
पूर्वी चंपारण । मृदा(मिट्टी) का स्वास्थ्य भी मनुष्यों के स्वास्थ्य के साथ जुड़ा है,ऐसे में किसान मई माह में अपने खेतो की मिट्टी जांच अवश्य कराये,क्योंकि मई माह मिट्टी जांच के लिए सबसे उपयुक्त समय है।उक्त बाते जिले के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा विशेषज्ञ डा.आशीष राय ने हिन्दुस्थान समाचार से कही। उन्होने कहा कि बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण उपज के लिए मिट्टी की जांच जरूरी है।इसके लिए हर स्तर पर किसानो को जागरुक बनाने की आवश्यकता है।
उन्होने कहा कि मिट्टी जांच से ही समेकित पोषक तत्वो का प्रबंधन किया जा सकता है। मिट्टी जांच से यह पता चलता है,कि मिट्टी में फास्फोरस,कैल्शियम व नाइट्रोजन सहित फसलो के लिए आवश्यक तत्वो की कितनी मात्रा है। फसल के लिए जरूरत से ज्यादा अवयव की होने से उपज और गुणवत्ता दोनो प्रभावित होते है।मिट्टी में किसी भी अवयव की मात्रा ज्यादा होने पर फसल पर प्रतिकुल असर होता है।उन्होने किसानो को रसायनिक खाद में कटौती कर बायो फर्टिलाइजर का प्रयोग करने पर जोर देते कहा कि किसान अपने खेतो मे सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्णीय छिड़काव करें तो फसलो की गुणवत्ता बढ सकती है।
डाॅ.आशीष राय ने कहा कि मृदा स्वास्थ्य के प्रति स्कूली बच्चों को भी जागरूक करना जरूरी है।उन्होने कहा कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले राज्य बिहार के किसानो के लिए मिट्टी का स्वास्थ्य परीक्षण कराना बेहद जरूरी है,क्योकी इससे यह पता चलता है,कि उस मिट्टी में कौन सी फसल बेहतर उपज दे सकती है।इसके साथ ही इससे किसानो को प्राकृतिक खेती करने और मिट्टी के साथ ही मानव की सेहत सुधारने का भी अवसर मिलता है।
मिट्टी जांच के फायदे
मिट्टी जांच से मिट्टी में उत्पन्न दोष जैसे अम्लीयता तथा लवणीयता आदि का पता चलता है,जिससे उनका सही उपचार का सलाह मिलता है।इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति का पता चलता है, जिससे किसान मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के अनुसार फसलों की बुवाई कर बेहतर उपज प्राप्त कर सकते है।वही जांच से खादों एवं उर्वरकों की आवश्यकता के अनुसार व संतुलित मात्रा में प्रयोग करने में मदद मिलती है।इससे फसलों की उपज का सटीक आकलन करने के साथ ही मिट्टी में होने वाले परिवर्तनों का समय-समय पर अध्ययन करने में भी मदद मिलती है।मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करने से अधिक लाभ की संभावना बढ़ जाती है।
कैसे ले मिट्टी का नमूना
मिट्टी परीक्षण की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि नमूना कैसे लिया गया है। अच्छा नमूना खेत का सही प्रतिनिधित्व करता है।सामान्यत धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, गन्ना, तिलहन, दलहन आदि फसलों के लिए मिट्टी का नमूना लेने का उचित समय फसल कटने के बाद या फसल बोने से लगभग एक माह पूर्व होता है। एक इकाई से एक नमूना तैयार किया जाता है एक इकाई का क्षेत्रफल 1 एकड़ या एक हेक्टेयर से अधिक तथा कम भी हो सकता है। यह नमूना इकाई मृदा एवं फसल की भिन्नता पर निर्भर करता है। खेत में से 15-20 स्थानों से मिट्टी को एकत्र किया जाता है। नमूने की गहराई प्रत्येक स्थान पर 0 से 15 सेंटीमीटर या 20 सेंटीमीटर तक रखा जाता है। सामान्यता मृदा नमूना लेने के लिए किसानों के लिए सबसे सरल एवं उपलब्ध औजार खुरपी तथा फावड़ा है। यदि मिट्टी सख्त हो तो इसके लिए बर्मी अगार का उपयोग कर सकते हैं। विभिन्न स्थानों से ली गई मिट्टी को किसी साफ कपड़े, कागज, पॉलिथीन पर एक ढेर बनाकर अच्छी तरह से मिला ले। इसके बाद पूरे ढेर को घन के आकार का चित्रण कर आमने सामने वाले भाग को हटा दे और शेष भाग को फिर से मिला कर लगभग आधा किलोग्राम मिट्टी लेकर एक प्लास्टिक की शीट में रखकर उस पर अपना नाम, पता, नमूना संख्या, फसल विवरण तथा पहचान आदि सही जानकारी कागज के टुकड़े पर लिख कर इन नमूनों को मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में भेज देना चाहिए।
बागवानी वृक्षों के लिए कैसे ले मिट्टी का नमूना
बागवानी जैसे फल या दूसरे बहुवर्षीय वृक्ष लगाने के लिए गड्ढे की विभिन्न गहराई से अलग-अलग नमूना लेना चाहिए इन गहराई का अंतराल 0 से 15, 15 से 30, 30 से 45, 45 से 60, 60 से 90 तथा 90 से 120 सेंटीमीटर रखना चाहिए। 1 एकड़ क्षेत्रफल में 5 या 6 गढ्ढे बनाते हैं तथा प्रत्येक गड्ढे की गहराई का अंतराल ऊपर बताएं गए गहराई के अनुसार रखना चाहिए। इस प्रकार सभी गड्ढों की विभिन्न गहराई की मिट्टी का एक संयुक्त नमूना अलग-अलग स्थानों पर रखकर अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए। अर्थात इकट्ठे की गई विभिन्न गहराई की मिट्टी के नमूनों को आपस में ना मिलायें। इस प्रकार विभिन्न गहराई के संयुक्त नमूनों में से लगभग 300 से 400 ग्राम नमूना ले लिया जाता है। यदि मिट्टी गीली हो तो उसे छाया में सुखाकर ही भेजना चाहिए।
मिट्टी का नमूना लेते समय बरते सावधानियां
नमूना लेते समय हमेशा ध्यान रखें कि नमूने का स्थान वृक्षों के नीचे या फसलों की जड़ों में गोबर की खाद के कठे एवं अलग से किसी गड्ढे के पास से नहीं लेना चाहिए। ढलान, मिट्टी के प्रकार, फसल उत्पादन, फसल चक्र, उर्वरक एवं खाद का प्रबंधन आदि गुणों के आधार पर अलग अलग दिखने वाले खेत या उनके भागों से अलग-अलग नमूने तैयार करने चाहिए। ऊसर आदि भागों से अलग-अलग नमूना तैयार करना चाहिए। किसी भी दशा में नमूनों का संपर्क राख, दवाई, गोबर की खाद तथा उर्वरक आदि से नहीं होना चाहिए। नमूनों के लिए केवल साफ-सफाई और तथा नई साफ प्लास्टिक की बाल्टी या ट्रे और साफ स्थान का ही प्रयोग करना चाहिए।
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