New Delhi, 15 अक्टूबर . घर का कलह आपकी जिंदगी में उतना हंगामा नहीं मचाता, जितनी पड़ोस में भड़की हिंसा का शोर आपको बेचैन करता है. India भी इस समय वैसे ही हालातों से घिरा हुआ है. लेकिन India के साथ अच्छी बात यह है कि वह इन सारे शोरगुल से ना तो पहले कभी घबराया ना आज उसके माथे पर इसको लेकर कोई सिकन है.
दरअसल, India के पड़ोसी देश एक-एक कर अशांत हो रहे हैं और India विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है. इसके पीछे की जो सबसे बड़ी वजह है वह यह है कि India ने अपने अंदर किसी भी तरह के विरोध को सुलझाने के लिए कभी किसी देश की दखलंदाजी को ना तो तरजीह दी, ना कभी India इस तरह की बात का हिमायती रहा है. लेकिन, India के पड़ोसी मुल्क इस मामले में अलग ही सोच रखते हैं.
कभी अमेरिका से सहायता मांगकर तालिबान को अपनी जमीन से खदेड़ने वाला अफगानिस्तान फिर से एक बार तालिबान के कब्जे में आया. तब तालिबान का हिमायती Pakistan बना और अपनी सरजमीं से उसने टीटीपी जैसे संगठन को पनपने दिया. अब Pakistan के लिए वही टीटीपी गले का फांस बनता जा रहा है.
बांग्लादेश के भी हालात कुछ ऐसे ही रहे. अमेरिका और चीन से हर बात में समर्थन की उम्मीद ने बांग्लादेश की आवाम के मन में Government के प्रति वह कुंठा पैदा कर दी, जिसकी कीमत वहां के लोकतंत्र के मंदिर को तहस-नहस होकर चुकाना पड़ा. नेपाल में भी वामपंथ की जड़ों ने पनपना शुरू किया और चीन की खिदमतगारी में वहां की Government लगी तो वहां की आवाम को वह पसंद नहीं आया. वहां के नौजवान सड़कों पर उतरे और वहां रक्तरंजित सड़कों पर से चलती हुई लोकतंत्र की गाड़ी सत्ता परिवर्तन के बाद ही रूकी. श्रीलंका ने भी ऐसा ही हाल देखा, तब भी वजह चीन ही रहा.
ऐसे में या तो Pakistan समर्थित कट्टरपंथी ताकतें या फिर चीन की दखलंदाजी, यही तो ऐसी चीजें रहीं, जिन्होंने India के पड़ोसियों को अशांत कर दिया. रही सही कसर अमेरिका की शांत Political घुसपैठ ने पूरी कर दी. क्योंकि अमेरिका अंदर ही अंदर इन देशों में चीन की तैयार जगह हथियाने के लिए प्रयास करता रहा और इसकी जड़ें धीरे-धीरे ही सही अब गहरी होती जा रही थीं, जिससे चीन की बेचैनी बढ़ गई और फिर दोनों के बीच जारी द्वंद का असर इन देशों को झेलना पड़ा.
अगस्त 2021 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया तो दुनिया में जो देश सबसे ज्यादा खुशी से झूमा वह Pakistan था. तब Pakistan की तत्कालीन Government के आंतरिक मंत्री शेख रशीद अहमद ने अपने देश के साथ लगने वाले अफगानिस्तान की सीमा तोरखम बॉर्डर पर एक विक्ट्री प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और तालिबान Government को मान्यता देने की बात कहने वाला सबसे पहला देश बना था. उस समय Pakistan के Prime Minister इमरान खान थे जो अभी अपने ही देश में सलाखों के पीछे धकेल दिए गए हैं. Pakistan तब इस खुशफहमी में जी रहा था कि उसको India के खिलाफ एक मजबूत पड़ोसी मिल गया है जो India के खिलाफ उसकी मंशा को कामयाब करने में काफी मददगार साबित होगा. इससे पहले तक तो अफगानिस्तान India और अमेरिका का समर्थक बताया जाता था.
लेकिन Pakistan की खुशी वाला ये गुब्बारा 3-4 सालों में फूट गया और आज Pakistan की सीमा में घुसकर तालिबान जो ता-ता-थैया कर रहा है, उस धुन पर थिरकने से पहले ही पाक के घूंघरू टूट जा रहे हैं.
