उज्जैन, 13 अप्रैल . श्री महाकालेश्वर मंदिर में वैशाख और ज्येष्ठ माह के दौरान भगवान महाकालेश्वर पर विशेष अभिषेक की परंपरा शुरू हो गई है. 13 अप्रैल (वैशाख कृष्ण प्रतिपदा) से 11 जून 2025 (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा) तक भगवान पर 11 मिट्टी के कलशों से सतत शीतल जलधारा प्रवाहित की जाएगी. इसके लिए मंदिर में गलंतिका बांधी गई है, जो गर्मी में भगवान को शीतलता प्रदान करेगी.
श्री महाकालेश्वर मंदिर की प्राचीन परंपरा के अनुसार, हर साल वैशाख और ज्येष्ठ माह में यह विशेष व्यवस्था की जाती है. इन दो महीनों में ग्रीष्म ऋतु के कारण तापमान बहुत अधिक रहता है. ऐसे में भगवान महाकालेश्वर को ठंडक देने के लिए मिट्टी के 11 कलशों से जलधारा प्रवाहित की जाती है. इन कलशों पर प्रतीकात्मक रूप से पवित्र नदियों के नाम अंकित हैं, जैसे गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, सरयू, क्षिप्रा, गंडकी और अलकनंदा. ये कलश रोजाना सुबह भस्मारती के बाद से शाम की संध्या पूजा तक जलधारा प्रवाहित करते हैं.
मंदिर प्रशासन के अनुसार, यह जलधारा प्रतिदिन सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक प्रवाहित होगी. इस दौरान सामान्य अभिषेक के लिए उपयोग होने वाले रजत कलश के साथ-साथ मिट्टी के ये विशेष कलश भी लगाए जाएंगे. गलंतिका की यह व्यवस्था भगवान को गर्मी से राहत देने और भक्तों की आस्था को और गहरा करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
वैशाख और ज्येष्ठ माह में उज्जैन में भीषण गर्मी पड़ती है. इस दौरान भक्तों की संख्या भी मंदिर में बढ़ जाती है. गलंतिका से जलधारा का प्रवाह न केवल भगवान को शीतलता देता है, बल्कि मंदिर के वातावरण को भी सुकून भरा बनाता है. भक्तों का मानना है कि इस विशेष अभिषेक के दर्शन से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें आध्यात्मिक शांति मिलती है.
श्री महाकालेश्वर मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यहां की परंपराएं अनूठी हैं. गलंतिका बांधने की यह प्रथा भी मंदिर की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का हिस्सा है. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इस दौरान भस्मारती और अन्य पूजाओं में शामिल होकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. मंदिर समिति ने भक्तों से अपील की है कि वे इस पवित्र अवसर पर दर्शन के लिए आएं और परंपराओं का सम्मान करें.
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एसएचके/केआर
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