New Delhi, 31 जुलाई . भारत के दिग्गज राजनेताओं में शुमार अमर सिंह, भीष्म नारायण सिंह और हरकिशन सिंह सुरजीत की 1 अगस्त को पुण्यतिथि है. इन तीनों राजनेताओं ने देश की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया. आइए जानते हैं कि अमर सिंह, भीष्म नारायण सिंह और हरकिशन सिंह सुरजीत की राजनीति का सफरनामा.
एक समय समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के दाहिने हाथ माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता अमर सिंह का 1 अगस्त 2020 को निधन हो गया था. उद्योगपति से राजनेता बने अमर सिंह सपा के महासचिव भी रहे थे. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1956 को हुआ था. उन्होंने बीए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की. अमर सिंह को जया प्रदा और संजय दत्त को सपा में लाने का श्रेय जाता है.
अमर सिंह नवंबर 1996 में सपा के समर्थन से पहली बार राज्यसभा पहुंचे थे. वह 2002 और 2008 में भी राज्यसभा के सदस्य रहे. उन्होंने जनवरी 2010 को सपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और 2011 में राष्ट्रीय लोक मंच के नाम से अपनी पार्टी बनाई. उन्होंने मार्च 2014 में राष्ट्रीय लोकदल पार्टी का दामन थाम लिया था. वह फतेहपुर सीकरी से Lok Sabha चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद साल 2016 में फिर से अमर सिंह ने सपा में वापसी की और राज्यसभा के सदस्य चुने गए.
बता दें कांग्रेस के कद्दावर नेता भीष्म नारायण सिंह का निधन 1 अगस्त 2018 को हुआ था. संयुक्त बिहार में हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर पहली बार साल 1967 में विधानसभा चुनाव जीता और बिहार में कैबिनेट मंत्री बने थे. वह साल 1972 में जीतकर दोबारा मंत्री बने. वह पहली बार साल 1976 में राज्यसभा के लिए चुने गए. 1980 में उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाई. फिर 1983 में वे देश के खाद्य आपूर्ति मंत्री बनाए गए.
भीष्म नारायण सिंह को साल 1984 में असम और मेघालय का राज्यपाल बनाया गया था. इसके बाद वह साल 1991 में तमिलनाडु के राज्यपाल बने. भीष्म नारायण सिंह के पास एक साथ सात राज्यों का राज्यपाल प्रभार था जो एक रिकॉर्ड है. साल 2005 में रूस ने उन्हें ऑर्डर ऑफ फ्रेंडशिप के सम्मान से सम्मानित किया था.
वहीं कम्युनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत की बात करें तो उनका निधन 1 अगस्त 2008 को हुआ था. वह पंजाब के एक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे. 1992 से 2005 तक उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव के रूप में कार्य किया. वह 1964 से 2008 तक पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी रहे.
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डीकेपी/जीकेटी
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