अब एक बार Pakistan और तालिबान की गलबहियां कैसे चलती रही, इसको भी तो जान लें. अफगानिस्तान की सरजमीं पर अपने पांव टिकाने के लिए तालिबान ने 20 साल तक लगातार विद्रोह किया, लेकिन तब उसके सामने 40 से ज्यादा देशों के गठबंधन की दीवार खड़ी थी और इसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था. ऐसे में वह हर बार मुंह की खाता रहा. लेकिन, तालिबान को हर बार पनपने के लिए खाद-पानी Pakistan से ही मिलता रहा. इन 20 सालों में तालिबानी नेताओं और लड़ाकों को अफगानिस्तान की सीमा से लगे इलाकों में Pakistan के भीतर शरण मिलती रही. उसी तरह जैसे Pakistan की सरजमीं पर India के खिलाफ साजिश रचने वाले आतंक परस्तों को पनाह मिलती है. तालिबान नेताओं ने Pakistan के प्रमुख शहरों जैसे क्वेटा, पेशावर और बाद में कराची में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई.
Pakistan में तो तालिबान को पनपने और अच्छा पनाहगाह साबित होने के लिए पूरा एक प्रॉपर इकोसिस्टम मिला और साथ ही एक कट्टरपंथी मानसिकता वाला समाज भी उसके साथ हो लिया. ऐसे में दुनिया ये भी मानती है कि अगर तब तालिबान की इस सोच को Pakistan का समर्थन और उसके विद्रोहियों को पनाह नहीं दी गई होती तो आज तालिबान फिर से खड़ा ही नहीं हो पाता.
लेकिन, Pakistan को क्या पता था कि जिस तहरीक-ए-तालिबान Pakistan (टीटीपी) को उसकी सरजमीं पर खड़ा किया गया है वह एक दिन उसी को निगलने के लिए तैयार हो जाएगा? जिस कट्टरपंथी सोच को हवा तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होते हुए ही दी थी, वह वहां की सत्ता में आने के कुछ साल बाद तो थोड़ी कम हो गई, लेकिन टीटीपी Pakistan में जरूर शरिया कानून लागू करने की सोच लेकर संघर्ष करने लगा. इसके पीछे वजह भी साफ थी क्योंकि टीटीपी को लगता था कि धर्म का चूरन जितना Pakistan की आवाम को वहां के सत्तानशीनों ने अब तक चटाया है, उसका फायदा उसे मिलेगा और वह वहां अपनी कट्टरपंथी सोच को आसानी से लागू करा पाने में सफलता हासिल कर लेगा.
तालिबान जब अफगानिस्तान की सत्ता में लौटा तो Pakistan को लगा था, उनकी सरजमीं से टीटीपी को रोकने में अब उन्हें तालिबान की मदद मिलेगी, लेकिन हुआ इसके उलट. Pakistan में पला टीटीपी और ज्यादा मजबूत होता चला गया. Pakistan की पूर्व Prime Minister बेनजीर भुट्टो की हत्या हो, मलाला युसुफजाई पर हमला हो, या पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला हो, सबमें पहले ही टीटीपी का नाम सामने आ चुका था, लेकिन, Pakistan में फिर भी इसे पनपने के लिए खूब खाद-पानी मिल रहा था.
Pakistan को तब यह भनक भी नहीं लगी थी कि अफगान तालिबान हो या फिर Pakistan तालिबान यानी टीटीपी, दोनों तो एक-दूसरे के कट्टर सहयोगी हैं. अब जब Pakistan के खिलाफ टीटीपी ने मोर्चा खोला है तो Pakistan को उम्मीद थी कि तालिबान Government उसकी मदद के लिए आगे आएगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा. और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह Pakistan और अफगानिस्तान के बीच जारी सीमा विवाद है. दोनों देशों के बीच जो अंतरराष्ट्रीय सीमा है, उसे डूरंड लाइन कहते हैं. हालांकि, इस 2,640 किलोमीटर लंबी सीमा को कभी अफगानिस्तान ने माना ही नहीं. उसका कारण भी साफ है क्योंकि इस सीमा पर Pakistan ने फेंसिंग तो कर दी है, लेकिन इसके दोनों तरफ पश्तून रहते हैं और अफगानिस्तान का इससे जुड़ाव सदा से रहा है.
