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क्रेडिट रेटिंग में सुधार से Vodafone Idea के 25000 करोड़ रुपये के कर्ज जुटाने के प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा

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वोडाफोन आइडिया को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि सरकार द्वारा 36,950 करोड़ रुपये के वैधानिक बकाए को इक्विटी में बदलने के बाद कंपनी की क्रेडिट रेटिंग में सुधार हुआ है. प्रमुख ब्रोकरेज संस्था सिटी रिसर्च के अनुसार, इस अपग्रेड के साथ कंपनी को अब निवेश ग्रेड 'BBB-' रेटिंग प्राप्त हो गई है, जिससे उसके 25,000 करोड़ रुपये के बहुप्रतीक्षित बैंक कर्ज जुटाने की संभावना काफी मजबूत हुई है.सिटी रिसर्च का मानना है कि निवेश ग्रेड की क्रेडिट रेटिंग बैंकिंग क्षेत्र में एक प्रमुख आवश्यकता होती है, जिससे वोडाफोन आइडिया के लिए बैंक ऋण जुटाना अब अधिक व्यवहार्य हो गया है. इस क्रेडिट सुधार और सरकारी इक्विटी निवेश के बाद अब यह संभव है कि कंपनी जल्द ही अपने फंडिंग लक्ष्य को हासिल कर लेगी.यह कर्ज कंपनी की आगामी तीन वर्षों में 50,000 से 55,000 करोड़ रुपये की कैपेक्स योजना के लिए जरूरी है, जिसका उद्देश्य 4G नेटवर्क का विस्तार और 5G सेवाओं की शुरुआत है. यह कदम रिलायंस जियो और भारती एयरटेल जैसे प्रतिद्वंद्वियों के साथ नेटवर्क कवरेज की खाई को पाटने और ग्राहकों के पलायन को रोकने के लिए अहम माना जा रहा है.रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने भी वोडाफोन आइडिया को बीबीबी- की रेटिंग दी है, जो पहले CARE Ratings द्वारा दी गई BB+ रेटिंग से एक स्तर ऊपर है. कंपनी के प्रवक्ता ने बताया कि निवेश ग्रेड रेटिंग मिलने से अब बैंक फंडिंग की दिशा में ठोस प्रगति की उम्मीद है.गौरतलब है कि सरकार द्वारा इक्विटी में तब्दील की गई राशि के बाद सरकार की वोडाफोन आइडिया में हिस्सेदारी लगभग 49% तक पहुंच गई है, जो पहले 22.6% थी. इससे पहले, कंपनी 26,000 करोड़ रुपये की इक्विटी पहले ही जुटा चुकी है.सिटी रिसर्च के अनुसार, कर्ज जुटाने में सफलता मिलने पर FY26 में कंपनी को नकदी की कमी नहीं होगी, लेकिन FY27 में समायोजित सकल राजस्व (AGR) भुगतान के चलते वित्तीय दबाव उत्पन्न हो सकता है. वर्तमान में कंपनी सरकार से और राहत की बातचीत कर रही है.इस पूरी प्रक्रिया का सकारात्मक असर इंडस टावर्स जैसी कंपनियों पर भी पड़ेगा, जिन्हें वोडाफोन आइडिया के नेटवर्क विस्तार से नए टेनेन्सी मिलने की उम्मीद है, जिससे उनके नकदी प्रवाह में भी मजबूती आएगी.(अस्वीकरण: विशेषज्ञों द्वारा दी गई सिफारिशें, सुझाव, विचार और राय उनके अपने हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स हिन्दी के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं)
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