पटना: यूं तो पूरे देश की राजनीति में वंशवाद की झलक देखने को मिल जाती है लेकिन इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में वंशवाद का बोलबाला है। इस चुनाव में भी बड़ी संख्या में उम्मीदवार या तो किसी स्थापित नेता के बेटे, बेटी व पत्नी हैं या निकट संबंधी हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडे का कहना है कि वंशवाद के मामले में बिहार में कोई भी राजनीतिक दल खुद को नैतिक रूप से श्रेष्ठ नहीं कह सकता।
विभिन्न राजनीतिक दलों से कई चर्चित नेता अपने परिवार के सदस्यों को चुनावी मैदान में उतार रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव (पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद के छोटे बेटे एवं उत्तराधिकारी) राघोपुर से, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सम्राट चौधरी (पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के बेटे) तारापुर से, राजद के ओसामा शहाब (गैंगस्टर से राजनेता बने दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे) रघुनाथपुर से मैदान में हैं।
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता सासाराम से, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र एव भाजपा के नितिश मिश्रा झंझारपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।
मांझी की पु्रवधू दीपा मांझी भी चुनाव मैदान में
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की पुत्रवधू दीपा मांझी, जन सुराज की जागृति ठाकुर (प्रख्यात समाजवादी नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर की पौत्री) मुरवा से, और चाणक्य प्रसाद रंजन (जनता दल-यूनाइटेड सांसद गिरधारी प्रसाद यादव के पुत्र) राजद उम्मीदवार के रूप में बेलहर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा जद(यू) की कोमल सिंह (लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सांसद वीणा देवी की पुत्री) गायघाट से, जद(यू) के चेतन आनंद (पार्टी सांसद लवली आनंद के पुत्र) नवीनगर से, भाजपा के नितिन नवीन (भाजपा के दिवंगत नेता नवीन किशोर सिन्हा के पुत्र) बांकीपुर से, संजीव चौरसिया (भाजपा नेता गंगा प्रसाद चौरसिया के पुत्र) दीघा से, और राजद के राहुल तिवारी (राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के पुत्र) शाहपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।
सूरजभान की पत्नी मोकामा से लड़ रही चुनाव
इसी तरह राकेश ओझा (भाजपा के दिवंगत नेता विशेश्वर ओझा के पुत्र) शाहपुर से, वीणा देवी (राजद में हाल में शामिल हुए सूरजभान सिंह की पत्नी) मोकामा से और शिवानी शुक्ला (राजद के बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला की पुत्री) लालगंज से मैदान में हैं। पूर्व सांसद विजय कुमार के पुत्र ऋषि मिश्रा जाले से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति उदासीन
वंशवाद पर ए.एन. सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान (पटना) में अर्थशास्त्र के सहायक प्राध्यापक विद्यार्थी विकास ने कहा, ”राजनीति में जिस तरह से यह (वशंवाद) हो रहा है, यह दर्शाता है कि अब सभी राजनीतिक दल विचारधारा, संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति उदासीन हो चुके हैं।” उन्होंने कहा, ”लोगों को इसके (वशंवाद) खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। ये लोग केवल इसलिए राजनीति में आसानी से आ जाते हैं क्योंकि वे किसी स्थापित परिवार से आते हैं। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि बिहार में शिक्षा को पिछले 77 वर्षों में प्राथमिकता नहीं दी गई।” उन्होंने कहा, ”ग्रामीण आबादी में शिक्षा का स्तर बहुत कम है। हालिया जातीय सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में केवल 14.71 प्रतिशत लोग ही दसवीं कक्षा तक पास हैं। ऐसे में वे राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं हैं, और राजनीतिक दल इसी स्थिति का लाभ उठाकर वंशवाद को बढ़ावा देते हैं।”
चुनाव में ‘ग्लैमर’ अभिन्न हिस्सा बन गया
राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ”यह सच है कि आज एक साधारण कार्यकर्ता चुनाव लड़ने का सपना भी नहीं देख सकता। जब हर चुनाव में ‘ग्लैमर’ एक अभिन्न हिस्सा बन गया है, तब आम कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता नहीं मिलती।” उन्होंने कहा, ”उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा बेहिसाब धन के इस्तेमाल ने चुनावी मैदान को असमान बना दिया है।” भाजपा की प्रदेश इकाई के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, ”भाजपा केवल उन्हीं नेताओं और कार्यकर्ताओं को महत्व देती है जिन्होंने संगठनात्मक काम किया है और जो जनता की सेवा के प्रति समर्पित हैं।” उन्होंने कहा, ”इसका उदाहरण हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जिन्होंने पार्टी संगठन के हर स्तर पर काम किया है। हमारे प्रधानमंत्री बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं।” बिहार के 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों छह और 11 नवंबर को मतदान होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को की जाएगी। (इनपुट-भाषा)
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