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चेक बाउंस: जानें नियम और सजा के प्रावधान

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चेक बाउंस क्या है?

(चेक बाउंस के मामले में नियम): जब चेक बाउंस होता है, तो इसे वित्तीय अपराध माना जाता है। यदि इस मामले में कोई सहमति नहीं होती है, तो आरोपी को सजा मिल सकती है।


चेक बाउंस के मामलों में कई नियम लागू होते हैं। इस लेख में हम चेक बाउंस के मामलों में सजा और उससे बचने के उपायों पर चर्चा करेंगे।


चेक बाउंस की स्थिति

चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं। सामान्यतः, जब कोई व्यक्ति किसी को चेक देता है और चेक में दर्शाई गई राशि उसके खाते में उपलब्ध नहीं होती, तो बैंक चेक को अस्वीकृत कर देता है। इसे चेक बाउंस कहा जाता है। इस प्रक्रिया में बैंक का समय बर्बाद होता है और भुगतान पाने वाला व्यक्ति भी परेशान होता है। कभी-कभी, हस्ताक्षर मेल न खाने के कारण भी चेक अस्वीकृत हो जाता है।


चेक जारी करते समय सावधानियाँ

कई बार लोग चेक जारी करते हैं, लेकिन बैंक से किसी शुल्क के कटने के कारण चेक की राशि उनके खाते में कम हो जाती है। ऐसे मामलों में भी चेक बाउंस माना जाएगा। इसलिए, चेक जारी करते समय अपने खाते में राशि की उपलब्धता का ध्यान रखें।


चेक बाउंस के मामले में कानूनी प्रावधान

चेक बाउंस एक वित्तीय अपराध है और इसके लिए कानूनी सजा का प्रावधान है। इसमें जुर्माना, जेल या दोनों हो सकते हैं। चेक बाउंस का मामला निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत दर्ज होता है।


इस तरह के मामलों में अदालत पहले समझौता कराने का प्रयास करती है, लेकिन यदि मामला हल नहीं होता है, तो सजा दी जाती है। चेक बाउंस के मामलों में अभियुक्तों को बरी होना मुश्किल होता है।


मुआवजे का प्रावधान

चेक बाउंस का मामला एक वित्तीय अपराध है और इसे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत चलाया जाता है। इसमें अधिकतम दो साल की सजा हो सकती है, लेकिन आमतौर पर अदालतें छह महीने से एक साल की सजा देती हैं। आरोपी को पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश भी दिया जा सकता है, जो चेक की राशि से दोगुना हो सकता है।


जेल जाने से बचने के उपाय

चेक बाउंस एक जमानती अपराध है, जिसमें अधिकतम सजा दो साल है। केस के अंतिम निर्णय तक आरोपी को जेल नहीं जाना पड़ता है। यदि आरोपी जेल में है, तो वह सजा को निलंबित करने की याचिका दायर कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के तहत आरोपी अपील कर सकता है।


यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो वह सेशन कोर्ट में तीस दिन के भीतर अपील कर सकता है।


अंतरिम मुआवजे के प्रावधान

चेक बाउंस के मामलों में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 139 के तहत केस चलता है। इस कानून में 2019 में अंतरिम मुआवजे के प्रावधान भी जोड़े गए। आरोपी को कोर्ट में पहली पेशी पर शिकायतकर्ता को चेक की राशि का 20 प्रतिशत देना होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें बदलाव करते हुए अपील के समय अंतरिम मुआवजे का प्रावधान जोड़ा है।


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