राम ने कहा कि तुम परेशान मत हो। मैं तुम्हारे लिए एक नया साकेत धाम बनाता हूं, जहां तुम निवास करोगे। कथा कहती है कि प्रभु ने धोबी के लिए अलग से साकेत धाम बनाया। यहीं से रामचरितमानस में एक चौपाई भी आती हैः सिय निंदक अघ ओघ नसाए।लोक बिसोक बनाइ बसाए।। हालांकि धोबी के लिए अलग से साकेत धाम तो बन गया, लेकिन समझा जाता है कि वहां न देवता हैं और न भगवान। वह न किसी को देख सकता है और न उसे कोई देख सकता है।
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