New Delhi, 8 अगस्त. भोलेनाथ को प्रिय सावन मास का समापन Saturday, 9 अगस्त को पूर्णिमा तिथि के साथ हो रहा है. यह दिन सावन पूर्णिमा व्रत और रक्षा बंधन के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस बार सावन पूर्णिमा पर आयुष्मान और सौभाग्य जैसे योगों का शुभ संयोग बन रहा है, जो इस दिन को और भी विशेष बनाता है.
दृक पंचांग के अनुसार, Saturday को सूर्योदय सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 7 बजकर 07 मिनट पर होगा. पूर्णिमा तिथि दोपहर 2 बजकर 12 बजे के बाद शुरू होगी, जो रक्षा बंधन और पूर्णिमा व्रत के लिए महत्वपूर्ण है. इस दिन चंद्रमा मकर राशि में और सूर्य कर्क राशि में रहेंगे.
सावन पूर्णिमा का व्रत भगवान शिव और चंद्रमा को समर्पित है. इस दिन व्रत रखने वाले को प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रमा की पूजा करें. पूजा में शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, और घी अर्पित करें. इसके बाद इत्र, बेलपत्र, काला तिल, जौ, गेहूं, गुड़ समेत अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें. इस दिन चंद्र देव की पूजा करना भी लाभदायी माना जाता है. ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार, जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा पीड़ित या पाप ग्रहों की युति में होते हैं, उनके लिए श्रावण मास की पूर्णिमा और भी महत्वपूर्ण बन जाती है.
चंद्र देव की पूजन के बाद जल और दूध से अर्घ्य देना चाहिए. इसके लिए जल में दूध और चीनी मिलाकर चांदी के पात्र से चंद्रमा को अर्घ्य दें और ‘ओम सोम सोमाय नम:’ के साथ ‘ओम नमः शिवाय’ और ‘ओम सोमेश्वराय नमः’ मंत्र का जप करना चाहिए. व्रत की शुरुआत सूर्योदय से होती है और चंद्रोदय के बाद पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है. व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करना चाहिए. पूजा के बाद जरूरतमंदों और ब्राम्हणों को दान देना शुभ माना जाता है.
खास बात है कि पूर्णिमा के दिन भद्रा का प्रभाव सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगा, जिससे यह समय राखी बांधने के लिए उपयुक्त है. ऐसे में पूरे दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जा सकता है. वहीं, शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 47 मिनट से दोपहर 1 बजकर 24 मिनट तक रहेगा.
रक्षा बंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. महाराष्ट्र में राखी पूर्णिमा को नारली अथवा नारियल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. तमिलनाडु में इसे अवनी अवित्तम के रूप में मनाया जाता है, जो ब्राह्मण समुदाय के लिए नए यज्ञोपवीत पहनने और पुराने यज्ञोपवीत को बदलने का एक महत्वपूर्ण दिन होता है, जिसे श्रावणी भी कहा जाता है.
आंध्र प्रदेश में यज्ञोपवीत बदलने के त्योहार को जन्ध्याला पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. भारत के अन्य क्षेत्रों में, श्रावण पूर्णिमा के दौरान यज्ञोपवीत बदलने के अनुष्ठान को उपाकर्म के रूप में जाना जाता है.
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एमटी/केआर
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