मुसलमानों के लिए रमजान का महीना सबसे पवित्र माना जाता है, जो 1 या 2 मार्च से आरंभ होगा। इस दौरान मुस्लिम समुदाय उपवास रखता है, नमाज अदा करता है और अल्लाह की इबादत करता है।
रोजा सूरज उगने से लेकर अस्त होने तक रखा जाता है, जिसमें कुछ भी खाने-पीने की अनुमति नहीं होती। यह अनिवार्य है कि सभी बालिग मुस्लिम महिलाएं और पुरुष रोजा रखें। इस संदर्भ में यह जानना महत्वपूर्ण है कि रोजा रखने की परंपरा इस्लाम में कब से शुरू हुई और इसका महत्व क्या है।
इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना रमजान कहलाता है, जो अरबी भाषा का शब्द है। यह महीना उपवास के लिए विशेष रूप से निर्धारित किया गया है। अरबी में उपवास को 'सौम' कहा जाता है, जिसका अर्थ है रुकना या नियंत्रण करना। भारत में फारसी का प्रभाव होने के कारण उपवास को 'रोजा' कहा जाता है।
रमजान का चाँद कब दिखेगा?
रमजान की शुरुआत चाँद देखने से होती है। इस वर्ष भारत में रमजान का चाँद 28 फरवरी को शाम को दिखाई देने की संभावना है, जिसके बाद 1 मार्च को पहला रोजा होगा। रमजान रहमत और बरकत का महीना है, जिसमें मुस्लिम समुदाय अल्लाह की इबादत करता है और दान सहित अन्य नेक कार्य करता है। इस महीने में विशेष नमाज, जिसे तराबी कहा जाता है, अदा की जाती है।
रोजा रखने की परंपरा की शुरुआत
जमात-ए-इस्लामी हिंद के मौलाना रजियुल इस्लाम नदवी के अनुसार, रोजा इस्लाम के पांच मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। यह सभी मुसलमानों पर अनिवार्य है। पहले सिद्धांत में तौहीद (अल्लाह की एकता) है, दूसरे में नमाज, तीसरे में जकात (दान), चौथे में रोजा और पांचवे में हज करना शामिल है।
नदवी बताते हैं कि इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई। कुरान की दूसरी आयत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्ज किया गया है जैसे तुमसे पहले की उम्मत पर था। मुहम्मद साहब के मदीना पहुंचने के एक वर्ष बाद मुसलमानों को रोजा रखने का आदेश दिया गया।
रोजा का अर्थ और महत्व
रोजा केवल भूख-प्यास का नाम नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर और आत्मा पर नियंत्रण रखने का भी प्रतीक है। इस दौरान किसी को भी तकलीफ नहीं पहुंचानी चाहिए और न ही गलत कार्य करना चाहिए। रोजा रखने के दौरान दांपत्य संबंध बनाने की भी मनाही है।
इस्लामिक विद्वान मुफ्ती ओसामा नदवी के अनुसार, अल्लाह ने हर मुसलमान पर रोजा रखना अनिवार्य किया है। कुरान में कई स्थानों पर रोजा रखने की आवश्यकता बताई गई है। रमजान का महीना सब्र और शांति का प्रतीक है, जिसमें अल्लाह की विशेष रहमतें बरसती हैं।
रोजा न रखने की छूट
मुफ्ती ओसामा नदवी बताते हैं कि हर बालिग मुस्लिम पर रोजा रखना अनिवार्य है, लेकिन बीमार, यात्रा पर, गर्भवती या पीरियड्स में रहने वाली महिलाओं को छूट दी गई है। यदि कोई बीमार व्यक्ति रोजा रखना चाहता है, तो उसे सहरी और इफ्तार के समय दवा लेने की अनुमति है।
You may also like
खुदरा महंगाई दर भी मार्च में घटकर छह साल के निचले स्तर 3.34 फीसदी पर
2400 करोड़ से विकसित होंगे नए पर्यटन स्थल : रघुवीर सिंह बाली
हमीरपुर में बैंक कर्मी की रहस्यमय मौत पर परिवार ने जताई हत्या की आशंका
डॉ. राजीव विधायक बिश्नाह ने ग्रीष्मकालीन तैयारियों के लिए संयुक्त नियंत्रण कक्ष स्थापित करने का निर्देश दिया
डीसी कठुआ ने कैपेक्स बजट 2024-25 के तहत विकास की दृश्य झलकियाँ नामक पुस्तिका जारी की