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लंबित विधेयक की समयसीमा के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को भेजा नोटिस

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New Delhi, 22 जुलाई . Supreme court ने राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर फैसला लेने की समय सीमा तय करने के महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है. इस मामले में अगली सुनवाई Tuesday को होगी.

Supreme court ने संकेत दिए हैं कि अगस्त में इस मामले पर विस्तृत सुनवाई शुरू होगी.

यह मामला उस समय सुर्खियों में आया था, जब इस साल अप्रैल में तमिलनाडु के 10 विधेयकों के राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित होने का मामला Supreme court पहुंचा. इसके बाद कोर्ट न केवल सभी विधेयकों को परित करार दिया था, बल्कि विधेयक पर फैसले की समय सीमा तय कर दी थी. यह सीमा राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों के लिए तय की गई थी. कोर्ट ने कहा था, जब राज्य विधानसभा की ओर से पास बिल को गवर्नर आगे विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेजें, तो उन्हें तीन महीने में उस पर फैसला लेना होगा. इस तरह कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की थी.

इस फैसले को कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव के रूप में देखा गया. इसके मद्देनजर राष्ट्रपति ने Supreme court को 14 सवालों का प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेजा, जिसके आधार पर संविधान पीठ गठित की गई. यह पीठ विधेयक पर फैसले की समय सीमा और संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या पर विचार करेगी.

इसी साल 8 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 2023 में 10 विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित रखने के कदम को अवैध और गलत करार दिया था.

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने फैसला सुनाया था कि विधानसभा द्वारा दोबारा पारित क‍िसी व‍िधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखने का अध‍िकार राज्यपाल के पास नहीं है.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, “राज्यपाल के पास विधेयक को रोकने की कोई गुंजाइश नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है. उन्हें अनिवार्य रूप से Chief Minister और उनके मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करना होता है.”

एफएम/एएस

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