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नाड़ी विज्ञान: स्वास्थ्य की पहचान का प्राचीन तरीका

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नाड़ी विज्ञान का महत्व

प्राचीन काल से, नाड़ी देखकर रोगों की पहचान करने की परंपरा रही है। पहले के वैद्य नाड़ी के माध्यम से व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगा लेते थे और गंभीर बीमारियों का निदान कर सकते थे।


विज्ञान और नाड़ी विज्ञान

विज्ञान के विकास के साथ, शरीर से जुड़ी कई सूक्ष्म जानकारी अन्य परीक्षणों के माध्यम से भी प्राप्त की जाने लगी है। फिर भी, नाड़ी विज्ञान का महत्व आज भी बना हुआ है, और लोग इसके बारे में जानने के इच्छुक हैं।


नाड़ी से रोग की पहचान

नाड़ी परीक्षा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे शारंगधर संहिता और भावप्रकाश में मिलता है। महर्षि सुश्रुत ने नाड़ी के माध्यम से शरीर की सभी नाड़ियों का ज्ञान प्राप्त किया। जबकि आधुनिक चिकित्सा में पल्स केवल दिल की धड़कन को दर्शाती है, नाड़ी विज्ञान इससे कहीं अधिक जानकारी प्रदान करता है।


नाड़ी देखने की प्रक्रिया

पुरुषों के दाहिने हाथ और महिलाओं के बाएं हाथ की नाड़ी देखकर रोगों की पहचान की जाती है। कुछ वैद्य महिलाओं के दोनों हाथों की नाड़ी भी देखते हैं।


नाड़ी देखने का सही समय

रोग की पहचान के लिए सुबह का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है, जब व्यक्ति को खाली पेट वैद्य के पास जाना चाहिए।


सुबह का महत्व

सुबह के समय नाड़ी देखना इसलिए उचित है क्योंकि इस समय शरीर की वात, पित्त और कफ की नाड़ियाँ सामान्य रूप से कार्य करती हैं।


नाड़ी के स्थान

वात नाड़ी: अंगूठे की जड़ में
पित्त नाड़ी: दूसरी उंगली के नीचे
कफ नाड़ी: तीसरी उंगली के नीचे


नाड़ी विज्ञान और रोग

मानसिक तनाव, भय, और गुस्से के समय नाड़ी की गति तेज होती है। गर्भवती महिलाओं की नाड़ी भी तेज चलती है।


नाड़ी देखने की विधि

महिलाओं का बायां और पुरुषों का दायां हाथ देखा जाता है। कलाई के अंदर अंगूठे के नीचे तीन उंगलियाँ रखकर नाड़ी की पहचान की जाती है।


आपकी प्रकृति का पता

क्या आप वात प्रधान, पित्त प्रधान या कफ प्रधान हैं? इसे जानने के लिए आप स्वयं परीक्षण कर सकते हैं या किसी वैद्य से संपर्क कर सकते हैं।


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