अब तो तालिबान भी यही मानता है कि फेसिंग के उस तरफ डूरंड लाइन के पार Pakistan की सीमा के अंदर जहां तक पश्तून बसते हैं, वो इलाका भी अफगानिस्तान का है. अफगानिस्तान ने कभी भी डूरंड लाइन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी. हालांकि, यह रेखा तब खींची गई थी जब Pakistan का जन्म भी नहीं हुआ था और India और अफगानिस्तान की सीमा को निर्धारित करने के लिए इसे तय किया गया था. उस समय अंग्रेजों ने इसे ठीकठाक सोच के साथ दोनों देशों के बीच संघर्ष की नींव डालकर छोड़ी थी क्योंकि इस रेखा को खींचते समय स्थानीय जनजातियों और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया था. तब से यह विवाद जारी रहा और फिर Pakistan बनने के बाद यह लाइन अफगानिस्तान और Pakistan के बीच विवाद की वजह बन गई.
Pakistan खुद आर्थिक परेशानियों और आंतरिक Political कलह से घिरा हुआ है, और ऐसे में उसकी सेना के लिए कोई बड़ा और लंबा ऑपरेशन चलाना मुश्किल है. टीटीपी दूसरी तरफ Pakistanी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, और हमला करने के बाद अफगानिस्तान की सीमा में उसके लड़ाके भागकर पनाह ले रहे हैं, जहां टीटीपी के लड़ाकों को अफगान तालिबान की तरफ से सुरक्षित पनाहगाह, ट्रेनिंग कैंप, पैसे और हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं. इस बात को Pakistan की आवाम और Government भी मानती रही है.
अब एक और तथ्य पर ध्यान दीजिए तो यह डूरंड लाइन ईरान और चीन की सीमा तक जाकर लगती है. ऐसे में पश्तून कभी इस लाइन को मानने के लिए तैयार ही नहीं हुए. पश्तूनों का हमेशा से आरोप रहा है कि इस लाइन को साजिश के तहत खींचा गया और अंग्रेजों ने एक चाल के तहत पश्तून बहुल इलाकों में रह रहे पश्तून लोगों को दो देशों के बीच की दीवार में कैद कर दिया.
साल 2001 में अफगानिस्तान पर जब अमेरिका ने हमला किया तब Pakistan अमेरिका के साथ खड़ा था, यह टीटीपी की नाराजगी की बड़ी वजह थी. तब टीटीपी के लड़ाके Pakistan के इस कदम को इस्लाम के खिलाफ मानते थे. अब मौजूदा समय में टीटीपी चाहता है कि Pakistan में उसी तरह के इस्लामिक कानून का पालन हो, जैसा तालिबान के राज में अफगानिस्तान में हो रहा है. इसके साथ ही Pakistan के खैबर पख्तूनख्वा, दक्षिण वजीरिस्तान जैसे सीमावर्ती इलाकों को मिलाकर एक अलग देश टीटीपी बनाना चाहता है और इन इलाकों में उसकी पकड़ मजबूत है.
इधर, अफगान तालिबान भी Pakistan के जख्म पर मिर्ची रगड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. एक तरफ Pakistan के खिलाफ वह टीटीपी का समर्थन कर रहा है. दूसरी तरफ तालिबान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी ने India यात्रा के दौरान जम्मू-कश्मीर को India का हिस्सा बता दिया. इसके साथ ही साफ यह भी कह दिया कि उनका Pakistan में आतंक से कोई लेना देना नहीं जैसा कि Pakistanी Government इल्जाम लगा रही है, बल्कि आतंकवाद तो Pakistan की आतंरिक समस्या है.
Pakistan अभी तक यह सोच भी नहीं पा रहा था कि उनकी सरजमीं पर पल रहा संगठन उन्हीं के खिलाफ यलगार का ऐलान कर देगा, और ऐसे में Pakistanी सेना के लिए यह स्थिति बहुत मुश्किल होने वाली है.
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जीकेटी/
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